ऋषि पंचमी Rishi Panchami भाद्रपद शुक्ल पक्ष की पंचमी को आती है । ऋषि पंचमी को भाई पंचमी Bhai Panchami के नाम से भी जाना जाता है। माहेश्वरी समाज में राखी इसी दिन बांधी जाती है।
बहन भाई की दीर्घायु के लिए व्रत रखती है , पूजा करती है उसके बाद ही खाना खाती है।
इसके अलावा महिलाये इस दिन सप्त ऋषि का आशीर्वाद प्राप्त करने और सुख शांति एवं समृद्धि की कामना से यह व्रत रखती है।
यह व्रत ऋषियों के प्रति श्रद्धा , समर्पण और सम्मान की भावना को प्रदर्शित करने का महत्वपूर्ण आधार बनता है। सप्त ऋषि की विधि विधान से पूजा की जाती है। ऋषि पंचमी व्रत की कहानी सुनी जाती है। यह व्रत पापों का नाश करने वाला व श्रेष्ठ फलदायी माना जाता है।
इस व्रत को करने से यदि रजस्वला दोष हो तो वह भी मिट जाता है। माहवारी समाप्त हो जाने पर ऋषि पंचमी के व्रत का उद्यापन किया जाता है।
रजस्वला दोष – Rajaswala Dosh
हिन्दू धर्म में किसी स्त्री के रजस्वला ( माहवारी , Period ) होने पर रसोई में जाना , खाना बनाना , पानी भरना तथा धार्मिक कार्य में शामिल होना और इनसे सम्बंधित वस्तुओं को छूना वर्जित माना जाता है। यदि भूलवश इस अवस्था में इसका उल्लंघन होता है तो इससे रजस्वला दोष उत्पन्न हो जाता है ।
इस रजस्वला दोष को दूर करने के लिए ऋषि पंचमी का व्रत Rishi panchami vrat किया जाता है।कुछ लोग हरतालिका तीज से तीन दिन के व्रत को ऋषि पंचमी के दिन सम्पूर्ण करते है।
ऋषि पंचमी की पूजा की विधि
Rishi Panchami Ki Pooja Vidhi
स्नानादि करके शुद्ध वस्त्र धारण करें।
अपने घर के स्वच्छ स्थान पर हल्दी , कुंकुम , रोली आदि से चौकोर मंडल बनायें।
उस पर सप्तऋषि की स्थापना करें।
साफ पानी और पंचामृत से स्नान कराएं।
चन्दन का टीका करें।
फूल माला व फूल अर्पित करें।
यग्योपवीत ( जनेऊ ) पहनाये।
सफ़ेद वस्त्र अर्पित करें।
फल , मिठाई आदि का भोग लगाएं ।
अगरबत्ती धूप दीप आदि जलाएं।
भक्ति भाव से प्रणाम करें।
इस व्रत में कुछ जगह हल की मदद से पैदा होने वाला अनाज नहीं खाया जाता। कुछ जगह सिर्फ चावल खाया जाता है। ब्रह्मचर्य व्रत का पालन किया जाता है।
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