ऊब छठ की कहानी – Ub chhath ki kahani

15827

ऊब छठ का व्रत और पूजा करते समय ऊब छठ की कहानी Ub Chhath ki katha सुनते है। इससे व्रत का पूरा फल प्राप्त होता है। ऊब छठ का व्रत और पूजा करने का तरीका जानने के लिए यहाँ क्लीक करें

सूर्य षष्ठी या डाला छठ अलग होती है , जो दिवाली के छः दिन बाद आती है।

डाला छठ या सूर्यषष्ठी व्रत का तरीका व कहानी जानने के लिए यहाँ क्लीक करें। 

ऊब छठ की कहानी – Ub chhath ki kahani

किसी गांव में एक साहूकार और इसकी पत्नी रहते थे। साहूकार की पत्नी रजस्वला होती थी तब सभी प्रकार के काम कर लेती थी। रसोई में जाना , पानी भरना , खाना बनाना , सब जगह हाथ लगा देती थी।

उनके एक पुत्र था। पुत्र की शादी के बाद साहूकार और उसकी पत्नी की मृत्यु हो गई। 

अगले जन्म में साहूकार एक बैल के रूप में पैदा हुआ और उसकी पत्नी अगले जन्म में कुतिया बनी। ये दोनों अपने पुत्र के यहाँ ही थे। बैल से खेतों में हल जुताया जाता था और कुतिया घर की रखवाली करती थी।

श्राद्ध के दिन पुत्र ने बहुत से पकवान बनवाये। खीर भी बन रही थी। अचानक कही से एक चील उड़ती हुई आई।

चील के मुँह में एक मरा हुआ साँप था। वो सांप चील के मुँह से छूटकर खीर में गिर गया।

कुतिया ने यह देख लिया। उसने सोचा इस खीर को खाने से कई लोग मर सकते है। उसने खीर में मुँह अड़ा दिया ताकि उस खीर को लोग ना खाये।

पुत्र की पत्नी ने कुतिया को खीर में मुँह अड़ाते हुए देखा तो गुस्से में एक मोटे डंडे से उसकी पीठ पर मारा। चोट तेज थी कुतिया की पीठ की हड्डी टूट गई। उसे बहुत दर्द हो रहा था। रात को वह बैल से बात कर रही थी।

उसने कहा तुम्हारे लिए श्राद्ध हुआ तुमने पेट भर भोजन किया होगा। मुझे तो खाना भी नहीं मिला ,मार पड़ी सो अलग। बैल ने कहा – मुझे भी भोजन नहीं मिला , दिन भर खेत पर ही काम करता रहा।

ऊब छठ के व्रत की कहानी

ये सब बातें बहु ने सुन ली। उसने अपने पति को बताया। उसने एक पंडित को बुलाकर इस घटना का जिक्र किया।

पंडित में अपनी ज्योतिष विद्या से पता करके बताया की कुतिया उसकी माँ और बैल उसके पिता है। उनको ऐसी योनि मिलने का कारण माँ द्वारा रजस्वला होने पर भी सब जगह हाथ लगाना , खाना बनाना , पानी भरना था।

उसे बड़ा दुःख हुआ और माता पिता के उद्धार का उपाय पूछा। पंडित ने बताया यदि उसकी कुँवारी कन्या भाद्रपद कृष्ण पक्ष की षष्टी यानि ऊब छठ का व्रत करे। शाम को नहा कर पूजा करे उसके बाद बैठे नहीं। चाँद निकलने पर अर्ध्य दे। अर्ध्य देने पर जो पानी गिरे वह बैल और कुतिया को छूए तो उनका मोक्ष हो जायेगा।

जैसा पंडित ने बताया था कन्या ने ऊब छठ का व्रत किया , पूजा की। चाँद निकलने पर चाँद को अर्ध्य दिया। अर्ध्य का पानी जमीन पर गिरकर बहते हुए बैल और कुतिया पर गिरे ऐसी व्यवस्था की। पानी उन पर गिरने से दोनों को मोक्ष प्राप्त हुआ और उन्हें इस योनि से छुटकारा मिल गया।

हे ऊब छठ माता जैसे इनका किया वैसे सभी का उद्धार करना।

कहानी कहने वाले और सुनने वाले का भला करना।

बोलो छठ माता की…. जय !!!

इन्हे भी जानें और लाभ उठायें :

गणेश जी की कहानी / लपसी तपसी की कहानी / चौथ माता की कहानी बारह महीने की /  गोवत्स द्वादशी की कहानी / शरद पूर्णिमा की कहानी  / करवा चौथ की कहानी आंवला नवमी की कहानी /तुलसी माता के गीत भजन / तिल चौथ की कहानी  / गणगौर के पूजन की कहानी / महाशिवरात्रि व्रत की कहानी