शरद पूर्णिमा Sharad Poornima आश्विन मास के शुक्ल पक्ष की पूर्णिमा होती है । इस दिन चन्द्रमा की किरणों में शरीर और आत्मा दोनों को शुद्ध करने की विशेष शक्ति होती है।
शरद पूर्णिमा के दिन चन्द्रमा पृथ्वी के सबसे ज्यादा नजदीक होता है। इस दिन चन्द्रमा अपनी सोलह कलाओ सहित चमकता है और माना जाता है कि इस दिन चंद्रमा अमृत की वर्षा करता है।
हिन्दू धर्म की मान्यता के अनुसार सोलह कलाओं के सामंजस्य से ही किसी सम्पूर्ण मानव का जन्म होता है। सिर्फ भगवान श्री कृष्ण का जन्म पूरी सोलह कलाओं के साथ हुआ था।
इसे रास पूर्णिमा Raas purnima भी कहते हैं। इस दिन भगवान श्री कृष्ण ने महा-रास रचाया था। शरद पूर्णिमा की रात भगवान श्री कृष्ण ने बांसुरी की ऐसी तान छेड़ी की बृज की सारी गोपियां उतावली होकर श्रीकृष्ण के साथ रात भर रास करने के लिए घर से नजर बचाकर दौड़ी चली आई।
उस रात भगवान श्रीकृष्ण ने अनेक रूप रचकर हर एक गोपी के साथ नृत्य किया था।
जिस प्रकार दिवाली के दिन लक्ष्मी पूजन किया जाता है उसी प्रकार भारत के कुछ राज्यों में शरद पूर्णिमा के दिन लक्ष्मी पूजन किया जाता है।
इसे कोजागरी पूजा Kojagari pooja कहा जाता है। इस दिन रखे जाने व्रत को कोजागरी व्रत कहते है। इसी को कौमुदी पूजा और व्रत भी कहते है।
कोजागरी का मतलब होता है कौन जाग रहा है। ऐसा माना जाता है की माँ लक्ष्मी विचरण करते हुए पूछती है कौन जाग रहा है , जो जाग रहा होता है , उसे माँ लक्ष्मी धन धान्य से परिपूर्ण करती है।
इस दिन मंदिरों में विशेष सेवा -पूजन व श्रृंगार किया जाता है। भगवान को सफेद वस्त्र धारण कराये जाते है। रात को भगवान को दूध और चावल से बनी खीर का भोग लगाया जाता है। भोग लगाकर खीर को रात भर चन्द्रमा की चांदनी में रखा जाता है ।
अगले दिन खीर का प्रसाद सबको दिया जाता है। कुछ लोग अपने घर में भी खीर बनाकर भगवान को भोग लगते है। फिर खीर को रातभर चांदनी में रख कर सुबह खाते है।
कुछ लोग चाँद की तरफ देखते हुए सुई में धागा पिरोते है। कुछ लोग काली मिर्च को चांदनी में रख कर सेवन करते है। माना जाता है कि इन सबसे आँखों स्वस्थ होती है और उनकी रौशनी बढ़ती है।
आयुर्वेद के अनुसार शरद पूर्णिमा के दिन खीर को चन्द्रमा की किरणों में रखने से उसमे औषधीय गुण पैदा हो जाते है। और इससे कई असाध्य रोग दूर किये जा सकते है।
खीर खाने का अपना औषधीय महत्त्व भी है। इस समय दिन में गर्मी होती है और रात को सर्दी होती है। ऋतु परिवर्तन के कारण पित्त प्रकोप हो सकता है। खीर खाने से पित्त शांत रहता है।
शादी के बाद पूर्णिमा का व्रत शरद पूर्णिमा से ही शुरू करना चाहिए। कार्तिक स्नान भी इसी दिन से शुरू किया जाता है। चूड़ा पूनम chuda poonam या चूंदड़ पूनम भी इसी दिन से प्रारम्भ करते है।
शरद पूर्णिमा व्रत का तरीका
Sharad Poornima vrat
शरद पूर्णिमा के दिन भगवान को श्वेत वस्त्र पहना कर भक्ति भाव से फूल माला , नैवेद्य आदि अर्पित करके पूजा करनी चाहिए। महिलाएं इस दिन परिवार की मंगल कामना में व्रत करें। शरद पूर्णिमा व्रत की कहानी सुने।
एक कलश में जल भर लें और एक गिलास में गेहूं के दाने भर लें। कलश को रोली , मोली , अक्षत, दक्षिणा अर्पित करें। गेहूं के 13 दाने हाथ में लेकर कथा सुने।
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कथा सुनने के बाद गेहूं दान कर दें। कलश के जल से रात में चाँद को अर्ध्य दें।
रात को खीर का भोग लगाना चाहिए। भोग लगाकर खीर को चांदनी में रात भर रखें। सुबह यह खीर प्रसाद के रूप सभी परिवार के सदस्यों को लेनी चाहिए।
रात में चाँद जब आसमान के बीच में दिखाई दे तब चाँद की पूजा करनी चाहिए। चाँद को रोली अक्षत आदि अर्पित करें नैवेद्य के रूप में खीर अर्पित करें।
शरद पूर्णिमा व्रत के उद्यापन की विधि
Sharad Purnima Vrat Udyapan
शरद पूर्णिमा का उद्यापन 13 शरद पूर्णिमा के व्रत करने के बाद ही होता है। इसके लिए शरद पूर्णिमा के दिन व्रत करके व्रत की कहानी सुननी चाहिए।
उजमन के लिए चाँदी के लोटे में मेवा भरकर रोली ,चावल से पूजकर और रुपया चढ़ाकर सासुजी को दें पाँव छूकर आशीर्वाद लें। चाँदी का लोटा न हो तो अपनी श्रद्धानुसार स्टील का लोटा भी दे सकते है।
इसी तरह चुनड पूनम के उद्यापन के लिए रोली , चावल से चूनड़ पूजकर चुनड़ी पर रूपये रखकर सासु जी को दें और पाँव छूकर आशीवार्द ले।
यदि कोई चूड़ा पूनम करता है तो पूर्णिमा के दिन व्रत रखे और तेरह पूनम होने के बाद रोली , चावल से चूड़ा पूजकर उस पर श्रद्धानुसार रूपये रखकर सासुजी को देना चाहिए। उनका आशीर्वाद लेना चाहिए। एक एक चूड़ा रोली चावल लगाकर तेरह सुहागनों को या ब्राह्मणी को देना चाहिए । पाँव लगकर सुहागभाग का आशीवार्द लेना चाहिए ।
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