विवाह के समय पति पत्नी द्वारा प्रतिज्ञा और वचन – Marriage Promises

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विवाह के समय वर और वधु कुटुंब , समाज , गुरु और देवताओं को साक्षी मानकर कुछ वचन और प्रतिज्ञा लेते हैं जिन्हे उम्र भर निभाने का वादा करते हैं। परन्तु समय के साथ इन वादों को भूल जाते हैं। यदि इन्हे समय समय पर याद किया जाते तो वैवाहिक जीवन अति आनंदपूर्ण बन सकता है। आइये जानें कि ये कौनसे वचन और प्रतिज्ञा हैं।

अधिकतर लोग विवाह या शादी को एक रस्म रिवाज की तरह करते हैं। जबकि विवाह दो आत्माओं का पवित्र बंधन है, जिसका उद्देश्य मात्र इंद्रिय सुखभोग नहीं बल्कि एक सुद्रढ़ और सुखी परिवार की नींव डालना , मैत्री लाभ , साहचर्य सुख , मानसिक रुप से परिपक्वता, दीर्घायु , शारीरिक और मानसिक स्वास्थ्य प्राप्त करना होता है।

विवाह करने वाले युवक युवतियों से कुछ प्रतिज्ञाएँ और वचन लिए जाते हैं ताकि किसी भी परिस्थिति में दोनों में से कोई भी इस कर्तव्य बंधन की उपेक्षा नहीं कर पाए।विवाह के वचन प्रतिज्ञा

वक्त गुजरने के साथ इन वचनों को और प्रतिज्ञाओं को भुला दिया जाता है। आज यदि किसी को पूछा जाये की शादी के समय कौनसे वचन दिए थे तो शायद ही किसी को याद हो। क्योंकि शादी में ज्यादा ध्यान सजावट, डांस परफॉर्मेंस, भांति भांति के व्यंजन , डिजाइनर महंगे कपड़े और गहने तथा अन्य दिखावटी चीजों पर दिया जाता है।

पंडित से मुख्य रस्म को जल्दी से जल्दी करवा लेने की कोशिश रहती है। कुछ पंडित भी संस्कृत के श्लोक बोलकर जल्दी से शादी की रस्मे पूरी करवा देते हैं जिसमे वर वधु द्वारा लिए गए वचन भी शामिल होते हैं पर संस्कृत भाषा में होने के कारण उनका अर्थ अधिकतर वर वधु को समझ ही नहीं आता।

वैवाहिक जीवन में शादी की तारीख को सालगिरह Anniversary के रूप में मनाने के लिए केक काट कर , महंगे उपहार देकर या कुछ लोगों को होटल में खाना खिलाकर इतिश्री कर ली जाती है।

यदि हर साल शादी के समय एक दूसरे को दिए गए वचन भी याद कर लिए जायें और उन्हें निभाने की कोशिश की जाये तो वैवाहिक जीवन के आनदं में चार चाँद लग सकते हैं। आइये जानें पति पत्नी विवाह के समय क्या वचन लेते हैं।

शादी समय वर द्वारा ली जाने वाली प्रतिज्ञायें

  1. आज से धर्म पत्नी को अर्द्धांगिनी घोषित करते हुए, उसके साथ अपने व्यक्तित्व को मिलाकर मैं एक नये जीवन की सृष्टि करता हूँ। मैं अपने शरीर के अंगों की तरह धर्म पत्नी का ध्यान रखूँगा।
  2. मैं प्रसन्नतापूर्वक इन्हे ( वधु को ) गृहलक्ष्मी का महान अधिकार सौंपता हूँ और जीवन के निधार्रण में इनके परामर्श को हमेशा महत्त्व दूँगा।
  3. मैं इनके ( वधु के ) रूप, स्वास्थ्य, स्वभाव सम्बन्धी गुण दोष एवं किसी जानकारी के नहीं होने पर ध्यान नहीं दूँगा तथा इसके लिए कभी असन्तोष भी व्यक्त नहीं करूँगा। स्नेहपूर्वक उन्हें सुधारने की कोशिश करता रहूँगा तथा धैर्य रखकर आत्मीयता बनाये रखूँगा।
  4. पत्नी का मित्र बनकर रहूँगा और पूरा-पूरा स्नेह देता रहूँगा। इस वचन का पालन पूरी निष्ठा और सत्य के साथ करता रहूँगा।
  5. पत्नी से जिस प्रकार पतिव्रता होने को आशा की जाती है , उसी दृढ़ता से स्वयं भी पत्नीव्रत धर्म का पालन करूँगा। किसी भी पराई स्त्री से वासनात्मक सम्बन्ध का विचार या व्यवहार नहीं करूँगा।
  6. घर चलाने में धर्म-पत्नी को प्रधानता दूँगा। आमदनी और खर्च उसकी सहमति से करके गृहस्थी को सुखी बनाये रखूँगा।
  7. धमर्पत्नी की सुख-शान्ति तथा प्रगति-सुरक्षा की व्यवस्था करने में अपनी शक्ति और साधन आदि को पूरी ईमानदारी से लगाता रहूँगा।
  8. अपनी ओर से मधुर वाणी और श्रेष्ठ व्यवहार बनाये रखने का पूरा प्रयास करूँगा। किसी भी मतभेद और भूल का सुधार शान्ति के साथ करूँगा। किसी के सामने पत्नी पर लांछन नहीं लगाऊंगा और ना उसका तिरस्कार करूँगा ।
  9. पत्नी के असमर्थ या अपने कर्त्तव्य से विमुख हो जाने पर भी अपने सहयोग और कर्त्तव्य पालन में रत्ती भर भी कमी नहीं रखूँगा।

शादी समय वधु द्वारा ली जाने वाली प्रतिज्ञायें

  1. अपने जीवन को पति के जीवन से जोड़कर एक नये जीवन की सृष्टि करूँगी। इस प्रकार घर में हमेशा सच्चे अर्थों में अर्द्धांगिनी बनकर रहूँगी।
  2. पति के परिवार के सदस्यों को एक ही शरीर के अंग मानकर सभी के साथ शिष्ट और मधुर व्यवहार करुँगी तथा उदारतापूवर्क सेवा करूँगी।
  3. आलस्य छोड़कर घर के काम पूरी मेहनत से करूँगी। इस प्रकार पति की प्रगति और जीवन विकास में समुचित योगदान करूँगी।
  4. पतिव्रत धर्म का पालन करूँगी, पति के प्रति श्रद्धा-भाव बनाये रखकर सदैव उनके अनूकूल रहूँगी। छल कपट और दुर्व्यवहार नहीं करूँगी, पति द्वारा दिए गए निदेर्श का पालन करूँगी।
  5. सेवा, स्वच्छता तथा मधुरवाणी का ध्यान रखूँगी । ईर्ष्या, जलन या कुढ़न आदि दोषों से बच कर रहूंगी और सदा प्रसन्नता देने की कोशिश करुँगी ।
  6. मितव्ययी ( जरुरत के अनुसार कम से कम खर्च करना ) बनकर फिजूलखर्ची से बचूँगी। पति के असमर्थ हो जाने पर भी गृहस्थ जीवन के अनुशासन का पालन करूँगी।
  7. नारी के लिए पति, देव स्वरूप होता है- यह मानकर मतभेद भुलाकर, सेवा करते हुए जीवन भर सक्रिय रहूँगी, कभी भी पति का अपमान नहीं करूँगी।
  8. जो पति के लिए पूजनीय और श्रद्धा के पात्र हैं , उनकी सेवा करके तथा प्रेमभाव बनाये रखकर हमेशा सन्तुष्ट रखूँगी।
  9. परिवार के सदस्यों में अच्छे संस्कार विकसित करुँगी और उन्हें सम्बन्ध सुदृढ़ बनाये रखना सिखाऊंगी।

शिलारोहण

शिलारोहण के द्वारा वर वधु पत्थर पर पैर रखते हुए प्रतिज्ञा करते हैं कि जिस प्रकार अंगद ने अपना पैर जमा दिया था, उसी तरह हम पत्थर की लकीर की तरह अपना पैर उत्तरदायित्वों को निबाहने के लिए जमाते हैं। हमारे लिए यह विवाह कोई खेल नहीं , नई गृहस्थी की नींव है , हम इसकी गंभीरता को समझते हैं। हमने जो प्रतिज्ञा ली हैं वे पत्थर की लकीर की तरह अमिट बनी रहेंगी, हम इन्हे चट्टान की तरह मजबूत और चिरस्थाई बनाये रखेंगे।

सात फेरों के सात वचन

वधु वर से सात वचन मांगती है तभी वाम अंग यानि बाईं तरफ आना स्वीकार करती है। बाईं तरफ आने का अर्थ पत्नी को प्रमुख स्थान मिलना है। लक्ष्मी-नारायण् , उमा-महेश, सीता-राम, राधे-श्याम आदि नामों में पत्नी को प्रथम, पति को द्वितीय स्थान प्राप्त है।

दाहिनी ओर से वधू का बायीं ओर आना, अधिकार हस्तांतरण है। बायीं ओर आने के बाद पत्नी गृहस्थ जीवन की प्रमुख सूत्रधार बनती है। ये सात वचन मिलने पर वधु वर के बाईं और आ जाती है।

ये सात वचन जो दुल्हन मांगती है , इस प्रकार हैं :

पहला वचन

यदि आप कभी तीर्थ यात्रा के लिए जाओ तो मुझे साथ लेकर जाओगे। कोई व्रत उपवास या धार्मिक कार्य करते समय मुझे साथ रखोगे। यदि ये वचन देते हो तो मैं आपके वाम अंग आना स्वीकार करती हूँ।

दूसरा वचन

आप जिस तरह अपने माता पिता का सम्मान करते हैं , उसी तरह मेरे माता पिता का भी हमेशा सम्मान करेंगे तथा परिवार की मर्यादा का निर्वाह करते हुए ईश्वर की भक्ति और धर्म अनुष्ठान करते रहेंगे । यदि ये वचन देते हो तो मैं आपके वाम अंग आना स्वीकार करती हूँ।

तीसरा वचन

मुझे वचन दें की जीवन की तीनो अवस्था ( युवावस्था , प्रौढ़ावस्था , वृद्धावस्था ) में मेरा  पालन करेंगे तो मैं आपके वाम अंग आना स्वीकार करती हूँ।

चौथा वचन

अपने नए कुटुंब की सभी जरूरतों की पूर्ती का भार वहन करने की प्रतिज्ञा करें तो मैं आपके वाम अंग आना स्वीकार करती हूँ।

पांचवा वचन

घरेलु काम काज , लेन देन , शादी ब्याह या अन्य घर खर्च से सम्बन्धित काम करते समय मुझसे भी मंत्रणा करने का वचन दें तो मैं आपके वाम अंग आना स्वीकार करती हूँ।

छठा वचन

यदि मैं अपनी सखी सहेलियों के साथ हूँ तो उनके सामने आप मेरा किसी भी प्रकार का अपमान नहीं करेंगे। खुद को जुआ आदि दुर्व्यसन से दूर रखेंगे। ये वचन देते हो तो मैं आपके वाम अंग आना स्वीकार करती हूँ।

सातवाँ वचन

पराई स्त्री को माता के सामान समझेंगे और पति पत्नी के आपसी स्नेह के बीच किसी अन्य को नहीं लायेंगे तो मैं आपके वाम अंग आना स्वीकार करती हूँ।

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