गर्भ निरोधक उपाय और फायदे नुकसान – Contraceptive And Birth Control

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गर्भ निरोधक Contraceptive का अर्थ है ऐसे उपाय जिन्हें अपनाने से यौन सम्बन्ध बनाने के बाद गर्भधारण Pregnancy नहीं होता। ये कंट्रासेप्टिव कहलाते हैं।

सम्भोग करने पर पुरुष के वीर्य में मौजूद शुक्राणु महिला के गर्भाशय में प्रवेश कर जाते है। ओवरी से अंडे का निकलना ( ओव्यूलेशन ) भी इसी समय हो तो को शुक्राणु अंडे को निषेचित कर सकते है।

इससे गर्भ धारण ( conceive ) हो जाता है। गर्भाशय में बच्चे का विकास होने लगता है। गर्भ निरोधक इस प्रक्रिया को रोकते है। इनके उपयोग करने से शुक्राणु अंडे को निषेचित नहीं कर पाते या गर्भधारण के अनुकूल परिस्थिति नहीं बन पाती और गर्भधारण नहीं हो पाता है।

गर्भधारण (Pregnancy ) होने से रोकने के कई उपाय उपलब्ध है। जिनमे से कुछ पुरुष द्वारा उपयोग किये जाने के लिए होते है तथा कुछ महिला द्वारा उपयोग में लाये जाते है।

कुछ साधन यौन सम्बन्ध से होने वाली बीमारी ( Sexually Transmitted Diseases – STD ) तथा यौन सम्बन्ध से फैलने वाले इन्फेक्शन ( STI ) को रोकने में सहायक होते है। इनमे कंडोम जैसे गर्भ निरोधक होते है। क्योंकि इनके उपयोग में लिंग की त्वचा तथा योनि की त्वचा का सीधा संपर्क नहीं होता।

कुछ गर्भ निरोधक हार्मोन में बदलाव करके ओवरी से अंडे का निकलना रोक देते है , इस वजह से गर्भ धारण नहीं होता। जैसे गर्भ निरोधक गोलियां। कुछ गर्भ निरोधक डॉक्टर द्वारा गर्भाशय में लगाए जाते है जैसे कॉपर टी। इसके अलावा महिला और पुरुष  नसबंदी का आपरेशन करके भी गर्भधारण रोका जा सकता है।

गर्भ निरोध के साधन की सफलता की दर अलग अलग होती है। सभी गर्भ निरोधक में कुछ प्रतिशत विफलता की संभावना अवश्य होती है। इसके अलावा कुछ गर्भ निरोधक के साइड इफ़ेक्ट भी होते है। जिस गर्भ निरोधक के उपयोग से परेशानी ना हो उस प्रकार का गर्भ निरोधक यूज़ करना चाहिए।

गर्भ निरोधक विशेष परिस्थितियों में उपयोग के लिए होते है। इनका दुरूपयोग यौन स्वच्छन्दता के लिए नहीं करना चाहिए। प्रकृति के दिए हुए प्रजनन के अनमोल उपहार की गरिमा बना कर रखनी चाहिए। अन्यथा यौन सम्बन्ध आनंद की जगह शारीरिक और मानसिक परेशानी का कारण बन सकते है। गर्भ निरोधक  के रूप में उपयोग में लाये जाने वाले साधन इस प्रकार है :

गर्भ निरोधक गोलियां  – Birth Control Pills

गर्भ निरोधक गोलियां महिला द्वारा ली जाती है। यह गोली नियम पूर्वक रोजाना एक लेनी होती है। गोली लेने से ओवरी से अंडा निकलना बंद हो जाता है तथा गर्भाशय का रास्ता भी अवरुद्ध हो जाता है जिससे शुक्राणु गर्भाशय में प्रवेश नहीं कर पाते।

यह गर्भ निरोध का एक अच्छा साधन है। यदि डॉक्टर के बताये अनुसार नियमपूर्वक ये गोली ली जाये तो इसकी सफलता की दर सबसे अधिक होती है। इस गोली से कुछ अन्य फायदे भी हो सकते है। गोली लेने में चूक ना हो इसका ध्यान रखना चाहिए ।

ये गोलियाँ हार्मोन को प्रभावित करती है अतः इसके साइड इफ़ेक्ट के रूप में कुछ अन्य प्रभाव शरीर पर पड़ सकते है। स्तन में सूजन , जी घबराना या उल्टी होना जैसे लक्षण प्रकट हो सकते है। गोली लेने पर शरीर में हुए परिवर्तन के प्रति सावधान रहना चाहिए।

डॉक्टर की सलाह के बाद ही ये गोलियाँ लेनी चाहिए। साइड इफ़ेक्ट के बारे डॉक्टर से पूरी जानकारी ले लेनी चाहिए। गोलिया STI या STD रोकने में कोई भूमिका अदा नहीं करती।

ये गोलिया दो प्रकार की होती है। एक जिसमे एस्ट्रोजन तथा प्रोजेस्टिन दोनों हार्मोन होते है। तथा दूसरी जिसमे सिर्फ प्रोजेस्टिन हार्मोन होते है। सिर्फ प्रोजेस्टिन वाली गोली दिन में एक निश्चित समय पर लेनी होती है जिसमे तीन घंटे से ज्यादा देर नहीं होनी चाहिए।

पुरुष कंडोम – Male Condom

ये लेटेक्स से बने होते है । यह आसानी से हर मेडिकल स्टोर पर उपलब्ध है , उपयोग में लेने में आसान होता है तथा यह महंगा नहीं होता है। यह सबसे अधिक उपयोग में लिया जाने वाला गर्भ निरोधक है। इसके उपयोग से यौन सम्बन्ध से फैलने वाली बीमारियों से जैसे एड्स आदि से बचाव  हो सकता है।

इसे सम्भोग से पहले पुरुष द्वारा उत्तेजित लिंग पर पहना जाता है। स्खलन के बाद वीर्य और शुक्राणु इसी में इकठ्ठा हो जाता है। इस प्रकार से निषेचन और गर्भधारण नहीं हो पाता।

कंडोम के उपयोग में स्खलन के बाद लिंग की उत्तेजित अवस्था में ही लिंग को योनि से बाहर निकाल लेना चाहिए अन्यथा वीर्य के योनि में जाने की संभावना होती है। एक बार काम में लेने के बाद इसे फेंक देना होता है।

इसे खरीदने या इस्तेमाल करने डॉक्टर की मदद की आवश्यकता नहीं होती है। यह असफल भी हो सकता है यदि इसे लिंग पर सही तरीके से नहीं लगाया हो या यह सहवास के समय फट जाये।

कंडोम के पैकेट में इसे उपयोग करने का सही तरीका लिखा होता है। इसकी सफलता की दर अधिक होती है। कंडोम के उपयोग से शीघ्रपतन में भी लाभ मिल सकता है।

महिला कंडोम – Female Condom

महिला कंडोम भी पुरुष कंडोम की तरह मेडिकल स्टोर पर मिल जाते है। इसे योनि के अंदर लगाया जाता है। यह एक छोटी थैली जैसे होते है। इसके सिरों पर रिंग होती है जिसमे से एक अंदर डालनी होती है तथा दूसरी बाहर रखनी होती है। बाहर वाली रिंग का मुँह खुला रहता है।

इससे पूरी योनि में एक दीवार सी बन जाती है । शुक्राणु इसी में रह जाते है आगे नहीं जा पाते। इस प्रकार निषेचन नहीं होता। ये पुरुष कंडोम से कुछ महंगे होते है। इनके फटने की संभावना कम होती है।

सहवास के बाद इसे सावधानी पूर्वक निकालना चाहिए। इन्हें सहवास से लगभग आठ घंटे पहले लगाया जा सकता है। इनके उपयोग करने पर लिंग की त्वचा और योनि की त्वचा का सीधा संपर्क नहीं होता इसलिए ये यौन सम्बन्ध से होने वाली बीमारी STI से बचाव करते है। इनकी सफलता की दर ज्यादा होती है।

आईयूडी – Intrauterine  Device

आईयूडी डॉक्टर द्वारा महिला के गर्भाशय में लगाए जाने वाला छोटा सा यंत्र होता है। यह गर्भाशय में गर्भ धारण नहीं हीने देता। ये दो प्रकार के होते है कॉपर युक्त और हार्मोन युक्त।

कॉपर टी ऐसी ही एक पुरानी और जानी मानी कॉपर युक्त डिवाइस है। इसी प्रकार का हार्मोन युक्त यंत्र भी गर्भाशय में लगाया जाता है जिसके कारण गर्भ धारण नहीं होता है। ये थोड़े महंगे होते है लेकिन एक बार लगवाने के बाद कई वर्षों तक काम देते है।

गर्भ निरोध

यदि गर्भ धारण करना हो तो इन्हें कभी भी निकलवाया जा सकता है। इन्हें लगवाने या निकालने के लिए डॉक्टर के पास जाना होता है। इन्हें लगवाने के बाद शुरू में 2 -3 महीने तक कुछ परेशानी हो सकती है जैसे ज्यादा ब्लीडिंग , कुछ दिन पीठ में दर्द आदि।  इनकी सफलता की दर अधिक होती है। लेकिन ये STI या STD से सुरक्षा नहीं देते।

हॉर्मोन के इंजेक्शन – Birth Control Shot

जिस प्रकार हार्मोन की गोलियां काम करती है उसी प्रकार हार्मोन का इंजेक्शन काम करता है। यह इंजेक्शन महिला के ओवरी में बनने वाले अंडे का निर्माण रोक देता है। इंजेक्शन लगाने के तीन महीने बाद तक गर्भ धारण से बचाव होता है। हर तीन महीने बाद इसे फिर से लगाना होता है ।

नियमित रूप से ये इंजेक्शन लगवाने पर ये बहुत सफल रहते है। ये STI से नहीं बचा सकते। इसे डॉक्टर की सलाह लेकर लगवाना चाहिए। हार्मोन के कारण साइड इफ़ेक्ट गोली से अधिक हो सकते है। जिसमे वजन बढ़ना , मासिक धर्म की अनियमितता , जी मिचलाना , स्तन में दर्द या संवेदना , सिरदर्द आदि हो सकते है।

आपातकालीन गर्भ निरोधक गोली – Emergency Pills

यदि बिना किसी साधन के यौन सम्बन्ध बनाया हो या कुछ गलत हो गया हो जैसे कंडोम फट गया हो या गोली लेना भूल गए हो या किसी और कारण से अचानक पड़ने वाली आवश्यकता के लिए ये गर्भनिरोधक होते है।

ये रोजाना नहीं लेने चाहिए। इन्हें मॉर्निंग आफ्टर पिल कहा जाता है। इसे 24 घंटे बाद तक ले सकते है। इसके बाद 72 घंटे तक भी इसका असर हो सकता है लेकिन संभावना आधी हो जाती है।

गोली लेने के घंटे बाद उल्टी होने पर गोली दुबारा लेनी पड़ती है। सरकारी सामुदायिक स्वास्थ्य केंद्र तथा प्राथमिक स्वास्थ्य केंद्र पर ये गोलियां निशुल्क उपलब्ध होती है।

प्राकृतिक तरीके से गर्भ रोकना – Fertility Awareness Method

यदि माहवारी निश्चित समय होती है तो यह तरीका उपयोग में लाया जा सकता है। एक स्वस्थ महिला में ओवरी से अंडा निकलने का एक निश्चित समय होता है। यदि उस समय यौन सम्बन्ध नहीं बनाये जाये तो गर्भ धारण नहीं होगा।

ओवरी से अंडा निकलने का पता चलने के तीन तरीके हो सकते है। दिनों की गणना , योनि के स्राव में बदलाव तथा शरीर के तापमान में बदलाव। इन तीनो का ध्यान रखने पर इस तरीके की सफलता की दर बहुत अच्छी हो सकती है

दिनों की गणना : 

यदि माहवारी 28 दिन में होती है तो अंडा ओवरी से माहवारी शुरू होने के लगभग 14 दिन बाद निकलता है। यदि इस दिन से पहले के पाँच-छः दिन और बाद के तीन-चार दिन यौन सम्बन्ध नहीं बनाया जाये तो गर्भ धारण नहीं होता। यह लगभग 8-9  दिन का समय  होता है। इन 8 -9 दिनो को छोड़ कर यौन सम्बन्ध बनाया जा सकता है।

योनि के स्राव में बदलाव :

माहवारी ख़त्म होने के तुरंत बाद योनि में सूखापन होता है। 6 -7 दिन बाद चिपचिपा रबर जैसा स्राव महसूस होने लगता है। दो तीन दिन बाद यह स्राव थोड़ा नर्म पड़ता है फिर गीलापन लिए फिसलन वाले स्राव में परिवर्तित हो जाता है। जिस समय फिसलन वाला स्राव महसूस हो वह समय ओव्यूलेशन यानि अंडा निकलने का समय होता है।

उसके बाद वापस चिपचिपा स्राव और फिर सूखापन आ जाता है। इस चक्र में जब सूखापन हो तब यौन सम्बन्ध बनाने पर गर्भ धारण होने की संभावना नहीं होती है।

शरीर के तापमान में बदलाव :

जब ओव्यूलेशन होता है तो शरीर का तापमान मामूली सा बढ़ जाता है। रोजाना तापमान लेकर लिखने पर ये अंतर महसूस हो सकता है।

जब तापमान बढ़े तो उसे ओव्यूलेशन जानकर यौन संबंध नहीं बनाने से गर्भ धारण से बचाव हो सकता है। यह तापमान सुबह नींद खुलते ही सबसे पहले लिया जाना चाहिए। इसके लिए थर्मामीटर ऐसा होना चाहिए जो मामूली अंतर को भी सही से दिखा सके।

ये बदलाव होने के अन्य कारण भी हो सकते है। अतः ध्यान पूर्वक इस तरीके को काम में लेना चाहिए। इस तरीके की  दर 75 % से 99 %  है। इसमें निश्चित दिनों का माहवारी समय जरूरी होता है।

यदि माहवारी की तारीख आगे पीछे होती रहती है तो इसके सफलता की दर कम हो सकती है। यह तरीका शुरू में थोड़ा मुश्किल जरूर लगता है लेकिन एक बार अपने शरीर को समझने के बाद यह शानदार प्राकृतिक उपाय बन जाता है।

सरवाइकल कैप ( डायाफ्राम )  – Cervical Cap

ये सिलिकॉन से बने छोटे कप जैसे होते है। यह योनि के अंदर डाला जाने वाला गर्भ निरोधक है जो गर्भाशय के मुंह को बंद कर देता है जिससे शुक्राणु गर्भशय के अंदर प्रवेश नहीं कर पाते और गर्भ धारण नहीं होता।

यह यौन सम्बन्ध से फैलने वाली बीमारी को नहीं रोकता। योनि में लगाने से पहले इस पर शुक्राणु नाशक लगाना होता है तभी यह पूरी तरह कारगर हो पाता है। इसे लगाना सीखकर उपयोग करना चाहिए।

इसे सम्भोग से छः घंटे पहले  लगाया जा सकता है। 24 घण्टे के अंदर इसे निकाल कर साफ करके दुबारा काम में ले सकते है। यदि इसके उपयोग से योनि में खुजली या जलन आदि हो तो यह सिलिकॉन या शुक्राणु नाशक से एलर्जी के कारण हो सकता है। ऐसी स्थिति में डॉक्टर से सलाह लेनी चाहिए।

गर्भ निरोध

यदि डायाफ्राम की सही देखभाल की जाये तो एक डायाफ्राम दो साल तक काम दे सकता है। इस्तेमाल के बाद इसे गुनगुने पानी और साबुन से धोकर साफ किया जाता है। इसके साथ वैसलीन या कोल्ड क्रीम का उपयोग नहीं करना चाहिए अन्यथा ये ख़राब हो सकते है। इन्हें सूखाने के लिए पाउडर का यूज़ भी नहीं करना चाहिए।

नसबंदी और बंध्याकरण – Vasectomy , Tubectomy

ये तरीके बहुत लंबे समय या हमेशा के लिए गर्भधारण होने से बचने के लिए होते है।

पुरुष नसबंदी 

पुरुष नसबंदी में शुक्राणु का रास्ता बंद कर दिया जाता है। इस आपरेशन के बाद वीर्य तो निकलता है लेकिन उसमे शुक्राणु नहीं होते। इस कारण से गर्भधारण नहीं होता।

यह एक छोटा सा आपरेशन होता है। डॉक्टर की सलाह से आपरेशन वाले दिन ही हॉस्पिटल से छुट्टी ली जा सकती है तथा सामान्य काम काज किये जा सकते है। गर्भ निरोध का यह बहुत अधिक सफल तरीका है।

गर्भ निरोध

महिला नसबंदी 

महिला नसम्बन्दी या बंध्याकरण में अंडे का रास्ता बंद किया जाता है। इस कारण निषेचन नहीं हो पाता। महिला के लिए भी छोटा सा आपरेशन होता है।

ये दो तरीके से हो सकता है। पहले तरीके में योनि मार्ग से फेलोपियन ट्यूब में अवरोधक डालकर अंडे का रास्ता बंद किया जाता है। इसमें तीन महीने तक दूसरा गर्भ निरोधक उपयोग में लेने की जरुरत होती है।

दूसरे तरीके में फेलोपियन ट्यूब को काटकर या बांधकर अंडे का रास्ता बंद किया जाता है। उसी दिन घर जा सकते है। ये बहुत सफल तरीके है।

बाहर स्खलन – Withdrawl Method

कुछ लोग योनि से बाहर स्खलन ( विथड्राल मेथड ) को गर्भ निरोध का एक तरीका मानते है जो सबसे ज्यादा विफल होता है। इस तरीके में स्खलन से पहले लिंग को बाहर निकाल लिया जाता है। इस तरीके का उपयोग नहीं करना चाहिए। क्योकि सहवास के समय स्खलन से पहले भी शुक्राणु योनि में जा सकते है तथा लिंग को बाहर निकालने के समय में गलती होने की पूरी सम्भावना होती है।

गर्भ निरोधक स्पॉन्ज – Contraceptive Sponge

यह पोलीयूरेथिन से बना छोटा गोलाकार स्पॉन्ज होता है जिसे योनि में रख जाता है। इसमें शुक्राणु नाशक पदार्थ होता है। जो शुक्राणुओं को गर्भाशय में जाने से रोक देता है। सम्भोग के बाद लगभग छः घंटे तक इसे वही रहने देना होता है। लेकिन 24 घंटे के अंदर निकाल देना होता है। यह STI से बचाव नहीं करता है।

वैजाइनल रिंग – Vaginal Ring

यह एक छोटी प्लास्टिक की रिंग होती जिसे योनि में रखा जाता है। इसे तीन सप्ताह तक अंदर रख सकते है। इसमें गोलियों जैसे हार्मोन होते है। इनका असर और साइड इफ़ेक्ट गोली जैसा ही होता है।

इसे खुद लगाया जा सकता है लेकिन एक बार डॉक्टर की सलाह जरुरी होती है। इससे  STI से बचाव नहीं होता। तीन सप्ताह के बाद इसे निकाल देने पर माहवारी शुरू हो जाती है।

अगले महीने नयी रिंग उपयोग में लाई जाती है। इसके डायाफ्राम या अन्य अवरोधक की तरह खिसक जाने की चिंता नहीं होती है। यदि माहवारी आगे खिसकानी हो तो तीन सप्ताह के फ़ौरन बाद दूसरी रिंग लगाई जा सकती है।

गर्भ निरोधक पैच – Contraceptive Patch

यह त्वचा पर चिपकाये जाने वाला एक त्वचा के रंग का पैच होता है जिसमे हार्मोन होते है जो धीर धीरे शरीर को मिलते रहते है। यह पैच हाथ पर या पीठ पर चिपकाया जाता है।

इसमें हार्मोन होने के कारण इसके हार्मोन वाले साइड इफ़ेक्ट हो सकते है। यह STI  से बचाव नहीं कर पाता है। इसे तीन सप्ताह तक चिपकाना होता है। माहवारी होने के बाद नया लगाना होता है। गोली लेना भूलने जैसी गलती इसमें नहीं होती। त्वचा पर कुछ परेशानी हो सकती है। यह निकले नहीं इसका ध्यान रखना होता है।

गर्भ निरोधक इम्प्लांट – Contraceptive Implant

यह धातु का एक छोटा सा हार्मोन युक्त टुकड़ा होता है जिसे छोटे से आपरेशन से त्वचा के नीचे लगा दिया जाता है। इसमें प्रोजेस्ट्रोन हार्मोन होता है जो धीरे धीरे शरीर में प्रवाहित होता रहता है। यह तीन वर्ष तक काम करता है। फिर इसे बदलवाना होता है।

सही गर्भ निरोध का साधन कैसे चुने – How to choose

सही गर्भ निरोधक का चुनाव  उम्र , जरुरत , उपलब्धता , गर्भ निरोध का मकसद तथा पॉकेट पर निर्भर करता है। कंडोम का उपयोग हर किसी के लिए इन सभी  मानकों पर खरा उतरता है। यह  STI और STD से भी बचाव करता है। इस वजह से इसे सबसे अच्छा उपाय माना जा सकता है।

कुछ पुरुष यह समझते है की इससे संतुष्टि नहीं मिलती लेकिन यह सिर्फ मानसिक तौर पर होने वाला अहसास भर है। फिर भी बाजार में अल्ट्रा थिन यानि बिल्कुल पतले कंडोम भी मिलते है जो कुदरती अहसास कराने के उद्देश्य से बनाये जाते है।

यदि शादी के तुरंत बाद कुछ समय बच्चा नहीं चाहते तो कंट्रासेप्टिव पिल यानि गर्भ निरोधक गोलियां ली जा सकती है। इन्हें डॉक्टर की सलाह से ही लें। कुछ महिलाएं को गोलियाँ लेने से साइड इफ़ेक्ट हो सकते है। बच्चे को दूध पिलाने वाली माँ के लिए गोलियां सही नहीं रहती है।

यदि दो बच्चों में अंतर रखना हो तो आईयूडी एक अच्छा विकल्प हो सकता है। हार्मोन के इंजेक्शन का उपयोग करना भी इस समय के लिए सही हो सकता है। परिवार पूरा हो चुका है जिससे आप संतुष्ट है तो नसबंदी या बंध्याकरण अपनाये जा सकते है।

हालाँकि गर्भ निरोधक अपना काम बखूबी करते है लेकिन दुर्घटना की संभावना होने के कारण या कुछ गलती होने के कारण 1-2 % केस में गड़बड़ी होने की संभावना जरूर होती है। अतः किसी भी गर्भ निरोधक की सफलता की दर को 100 % सफल नहीं कहा जा सकता है।

कंडोम फटना , स्लिप हो जाना या चढाने उतारते समय गलती होना या गोली लेना भूल जाना जैसी घटनाएँ आमतौर पर हो जाती है। जो प्रेग्नेंसी के रूप में सामने आ सकता  है।

इनको ध्यान में रखते हुए यह कहा जा सकता है कि हार्मोन वाले गर्भ निरोधक 95 % सफल होते है। कंडोम 99 % सफल होते है। डायाफ्राम आदि 80 % से 95 % सफल रहते है। सावधानी के साथ उपयोग करने पर सफलता की दर बढ़ सकती है तथा लापरवाही से कम भी हो सकती है।

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