खाटू श्याम बर्बरीक महाभारत कथा – Khatu shyam Barbarik story

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खाटू श्याम बाबा Khatu Shyam के दर्शन के लिए दूर दूर से लोग आते हैं। इसका सम्बन्ध महान योद्धा और दानी  बर्बरीक Barbarik से है।

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श्याम बाबा का धाम खाटू कैसे बना और यहाँ किसकी पूजा की जाती है। इस बारे में महाभारत कालीन कथा प्रचलित है। आइये जानते है खाटू श्याम बाबा की कहानी –

खाटूश्याम बाबा की कहानी – Khatu shyam baba story

यह घटना महाभारत के समय की है। अति बलशाली गदाधारी भीम के पुत्र थे घटोत्कच। घटोत्कच और नागकन्या के पुत्र थे बर्बरीक। बर्बरीक बचपन से ही बहुत वीर और महान योद्धा थे। उन्होंने युद्ध कला अपनी माँ और कृष्ण से सीखी थी।

बर्बरीक ने महादेव की घोर तपस्या की और शिवजी ने प्रसन्न होकर उन्हें तीन अमोघ बाण वरदान में दिए थे , इसलिए वो तीन बाण धारी के नाम से प्रसिद्द हुए। इसी तरह अग्निदेव से उन्होंने धनुष प्राप्त किया जो उन्हें तीनो लोकों में विजयी बना सकता था।

जब महाभारत का युद्ध निश्चित हो गया तो बर्बरीक की भी युद्ध में हिस्सा लेने की इच्छा हुई। जब वे आशीर्वाद लेने माँ के पास पहुंचे तो माँ ने उन्हें हारे हुए पक्ष का साथ देने की सलाह दी और ऐसा ही वचन लिया।

वे अपने नीले रंग के घोड़े पर सवार होकर तीन बाण और धनुष के साथ युद्ध भूमि की और चल पड़े ।( खाटू वाले श्याम बाबा की कथा ….. )

श्रीकृष्ण को जब यह ज्ञात हुआ तो वे ब्राह्मण के भेष में बर्बरीक की परीक्षा लेने के लिए उनसे रास्ते में मिले। सिर्फ तीन बाण लेकर युद्ध में शामिल होने पर हँसते हुए पूछा कि इनसे कैसे युद्ध होगा। बर्बरीक ने बताया कि सिर्फ एक बाण पूरी शत्रु सेना को नष्ट कर सकता है और तीन बाण तो पूरे ब्रह्माण्ड का विनाश कर सकते हैं।

श्रीकृष्ण बोले जिस पीपल के पेड़ के नीचे हम खड़े है उसके सारे पत्ते एक बाण से भेद कर दिखाओ तब मानू।

बर्बरीक ने ईश्वर को स्मरण करके एक बाण पत्तों की तरफ चलाया और वह बाण क्षण भर में सारे पत्तों को भेदकर श्री कृष्ण के पैर के इर्द गिर्द चक्कर काटने लगा। क्योंकि एक पत्ता श्रीकृष्ण ने अपने पैर के नीचे छुपा लिया था।

बर्बरीक ने कहा पैर हटा लीजिये वर्ना यह बाण आपके पैर को भेद देगा। श्रीकृष्ण बहुत प्रभावित हुए और उन्होंने बर्बरीक से पूछा कि वह किसकी तरफ से युद्ध में शामिल होंगे ?

बर्बरीक ने माँ को दिए वचन के बारे में बताया और कहा कि युद्ध में निर्बल और हारते हुए पक्ष की तरफ से युद्ध करेंगे। श्री कृष्ण जानते थे कि हार तो कौरवों की निश्चित है और बर्बरीक ने उनका साथ दिया तो परिणाम गलत पक्ष की ओर चला जायेगा। यह श्रीकृष्ण नहीं चाहते थे।( Khatu vale shyam baba ki kahani ….)

ब्राह्मण रुपी कृष्ण ने वीर बर्बरीक से दान की अभिलाषा की। बर्बरीक ने कुछ भी मांगने पर दान देने का वचन दे दिया। ब्राह्मण ने उनके शीश का दान मांग लिया।

अचंभित होकर उन्होंने कहा कि आप साधारण ब्राह्मण नहीं हो सकते क्योंकि ऐसा दान हर कोई नहीं मांग सकता। वचन से बंधे होने के कारण दान तो मैं करूँगा लेकिन पहले आप अपना वास्तविक परिचय दीजिये और ऐसा दान मांगने का कारण बताइये।

श्रीकृष्ण अपने असली रूप में आये और समझाया कि युद्ध शुरू होने से पहले भूमि के पूजन के लिए तीनो लोक में सर्वश्रेष्ठ क्षत्रिय के शीश की आहुति देनी होती है। इसलिए उन्होंने शीश का दान माँगा। बर्बरीक ने कहा कि ठीक है लेकिन पूरा युद्ध देखने की इच्छा जताई जिसे श्रीकृष्ण ने स्वीकार कर लिया।

इस बलिदान से प्रसन्न होकर  श्रीकृष्ण ने उन्हें सर्वश्रेष्ठ वीर की उपाधि दी। उनके शीश को युद्ध भूमि के पास की एक पहाड़ी पर सुशोभित कर दिया जहाँ से बर्बरीक पूरा युद्ध देख सकते थे। जिस दिन उन्होंने अपना शीश दान किया वह फाल्गुन मास की द्वादशी तिथि थी।( shri shyam baba Khatu dham ki katha …..)

महाभारत का युद्ध समाप्त हुआ तो पांडव आपस में विवाद करने लगे कि युद्ध में विजय का श्रेय किसको जाता है ? श्रीकृष्ण ने कहा कि बर्बरीक के शीश ने पूरा युद्ध देखा है अतः उनसे पूछते हैं।

बर्बरीक के शीश ने उत्तर दिया की युद्ध जीतने का श्रेय सिर्फ श्रीकृष्ण को है क्योंकि उनकी शिक्षा और युद्धनीति ही निर्णायक थी। युद्ध भूमि में सिर्फ श्रीकृष्ण का सुदर्शन चक्र ही घूमता हुआ दिखाई दे रहा था जो शत्रु सेना को नष्ट कर रहा था।

वीर बर्बरीक के महान बलिदान से प्रसन्न होकर श्रीकृष्ण में उन्हें वरदान दिया की वे कलियुग में श्याम के नाम से जाने जायेंगे और पूजे जायेंगे क्योंकि उस युग में हारे हुए का साथ देने वाला ही श्याम नाम धारण करने में समर्थ होगा। सच्चे मन और प्रेमभाव से उनकी पूजा करने वाले की सभी मनोकामना पूर्ण होगी।

महान बर्बरीक का शीश खाटू नगर में दफनाया गया इसलिए उन्हें खाटू श्याम बाबा कहा जाता है। एक गाय उस स्थान पर आकर रोज अपने स्तनों से दुग्ध की धारा स्वतः ही बहाती थी।

बाद में खुदाई के बाद वह शीश प्रकट हुआ। खाटू नगर के राजा को स्वप्न में मन्दिर निर्माण के लिए और वह शीश मन्दिर में सुशोभित करने के लिए प्रेरित किया गया। उस स्थान पर मन्दिर का निर्माण किया गया और कार्तिक माह की एकादशी को शीश मन्दिर में सुशोभित किया गया जिसे बाबा श्री श्याम खाटू वाले के जन्मदिन के रूप में मनाया जाता है।

मूल मंदिर रूपसिंह चौहान और उनकी पत्नी नर्मदा कँवर द्वारा बनाया गया था। मारवाड़ के शासक ठाकुर के दीवान अभय सिंह ने ठाकुर के निर्देश पर मंदिर का जीर्णोद्धार कराया। मंदिर इस समय अपने वर्तमान आकार ले लिया और मूर्ति गर्भगृह में प्रतिस्थापित किया गया था।

!!! श्री श्याम बाबा की जय !!!

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