बछ बारस गोवत्स द्वादशी व्रत पूजा विधि – Bachh Baras Govats dwadashi vrat

8965

बछ बारस Bachh Baras को गौवत्स द्वादशी Govats dwadashi , बच्छ दुआ bach dua , बछवास , ओक दुआस , बलि द्वादशी आदि नामों से भी जाना जाता है। बछ बारस भाद्रपद महीने की कृष्ण पक्ष की द्वादशी को मनाई जाती है।

बछ यानि बछड़ा, गाय के छोटे बच्चे को कहते है । इस दिन को मनाने का उद्देश्य गाय व बछड़े का महत्त्व समझाना है। यह दिन गोवत्स द्वादशी के नाम से भी जाना जाता है। गोवत्स का मतलब भी गाय का बच्चा ही होता है।

बछ बारस का यह दिन कृष्ण जन्माष्टमी के चार दिन बाद आता है । कृष्ण भगवान को गाय व बछड़ा बहुत प्रिय थे तथा गाय में सैकड़ो देवताओं का वास माना जाता है।

गाय व बछड़े की पूजा करने से कृष्ण भगवान का , गाय में निवास करने वाले देवताओं का और गाय का आशीर्वाद मिलता है जिससे परिवार में खुशहाली बनी रहती है ऐसा माना जाता है।

बछ बारस

इस दिन महिलायें बछ बारस का व्रत रखती है। यह व्रत सुहागन महिलाएं सुपुत्र प्राप्ति और पुत्र की मंगल कामना के लिए व परिवार की खुशहाली के लिए करती है। गाय और बछड़े का पूजन किया जाता है।

इस दिन गाय का दूध और दूध से बने पदार्थ जैसे दही , मक्खन , घी आदि का उपयोग नहीं किया जाता। इसके अलावा गेहूँ और चावल तथा इनसे बने सामान नहीं खाये जाते ।

भोजन में चाकू से कटी हुई किसी भी चीज का सेवन नहीं करते है। इस दिन अंकुरित अनाज जैसे चना , मोठ , मूंग , मटर आदि का उपयोग किया जाता है। भोजन में बेसन से बने आहार जैसे कढ़ी , पकोड़ी , भजिये आदि तथा मक्के , बाजरे ,ज्वार आदि की रोटी तथा बेसन से बनी मिठाई का उपयोग किया जाता है।

बछ बारस के व्रत का उद्यापन करते समय इसी प्रकार का भोजन बनाना चाहिए। उजरने में यानि उद्यापन में बारह स्त्रियां , दो चाँद सूरज की और एक साठिया इन सबको यही भोजन कराया जाता है।

शास्त्रो के अनुसार इस दिन गाय की सेवा करने से , उसे हरा चारा खिलाने से परिवार में महालक्ष्मी की कृपा बनी रहती है तथा परिवार में अकालमृत्यु की सम्भावना समाप्त होती है।

बछ बारस की पूजा विधि

Bachh Baras Pooja Vidhi

सुबह जल्दी उठकर नहा धोकर शुद्ध कपड़े पहने।

दूध देने वाली गाय और उसके बछड़े को साफ पानी से नहलाकर शुद्ध करें।

गाय और बछड़े को नए वस्त्र ओढ़ाएँ।

फूल माला पहनाएँ।

उनके सींगों को सजाएँ।

उन्हें तिलक करें।

गाय और बछड़े को भीगे हुए अंकुरित चने , अंकुरित मूंग ,चने के बिरवे  , मटर ,  जौ की रोटी आदि खिलाएँ।

गौ माता के पैरों धूल से खुद के तिलक लगाएँ।

इसके बाद बछ बारस की कहानी सुने। कहानी के लिए क्लिक करें –

बछ बारस की कहानी

इस प्रकार गाय और बछड़े की पूजा करने के बाद महिलायें अपने पुत्र के तिलक लगाकर उसे नारियल देकर उसकी लंबी उम्र और सकुशलता की कामना करें। उसे आशीर्वाद दें।

बड़े बुजुर्ग के पाँव छूकर उनसे आशीर्वाद लें। अपनी श्रद्धा और रिवाज के अनुसार व्रत या उपवास रखें। मोठ या बाजरा दान करें। सासुजी को बयाना देकर आशीर्वाद लें।

यदि आपके घर में खुद की गाय नहीं हो तो दूसरे के यहाँ भी गाय बछड़े की पूजा की जा सकती है। ये भी संभव नहीं हो तो गीली मिट्टी से गाय और बछड़े की आकृति बना कर उनकी पूजा कर सकते है।

बछ बारस

कुछ लोग सुबह आटे से गाय और बछड़े की आकृति बनाकर पूजा करते है। शाम को गाय चारा खाकर वापस आती है तब उसका पूजन धुप, दीप , चन्दन , नैवेद्य आदि से करते है।

इन्हें भी जानें और लाभ उठायें :

शंख बजाने के फायदे पूजा वाला असली शंख और प्रभाव

गोगा नवमी और गोगोजी का मेला कब कहाँ 

रामदेवरा मेला कब कहाँ और क्यों 

गणेश चतुर्थी पूजन की सरल विधि 

ऋषि पंचमी की पूजा और व्रत का तरीका 

जन्माष्टमी की पूजा प्रसाद और व्रत

घट स्थापना और नवरात्री पूजा कैसे करें 

शरद पूर्णिमा का व्रत और उद्यापन 

आंवला नवमी की पूजा और व्रत विधि  

करवा चौथ व्रत एवं पूजन

तुलसी विवाह

माही चौथ सकट चौथ व्रत