एकादशी का व्रत Ekadashi vrat अत्यधिक प्रचलित व्रतों में से एक है। मनोकामना पूर्ती के लिए या पितरों की शांति के लिए ग्यारह , सत्रह या इक्कीस ग्यारस के व्रत का संकल्प करके यह व्रत किया जाता है।
कुछ लोग साल भर की सभी 24 एकादशी का संकल्प लेकर व्रत रखते हैं। यदि साल भर की सभी Ekadashi के व्रत का संकल्प लेते हैं तो इसकी शुरुआत उत्पन्ना एकादशी से की जाती है , जो मार्गशीर्ष कृष्ण पक्ष में आती है।
एकादशी की उत्पत्ति भगवान विष्णु के शरीर से मानी जाती है। इसीलिए पूरे वर्ष एकादशी के दिन किसी ना किसी रूप में भगवान विष्णु की ही पूजा की जाती है।
Ekadashi का व्रत जब किसी कामना के लिए किया जाता है तो उसे काम्य एकादशी व्रत कहते हैं। ऐसा व्रत धन , संपत्ति , संतान , आयु , स्वास्थ्य आदि की कामना से किया जाता है।
यदि निष्काम भावना से यह व्रत किया जाता है तो इसे नित्य एकादशी व्रत कहा जाता है । इस व्रत में भगवान की भक्ति ही मुख्य ध्येय होता है।
एकादशी व्रत का महत्त्व
Ekadashi vrat importance
पुराणों की व्याख्या करने वाले ब्रह्मज्ञानी श्री सूत जी महाराज ने एकादशी के महत्त्व और उनसे सम्बंधित कथाओं का वर्णन किया है। उनके अनुसार इन्द्रियों पर नियमन यानि संयम करना आवश्यक होता है। इसलिए इसे नियम भी कहते हैं।
एकादशी के व्रत नियम पूर्वक करने से बुद्धि निर्मल होने लगती है। विचारों में सत्व गुणों का आगमन होने लगता है। विवेक शक्ति आती है तथा सत असत का निर्णय स्वतः ही होने लगता है।
कहा जाता है कि –
जो पुण्य चन्द्र ग्रहण या सूर्य ग्रहण में स्नान या दान से होता है ,
जो पुन्य अन्न , जल , स्वर्ण , भूमि , गौ , कन्या दान से होता है
जो पुण्य अश्व मेघ यज्ञ करने से होता है
जो पुन्य तीर्थ यात्रा तथा कठिन तपस्या करने से होता है
इनसे भी अधिक पुण्य एकादशी का व्रत रखने से होता है .
एकादशी व्रत रखने से शरीर स्वस्थ रहता है , अंतर्मन की मेल धुल जाती है , ह्रदय शुद्ध हो जाता है तथा श्रद्धा भक्ति उत्पन्न हो जाती है। प्रभु को प्रसन्न करने का सबसे सरल और मुख्य साधन एकादशी का व्रत ही है।
एकादशी का व्रत करने वाले के पितृ कुयोनी को त्याग कर स्वर्ग में चले जाते हैं तथा पूर्वज बैकुंठ को प्राप्त होते हैं।
एकादशी का व्रत धन धान्य , पुत्रादि और कीर्ति को बढ़ाने वाला बताया गया है। एकादशी का जन्म भगवान के शरीर से हुआ है। अतः यह प्रभु के समान ही पवित्र है।
हर महीने कृष्ण पक्ष और शुक्ल पक्ष में Ekadashi आती है। इस तरह साल में 24 एकादशी आती है। इन्हे अलग अलग नामों से जाना जाता है। यहाँ एकादशी के नाम पर क्लिक करके उस एकादशी की कहानी और पूजा के बारे ने जान सकते हैं , जो इस प्रकार हैं –
चैत्र :
कृष्ण पक्ष – पाप मोचनि एकादशी , शुक्ल पक्ष – कामदा एकादशी
वैशाख :
कृष्ण पक्ष – बरुथिनी एका. , शुक्ल पक्ष – मोहिनी एका.
ज्येष्ठ :
कृष्ण पक्ष – अपरा /अचला एका., शुक्ल पक्ष – निर्जला / भीमसेनी एकादशी
आषाढ़ :
कृष्ण पक्ष – योगिनी एका., शुक्ल पक्ष – देवशयनी एका.
श्रावण :
कृष्ण पक्ष – कामदा एका., शुक्ल पक्ष – पुत्रदा एका.
भाद्रपद :
कृष्ण पक्ष – अजा एका., शुक्ल पक्ष – वामन / पद्मा एका./ जल झूलनी एकादशी
आश्विन :
कृष्ण पक्ष – इंदिरा एका., शुक्ल पक्ष – पापांकुशा एका.
कार्तिक :
कृष्ण पक्ष – रमा एका., शुक्ल पक्ष – देवोत्थान / देव उठनी एकादशी
मार्गशीर्ष :
कृष्ण पक्ष – उत्पन्ना एका., शुक्ल पक्ष – मोक्षदा एका.
पौष :
कृष्ण पक्ष – सफला एका., शुक्ल पक्ष – पुत्रदा एका.
माघ :
कृष्ण पक्ष – षट्तिला एका., शुक्ल पक्ष – जया एकादषी
फाल्गुन :
कृष्ण पक्ष – विजया एकादशी , शुक्ल पक्ष – आँवला / आमलकी एकादशी
एकादशी का व्रत कैसे करें
How to have Ekadashi Fast
एकादशी का व्रत करने वाले को दशमी के दिन मांस , मदिरा , लहसुन , प्याज , मसूर की दाल इत्यादि निषेध वस्तुओं का सेवन नहीं करना चाहिए। रात्रि को पूर्ण ब्रह्मचर्य का पालन करना चाहिए।
एकादशी के दिन सुबह दैनिक कार्य तथा स्नान आदि से निवृत होकर मंदिर जाना चाहिए। हो सके तो गीता का पाठ करना चाहिए या गीता सुननी चाहिए।
प्रभु के सामने संकल्प करें कि किसी प्रकार का अनुचित काम नहीं करेंगे। किसी प्रकार की हिंसा और छल कपट जैसा कोई काम नहीं करेंगे। किसी को अपशब्द नहीं कहेंगे , झूठ नहीं बोलेंगे , क्रोध नहीं करेंगे । दुराचारी मनुष्य के संपर्क में नहीं रहेंगे।
रात्रि जागरण, कीर्तन आदि करेंगे। मन में दया का भाव रखेंगे। “ ॐ नमो भगवते वासुदेवाय “ मन्त्र का जाप करेंगे।
विष्णु भगवान का स्मरण करके प्रार्थना करें – हे नाथ ! मुझे इस व्रत को सफलता पूर्वक करने की शक्ति प्रदान करना।
व्रत में एक बार पौष्टिक और सुपाच्य फलाहार लेना चाहिए। खाने की प्रत्येक वस्तु भगवान को भोग लगाकर तथा तुलसी दल छोड़कर ग्रहण करनी चाहिए। जो सकल्प आपने लिए थे उनका दिन भर ध्यान पूर्वक पालन करें।
किसी सम्बन्धी की मृत्यु हो जाये तो उस दिन एकादशी का व्रत रखकर उसका फल उसे संकल्प करके दे देना चाहिए। अस्थियाँ विसर्जित करने पर भी एकादशी का व्रत रखकर उसका फल उस प्राणी के निमित्त करके देना चाहिए।
इस विधि से एकादशी का व्रत करने से दिव्य फल की प्राप्ति होती है।
एकादशी उत्पन्न होने की कथा
Ekadashi utpanna kahani
बहुत साल पहले मूर नामक राक्षस हुआ था। उसने देवराज इंद्र को भी हरा दिया था। सारे देवता स्वर्ग छोड़कर इधर उधर छुपकर रहने लगे। इससे दुखी होकर इंद्र सहायता के लिए महादेव के पास गए ।
महादेव ने उन्हें भगवान् विष्णु के पास जाने की सलाह दी। उन्होंने भगवान् विष्णु से राक्षस को मारने की प्रार्थना की जो उन्होंने स्वीकार की।
मूर राक्षस चंद्रावती नगर में था। विष्णु जी ने देवताओं से कहा की चंद्रावती नगर को घेर लें। उन्होंने ऐसा ही किया।
भगवान विष्णु ने अपना सुदर्शन चक्र चलाया तो हजारों राक्षसों के सिर कट गये , लेकिन मूर राक्षस पर किसी अस्त्र शस्त्र का असर नहीं हुआ। तब विष्णु जी उसके साथ मल्ल युद्ध करने लगे । उससे भी मूर को कुछ नहीं हुआ और स्वयं विष्णु जी थक गये।
थकान मिटाने के लिए वो बद्रिकाश्रम पर्वत की लम्बी गुफा में चले गये और आराम करने लगे।
पीछे पीछे मूर राक्षस भी वहाँ आ गया। विष्णु जी गहन निद्रा में थे। मूर राक्षस में अच्छा अवसर सोचकर जैसे ही विष्णु जी पर शस्त्र उठाया वैसे ही विष्णु जी के शरीर से एक सुन्दर कन्या अस्त्र शस्त्र के साथ निकली और राक्षस से युद्ध करने लगी।
उसने अपनी युद्धकला और निपुणता से राक्षस को पराजित करके उसका वध कर दिया।
विष्णु जी ने जागने पर मूर राक्षस का मृत शरीर देखा तो उन्हें अचम्भा हुआ । कन्या ने विष्णु जी को उन्ही के शरीर से उत्पन्न होकर राक्षस का संहार करने की बात बताई।
भगवान विष्णु बहुत प्रसन्न हुए और उस दिन एकादशी होने के कारण उसे उत्पन्ना एकादशी का नाम दिया साथ ही वरदान दिया कि एकादशी का व्रत और पूजन करने वाले व्यक्ति को पुण्य लाभ होगा , उसके सारे पाप नष्ट हो जायेंगे , सुख समृद्धि प्राप्त होगी तथा मृत्यु के पश्चात् विष्णु लोक मिलेगा।
बोलो विष्णु भगवान की …… जय !!!
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