नरक चतुर्दशी की कहानी – Narak Chaudas Ki Kahani

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नरक चौदस की कहानी कहने और सुनने से व्रत का सम्पूर्ण लाभ मिलता है। यहाँ पढ़ें और जानें या कहानी

नरक चौदस की कहानी

Narak Chaudas Ki Kahani

प्राचीन समय की बात है। रन्तिदेव नाम का एक राजा था। वह पहले जन्म में बहुत धर्मात्मा एवं दानी था। दूर दूर तक उसकी बहुत ही ख्याति थी। अपने पूर्व जन्म के कर्मो की वजह से वह इस जन्म में भी अपार दान आदि देकर बहुत से सत्कार्य किये। दान धर्म करके सबका भला करता था। जरुरत मन्दो को कभी भी निराश नहीं होने देता था।

कुछ समय पश्चात राजा बूढ़ा हो गया , उनके अंत समय में यमराज के दूत लेने आये। राजा को देखकर डराकर घूरते हुए कहा राजन ! तुम्हारा समय समाप्त हो गया अब तुम नरक में चलो। तुम्हे वही चलना पड़ेगा।

नरक चौदस की कहानी

राजा ने सोचा भी नहीं था कि उसे नरक जाना पड़ेगा। राजा ने घबराकर यमदूतो से नरक ले जाने का कारण पूछा और कहा की मैंने तो आजीवन दान धर्म किये सत कर्म किये तो यम के दूतो ने कहा राजा आपने जो दान धर्म किये वह तो दुनिया जानती है किंतु आपके पाप कर्म केवल भगवान और धर्मराज ही जानते हैं।

राजा बोला मेरी आपसे विनती है की आप मेरे पाप कर्म मुझे भी बताने की कृपा करे। तब यमदूत बोले की –एक बार तुम्हारे द्वार से भूखा ब्राह्मण बिना कुछ पाए वापस लौट गया था। वह बहुत ही आशा के साथ तुम्हारे पास आया था इसीलिये तुम्हे नरक जाना पड़ेगा ( narak chaturdashi ki kahani …. )

राजा ने विनती की और कहा – मुझे इस बात का ज्ञान नहीं था। मुझसे भूल बहुत बड़ी भूल हो गई।

कृपा करके मेरी आयु एक वर्ष बढ़ा दीजिये ताकि मैं भूल सुधार सकूँ। यमदूतो ने बिना सोचे समझे हाँ कर दी और राजा की आयु एक वर्ष बढ़ा दी। यमदूत चले गए।

राजा ने ऋषि मुनियो के पास जाकर पाप मुक्ति के उपाय पूछे।

ऋषियों ने बताया – हे राजन ! तुम कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी को व्रत रखना और भगवान कृष्ण का पूजन करना , ब्राह्मण को भोजन कराना तथा दान देकर सब अपराध सुनाकर क्षमा माँगना तब तुम पाप मुक्त हो जाओगे।

कार्तिक मास की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी आने पर राजा ने नियम पूर्वक व्रत रखा और श्रद्धा पूवर्क ब्राह्मण को भोजन कराया। अंत में राजा को विष्णुलोक की प्राप्ति हुई।

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