चिकनगुनिया से बचाव तथा उपचार – Chikungunya Safety And Cure

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चिकनगुनिया Chikungunya का प्रकोप कुछ सालों में बढ़ा है। मानसून की शुरुआत होने के साथ ही उत्तर भारत में और मध्य भारत में ये अधिक होता है। जानिये चिकनगुनिया को और बचिये इस परेशानी से।

जहाँ मच्छर अधिक होते है वहां चिकनगुनिया होने की सम्भावना ज्यादा होती है। मानसून समाप्त होने के बाद भी जगह जगह पानी इकठ्ठा होने से मच्छर पनपते है और कई प्रकार की बीमारिया फैलाते है।

चिकनगुनिया उसी मच्छर के काटने से फैलता है जो डेंगू फैलाता है यानि एडिस एजिप्टी प्रजाति का मच्छर।

चिकनगुनिया

चिकनगुनिया के लक्षण – Chikungunya symptoms

चिकनगुनिया होने पर तेज बुखार , जोड़ों में तेज दर्द और जकड़न ,  सिर दर्द , थकान , घबराहट और स्किन रेशेज हो सकते है। शुरुआत बुखार और जॉइंट पेन से होती है।

मच्छर के काटने के बाद 4 से 7 दिन के अंदर इसका असर दिखना शुरू हो जाता है। इसके लक्षण बहुत कुछ डेंगू जैसे ही होते है। एक समय था जब चिकन गुनिया को डेंगू ही समझा जाता था।

इसमें और डेंगू में समानता की वजह से कई बार समझने में भूल हो जाती है और पता नहीं चल पाता की चिकनगुनिया है या डेंगू।

चिकनगुनिया डेंगू के जितना खतरनाक और घातक नहीं होता  है। चिकनगुनिया और डेंगू दोनों साथ मे भी हो सकते है। कभी कभी इनमे और मलेरिया में भी कंफ्यूजन हो जाता है। ब्लड टेस्ट से ही निश्चित रूप से पता चलता है। चिकन गुनिया का अभी तक कोई वेक्सिन नहीं बना है।

सामान्यतया चिकनगुनिया घातक नहीं होता लेकिन बुखार और दर्द लाचार बना देते है। लगभग एक सप्ताह बाद यह ठीक हो जाता है। पर जॉइंट पेन कई बार महीनो तक ठीक नहीं होता। एक बार चिकनगुनिया होने के बाद सामान्यतया दुबारा नहीं होता।

चिकनगुनिया नाम कैसे पड़ा – Meaning of Chikungunya

इस बीमारी की पहचान सबसे पहले तंज़ानिया में 1952 में हुई थी। वहां की भाषा में चिकन गुन का मतलब होता है –  ” वह जिससे जकड़ जाते है ” यह मकोंडे नामक भाषा का शब्द है। तभी से इस बीमारी को चिकनगुनिया के नाम से जाना जाता है।

चिकनगुनिया की जाँच – Lab Test For Chikangunya

जीनोमिक टेस्ट पीसीआर ( PCR ) विधि

यह टेस्ट चिकनगुनिया की सही जानकारी दे देता है। यह महंगा टेस्ट है । यह टेस्ट बुखार आने के सात दिन के अंदर हो तभी सफल होता है। सात दिन बाद इसे करवाने से सही परिणाम आना मुश्किल होता है।

आईजीएम ( IgM ) एंटीबॉडीज टेस्ट

चिकनगुनिया होने पर हमारे शरीर में इसके वायरस से लड़ने के लिए एंटीबॉडीज बनने लगती है। बुखार होने के एक सप्ताह बाद ये एंटीबॉडीज बनते है। ये एंटीबॉडीज कई महीनो तक बने रहते है।

आईजीजी ( IgG ) एंटीबॉडीज टेस्ट

ये एंटीबॉडीज बुखार होने के 12-13 दिन बाद बनते है। अतः इनकी जाँच भी बाद में हो पाती है।  IgG तथा IgM टेस्ट के लिए एलिसा विधि से पक्की जाँच होती है। इसमें रक्त का सैंपल अधिक लगता है। इसकी रिपोर्ट आने में 2 दिन लग सकते है।

दूसरी विधि इम्यूनोलॉजी विधि होती है। यह आसान , सस्ती तथा तुरंत परिणाम देने वाली विधि है। इस विधि के लिए विशेष मशीन और अनुभव की आवश्यकता होती है। तभी इस विधि से जाँच हो सकती है।

IgG तथा IgM टेस्ट पॉजिटिव या नेगेटिव आने का मतलब

अगर दोनों की रिपोर्ट नेगेटिव आये और लक्षण चिकनगुनिया जैसे ही हो तो 5 -7 दिन बाद  नए सैंपल के साथ टेस्ट करवाना चाहिए। यदि दोनों पॉजिटिव आये तो वायरस का होना निश्चित होता है। IgM तीन चार महीनो तक पॉजिटिव आ सकता है।

IgM पॉजिटिव आये और IgG नेगेटिव आये तो इसका मतलब है कुछ समय पहले ही वायरस का हमला हुआ है। 5 -7 दिन बाद IgG भी पॉजिटिव आने पर निश्चित हो जाता है।

IgM नेगेटिव आये और IgG पॉजिटिव आये तो इसका मतलब वायरस का थोड़े ज्यादा समय पहले हमला हुआ है। यदि ये बॉर्डर लाइन पर हो तो 8 -10 दिन बाद वापस टेस्ट करवाना पड़ता है।

चिकनगुनिया और डेंगू में अंतर

Difference of Chikanguniya and Dengue

चिकनगुनिया में हाथ और पैर में जोड़ों में अधिक दर्द होता है। जॉइंट जकड़ जाते है , सूजन आती है और सुबह दर्द ज्यादा होता है। जबकि डेंगू में पूरे शरीर में दर्द होता है खासकर पीठ , हाथ और पैर की मांसपेशिया अधिक दर्द करती है। घुटने और कंधे के जोड़ों में दर्द होता है।

चिकनगुनिया

चिकनगुनिया में एक दिन छोड़कर बुखार हो सकता है। डेंगू में लगातार बुखार बना रहता है।

चिकनगुनिया में रैशेज़ चेहरे , छाती , पेट , हाथ , पैर , हथेली और तलुओं में हो सकते है जबकि डेंगू में रैशेज़ अधिकतर हाथ , पैर और चेहरे तक ही सीमित होते है।

चिकनगुनिया से ज्यादा खतरा नही होता है। जोड़ों में लंबे समय तक दर्द परेशान कर सकता है। लेकिन डेंगू में खतरे अधिक होते है जिसमे साँस लेने में परेशानी ,  रक्त स्राव और शॉक की समस्या हो सकती है।

चिकनगुनिया से बचने का तरीका

Chkanguniya Se Kaise Bache

चिकनगुनिया से बचने का तरीका यही है कि मच्छर से बचा जाये । मच्छर की रोकथाम करने से ही चिकनगुनिया पर काबू पाया जा सकता है।

यदि थोड़ा सा भी पानी कहीं इकट्ठा है तो वहां मच्छर पनप सकते है। इसलिए बारिश के बाद आसपास पानी जमा ना हो इसका ध्यान रखें। टायर , बोतल , कूलर , गमले आदि में बारिश का पानी जमा हो गया है उसे सुखाएं। कूलर का पानी बदलते रहें ताकि उसमे मच्छर पैदा ना हो पाये ।

यदि पानी सुखा ना सकें तो वहाँ थोड़ा मिट्टी का तेल डाल दे इससे मच्छर पैदा नहीं होंगे।

खुद का बचाव भी जरुरी है। इसके लिए मच्छरदानी , मच्छर वाली क्रीम ,आदि का उपयोग मच्छरों से बचने के लिए करना चाहिए। जहाँ तक संभव हो पूरा शरीर ढका रहे ऐसे कपड़े पहने।

बाहर से मच्छर घर के अंदर ना आने पाये उसके लिए खिड़की पर जाली होनी जरुरी है।

आस पास तुलसी के पौधे लगाएँ। तुलसी के कारण मच्छर के लार्वा नष्ट हो जाते है।

घर के अंदर कपूर जलाकर इसकी धुआं सब तरफ करें । इसकी गंध मच्छर को भगा देती है।

नीम के तेल का दीपक जलाएँ। जब तक दीपक जलेगा मच्छर नहीं आएंगे।

चिकनगुनिया का घरेलु उपचार

Home Remedies for Chikanguniya

कृपया ध्यान दें : किसी भी लाल अक्षर वाले शब्द पर क्लीक करके उसके बारे में विस्तार से जान सकते है 

पानी खूब पीना चाहिए , रेस्ट करना चाहिए।

एक गिलास पानी में दस पत्ते तुलसी ,  चौथाई चम्मच सौंठ पाउडर , नीम गिलोय की बेल का टुकड़ा , 2 छोटी पीपड़ डालकर उबालें। आधा रह जाने पर छानकर थोड़ा गुड़ या मिश्री मिलाकर गुनगुना पियें। सुबह शाम इसे दो तीन लें। इससे चिकनगुनिया ठीक होता है।

तुलसी , अजवायन , किशमिश और नीम की सूखी पत्तियां पानी मे उबालकर छान कर सुबह शाम पीने से चिकनगुनिया में आराम आता है।

गिलोय की बेल का रस , पपीते की पत्ती रस , अनार का रस , गेहूं के जवारे का रस और ग्वारपाठे का रस लेने से चिकनगुनिया और डेंगू और दोनों में आराम मिलता है , इनसे  प्लेटलेट्स में अवश्य बढ़ोतरी होती है।

डॉक्टर की सलाह अवश्य लेनी चाहिए।

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Disclaimer : This post is for awareness only.You should take proper medical advise for treatment.