ऋषि पंचमी की कथा व्रत के समय कही और सुनी जाती है। ऋषि पंचमी के दिन सप्तऋषि की पूजा की जाती है। महेश्वरी समाज में राखी मनाई जाती है। पूजा और व्रत किये जाते है तथा ऋषि पंचमी की कथा Rishi Panchami ki katha सुनी जाती है। इससे सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है।
ऋषि पंचमी की पूजा और व्रत करने की विधि के लिए यहाँ क्लीक करके पढ़ें।
ऋषि पंचमी के व्रत की कथा इस प्रकार है –
ऋषि पंचमी व्रत की कथा
Rishi Panchami Vrat Katha
किसी गाँव में एक सदाचारी ब्राह्मण अपनी पत्नी के साथ रहता था। उनके परिवार में एक पुत्र और एक पुत्री थे। ब्राह्मण ने अपनी कन्या पुत्री की शादी अच्छे घर में कर दी।
थोड़े समय बाद ही उस कन्या के पति की अकाल मृत्यु हो गयी। विधवा होने के बाद वह अपने पिता के घर लौट आई।ब्राह्मण दंपत्ति विधवा पुत्री सहित कुटिया बना कर गंगा तट पर रहने लगे।
एक दिन विधवा पुत्री के शरीर पर बहुत सारे कीड़े पैदा हो गए। उसने अपनी माँ को कीड़ों के बारे माँ बताया।
माता पिता बहुत दुखी हुए और इसका कारण और उपाय जानने के लिए एक ऋषि के पास गए। ऋषि ने अपनी विद्या से उस कन्या के पिछले जन्म का पूरा विवरण देखा ।
ऋषि ने बताया कि यह कन्या पिछले जन्म में एक ब्राह्मणी थी। रजस्वला होने पर भी इसने घर के रसोई के सामान छुए थे और घर के सभी काम किये थे।
शास्त्रों के अनुसार रजस्वला स्त्री को किसी प्रकार का काम नहीं करना चाहिए लेकिन कन्या ने सारे काम किये।
इस जन्म में भी इसने ऋषि पंचमी का व्रत नहीं किया इसीलिए इसे दंड भुगतना पड़ रहा है। उसी पाप के कारण इसके शरीर पर कीड़े पड़ गए है।
उपाय पूछने पर ऋषि ने कहा कि यदि कन्या ऋषि पंचमी का व्रत और पूजा , भक्ति भाव से करे तथा क्षमा प्रार्थना करे तो इस पाप से मुक्ति संभव है। इससे अगले जन्म में भी इसे अटल सौभाग्य प्राप्त होगा।
कन्या ने विधि विधान से ऋषि पंचमी का व्रत और पूजन किया। जिससे उसका दुःख दूर हो गया। अगले जन्म में उसे अटल सौभाग्य और धन धान्य आदि सभी सुख प्राप्त हुए।
खोटी की खरी। अधूरी की पूरी।
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