कार्तिक स्नान का महत्त्व लाभ और तरीका – Kartik Snan

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कार्तिक स्नान Kartik snan कार्तिक महीने की एक मुख्य धार्मिक परंपरा है। इस समय महीने भर तक रोजाना पवित्र नदी , तालाब या समुद्र आदि में स्नान किया जाता है तथा भक्तिभाव से भगवान विष्णु की पूजा की जाती है।

कार्तिक मास धार्मिक कार्य के लिए बहुत शुभ महीना होता है। इस महीने में मंदिर में जागरण , कीर्तन , दीपदान , तुलसी और आंवले के पेड़ की पूजा करना श्रेष्ठ फलदायी होता है।

कार्तिक के महीने में कई मुख्य त्यौहार आते हैं जैसे करवा चौथ , तुलसी विवाह , दिवाली , कार्तिक पूर्णिमा आदि। इस मास में भगवान के निमित्त किये गए पुण्य कर्म का कभी नाश नहीं होता। कार्तिक मास में दिया गया दान अक्षय रूप में प्राप्त होता है। सर्वाधिक महत्त्व अन्नदान का होता है।  कार्तिक मास में रोजाना गीता का पाठ करना शुभ होता है।

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कार्तिक स्नान – Kartik Snan

कार्तिक स्नान का एक अलग ही महत्त्व है। यह शारीरिक, मानसिक और धार्मिक रूप से महत्वपूर्ण  है। कार्तिक स्नान शरद पूर्णिमा आश्विन पूर्णिमा से शुरू होकर कार्तिक पूर्णिमा तक किये जाते हैं।

शास्त्रों के अनुसार कार्तिक महीने में जो लोग भोर से पहले उठकर नदी तालाब आदि में स्नान करके विष्णुजी की पूजा करते है उन पर भगवान की असीम कृपा होती है। भगवान विष्णु कार्तिक मास में जल में निवास करते हैं।

जो लोग भोर से पहले पानी से स्नान करते हैं उन्हें सुख समृद्धि और स्वास्थ्य लाभ होता है। जो लोग कार्तिक महीने में समुद्र या नदी में नहाते हैं उन्हें अश्व मेघ यज्ञ जैसा लाभ होता है। इस समय गंगा माता द्रव रूप में नदियों , तालाबों और समुद्र में फैल जाती हैं।

 

कार्तिक स्नान और पूजा के कारण ही सत्यभामा को श्रीकृष्ण की पत्नी बनने का सौभाग्य मिला था। पुराणों के अनुसार कार्तिक महीने में स्नान , दान और व्रत आदि करने से पाप नष्ट होते हैं। इस मास में पूजा और व्रत से तीर्थ यात्रा के सामान शुभ फल प्राप्त होता है।

जिस प्रकार का फल प्रयाग में कुम्भ स्नान से मिलता है उसी प्रकार का फल कार्तिक महीने में किसी पवित्र नदी के तट पर स्नान से मिल सकता है।

कार्तिक महीने में स्नान का वैज्ञानिक कारण भी है। वर्षा ऋतु में बहुत से सूक्ष्म जीव पनप जाते हैं। बारिश के मौसम के बाद कार्तिक में आसमान साफ हो जाता है और सूरज की किरणें सीधे धरती पर पड़कर हानिकारण जीवों को नष्ट कर देती हैं।

इससे वातावरण शुद्ध हो जाता है जो शरीर के अनुकूल तथा लाभदायक होता है। सुबह हवा शुध्द होती है जिसमें ऑक्सीजन प्रचुर मात्रा में होती है। इससे शरीर में प्रतिरोधक क्षमता बढ़ती है और कई सामान्य बीमारियाँ दूर रहती हैं।

कार्तिक स्नान का तरीका

Kartik snan kaise kare

कार्तिक स्नान और व्रत करने वाले को सुबह जल्दी उठकर नित्य कर्मों से निपट कर नदी , तालाब आदि के साफ पानी में प्रवेश करना चाहिए।

आधा शरीर पानी में डूबा रहे पानी में इस प्रकार खड़े होकर स्नान करना चाहिए। गृहस्थ व्यक्ति को काले तिल और आंवले के चूर्ण को शरीर पर मलकर स्नान करना चाहिए।

सन्यासी को तुलसी के पौधे की जड़ में लगी मिट्टी को शरीर पर मलकर स्नान करना चाहिए। स्नान करने के बाद शुद्ध वस्त्र पहन कर विधि विधान से विष्णु भगवान का पूजन करना चाहिए। तुलसी , केला , पीपल और पथवारी का दीपक जला कर पूजन करना चाहिए।

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वर्तमान में यदि नदी तालाब आदि में स्नान संभव ना हो तो घर में सुबह भोर होने से पहले जब तारे दिख रहे हों तब स्नान कर लेना चाहिए। इसके बाद मंदिर जाकर भगवान विष्णु की पूजा करनी चाहिए। भजन कीर्तन करने चाहिए और कार्तिक महत्तम और कथा सुननी चाहिए। मंदिर नहीं जा पाएं तो घर में पूजा की जा सकती है।

सप्तमी , द्वितीया , नवमी , दशमी , त्रयोदशी तथा अमावस्या को तिल व आंवला से स्नान नहीं किया जाता है। कार्तिक स्नान करने वाले को कार्तिक मास में तेल नहीं लगाना चाहिए। सिर्फ नरक चतुर्दशी के दिन तेल लगाया जा सकता है।

कार्तिक में त्याग , चीजें छोड़ना

kartik me kya nahi le

कार्तिक स्नान और व्रत करने वालों के लिए इस समय कुछ चीजें वर्जित होती हैं अर्थात व्रत करने वाले को कार्तिक में इनका त्याग कर देना चाहिए। कार्तिक स्नान के समय छोड़ने वाली वस्तुएं इस प्रकार हैं –

राई , खटाई और मादक वस्तुएं ना लें। दाल , तिल , पकवान व दान किया हुआ भोजन ग्रहण न करे।

किसी भी जीव का मांस , पान , तम्बाकू, धूम्रपान , नींबू , मसूर , बासी या झूठा अन्न ना लें।

केवल एक बार पत्तल में भोजन करना चाहिए।

इसके अलावा गाजर , मूली , लौकी , काशीफल , तरबूज , मट्ठा , मसूर , प्याज , सिंघाड़ा , काँसे में भोजन , भंडारे का भोजन , सूतक या श्राद्ध का अन्न आदि का उपयोग नहीं करना चाहिए।

व्रत करने वाले को प्रतिपदा को कुम्हड़ा , द्वितीया को कटहल , तृतीया को तरुणी स्त्री , चतुर्थी को मूली , पंचमी को बेल , षष्ठी को तरबूज , सप्तमी को आंवला , अष्टमी को नारियल , नवमी को मूली , दशमी को लौकी , एकादशी को परवल , द्वादशी को बेर , त्रयोदशी को मठ्ठा , चतुर्दशी को गाजर , और पूर्णिमा को शाक यह वस्तुएं प्रयोग न करे। रविवार को आंवला नहीं लें।

कार्तिक स्नान करने वाले को कड़वे वचन , झूठ बोलने तथा ईर्ष्या द्वेष आदि से बचना चाहिए। इसके अलावा गुरु, स्त्री , महात्मा , देवता , ब्राह्मण आदि की निंदा नहीं करनी चाहिए।

कार्तिक में दान

kartik me kya daan kare

कार्तिक महीने में अन्न दान के अलावा केला तथा आंवले का दान करना चाहिए। सर्दी से परेशानी पाने वाले गरीब को कपड़े और ऊनी वस्त्र दान करने चाहिए। राह चलकर आये थके मांदे भोजन कराना चाहिए। भगवान के मंदिर में कलर पेंट आदि में सहयोग करना चाहिए तथा भगवान के लिए वस्त्र आभूषण आदि देने चाहिए।

कार्तिक स्नान के अन्य व्रत

तारा भोजन व्रत – Tara bhojan vrat

कार्तिक महीने में यह व्रत करने पर रात को तारों को अर्घ्य देने के बाद तारों की छांव में ही भोजन किया जाता है। व्रत पूरे होने पर व्रत का उद्यापन किया जाता है।

छोटी सांकली व्रत – chhoti sankali vrat

छोटी सांकली के व्रत में पूनम से व्रत शुरू होता है। दो दिन छोड़कर एक दिन उपवास रखा जाता है। बीच में रविवार या एकादशी हो तो उस दिन भी उपवास रखा जाता है। इस प्रकार पूरे महीने व्रत करते हैं। व्रत पूरा होने पर व्रत का उद्यापन किया जाता है।

बड़ी सांकली व्रत – badi sankali vrat

बड़ी सांकली का व्रत पूनम से शुरू किया जाता है। एक दिन छोड़कर एक दिन उपवास रखा जाता है। बीच में रविवार और एकादशी आने पर उस दिन भी उपवास रखते हैं। व्रत पूरा होने पर उद्यापन किया जाता है।

चन्द्रायण का व्रत – chandrayan vrat

कार्तिक लगते ही पूर्णिमा से यह व्रत शुरू किया जाता है। एक पाटे पर भगवान की तस्वीर रखकर बगल में जौ उगाये जाते है। एक महीने तक अखंड दीपक जलाया जाता है। रोजाना पूजा की जाती है। एक तुलसी का पत्ता और गंगाजल रोजाना लिया जाता है। गमले में तुलसी का पौधा रखें और रोजाना तुलसी की भी पूजा करें।

पूनम से एक कौर बादाम के हलवे का खाकर शुरुआत करके अगले दिन दौ कौर फिर तीन इस प्रकार हर दिन एक कौर बढ़ाते हुआ अमावस्या तक 15 कौर खाये जाते हैं।

इसके बाद एक एक कौर कम करते हुए पूनम के दिन एक कौर लिया जाता है। पूनम के दिन अच्छे से पूजा करके रात को हवन किया जाता है। दूसरे दिन ब्राह्मणियों को भोजन कराके दक्षिणा आदि देकर विदा करते है ।

भीष्म पंचक व्रत – bhishma panchak vrat

कार्तिक मास शुक्ल पक्ष की एकादशी से पूर्णिमा तक भीष्म पंचक व्रत किया जाता है। पांच दिन तक अन्न ग्रहण नहीं किया जाता है। शाकाहार ,भूमि पर शयन तथा ब्रह्मचर्य का पालन किया जाता है।

सुबह भगवान की पूजा विधि विधान से करके ‘ ओम नमो भगवते वासुदेवाय ‘ मन्त्र का 108 बार जाप करते हैं । पांच दिन तक अखंड दीपक जलाया जाता है।

व्रत के बाद महात्मा भीष्म के लिए तर्पण किया जाता है तथा अर्घ्य दिया जाता है। अर्घ्य देने के बाद विधि विधान से श्रीहरि का पूजन किया जाता है तथा  ब्राह्मण भोजन के बाद अन्न ग्रहण किया जाता है।

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