गोवर्धन पूजा अन्नकूट पूजा कैसे की जाती है – Gordhan Pooja Annkut Pooja

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गोवर्धन पूजा Govardhan puja व अन्नकूट पूजा Annakoot puja कार्तिक शुक्ल पक्ष की प्रतिपदा तिथि के दिन की जाती है। धन तेरस, रूप चौदस और दीपावली के बाद गोवर्धन पूजा या अन्न कूट पूजा का दिन होता है।

गोवर्धन पूजा या अन्नकूट पूजा असल में गोवर्धन पर्वत की पूजा है। यह पर्वत बृज में स्थित है। इसे गिर्राज पर्वत के नाम से भी जाना जाता है। इस पर्वत को श्री कृष्ण भगवान ने अपनी अंगुली पर उठाकर गांव वालों को इंद्र के प्रकोप से बचाया था। यह पूजा भगवान श्रीकृष्ण की भक्ति व आराधना का ही एक जरिया है।

गोवर्धन पूजा

वल्लभ सम्प्रदाय ( पुष्टिमार्गी ) , गौड़ीय सम्प्रदाय तथा स्वामीनारायण संप्रदाय के लोगों में इस दिन का विशेष महत्त्व होता है। वैष्णव  मंदिरों में छप्पन भोग बना कर भगवान को भोग लगाया जाता है। जिसमें छप्पन प्रकार खाने की वस्तुएँ बनाई जाती है।

यह भोग गोवर्धन पूजा का ही प्रतीक होता है। यह अन्न कूट कहलाता है। भोग लगाने के बाद इसे प्रसाद के रूप में बांटा जाता है। हजारों की संख्या में लोग इस प्रसाद को पाने के लिए मंदिर पहुँचते है। इस प्रसाद का एक अलग ही स्वाद होता है।

गोवर्धन पूजा विधी – Govardhan Pooja Vidhi

—  इस पूजा के लिए गाय के गोबर से गोवर्धन पर्वत  बनायें।  इसे लेटे हुए पुरुष की आकृति में बनाया जाता है । नाभि के स्थान पर एक कटोरी जितना गड्डा बना लें।

—  फूल , पत्तियों , टहनियों व गाय की आकृतियों से या अपनी सुविधानुसार सजायें ।

—  शुभ मुहूर्त में पूजा शुरू करें ।

—  इस पूजा के लिए लक्ष्मी पूजन वाली थाली , बड़ा दीपक , कलश व बची हुई सामग्री काम में लेना शुभ मानते है। लक्ष्मी पूजन में रखे हुए गन्ने के आगे का हिस्सा तोड़कर गोवर्धन पूजा में काम लिया जाता है।
गोवर्धन पूजा

—  पूजा के लिए  रोली ,  मौली , अक्षत चढ़ायें।

—  फूल माला , पुष्प अर्पित करें।

—  धूप , दीपक , अगरबत्ती आदि जलाएँ।

—  नैवेद्य के रूप में फल , मिठाई आदि अर्पित करें। गन्ना चढायें।

—  एक कटोरी दही नाभि स्थान में डाल कर बिलोने से झेरते है और गोवर्धन के गीत गाते है।

—  गोवर्धन की सात बार परिक्रमा लगाएं।

—  पंचामृत अर्पित करें। पंचामृत दूध, दही, शहद, घी और शक्कर मिलाकर बनाया जाता है।

—  दक्षिणा चढ़ाएँ।

—  श्री कृष्ण भगवान का ध्यान करते हुए श्रद्धा पूर्वक नमन करें।

—  श्री गोवर्धन महाराज की आरती गाएँ।

श्री गोवर्धन महाराज की आरती – Govardhan Arti

श्री  गोवर्धन  महाराज  , ओ महाराज  ,  तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो ।

तोपे  पान चढ़े  तोपे फूल चढ़े , तोपे चढ़े दूध की धार । तेरे माथे…..

तेरे गले में कंठा  सोहे रह्यो , तेरी झांकी बनी विशाल । तेरे माथे ….

तेरे कानन कुंडल सोहे रह्यो ,तेरी ठोड़ी पे हीरा लाल  । तेरे माथे ….

तेरी सात कोस की परिकम्मा, चकलेश्वर  है  विश्राम  । तेरे माथे….

श्री  गोवर्धन  महाराज  , ओ महाराज  ,   तेरे माथे मुकुट विराज रह्यो ।

कुछ लोग घर पर ही छप्पन प्रकार की खाने की वस्तुएं बना कर भगवान को छप्पन भोग लगा कर पूजा करते है । भोग के बाद रिश्तेदार , पड़ोसी , मित्र आदि के साथ प्रसाद का आनंद उठाते है।

कुछ घरों में इसमें साबुत अनाज की खिचड़ी , कढ़ी तथा पालक , मेथी , मूली , बैगन , टमाटर , गोभी आदि सब्जियों को मिलाकर विशेष सब्जी बनाई जाती है जो राम भाजी, या अन्य नामों से जानी  जाती है।

महाराष्ट्र में यह दिन बलि पड़वा के नाम से जाना जाता है। कहते है इस दिन राजा बलि (जिसको वामन अवतार के रूप में भगवान ने पाताल लोक में भेज दिया था)एक दिन के लिए पाताल लोक से निकलकर धरती लोक पर आता है।

गोवर्धन पूजा प्रकृति के समीप रहने का सन्देश देती है। यह गाय से होने वाले लाभ के महत्त्व को समझने का समय होता है। इसीलिए इस दिन गाय बैल आदि की पूजा की जाती है ।

गाय बैल आदि को नहला कर साफ सुथरा करके लाल पीले कपड़े से सजाया जाता है। इनके सींग पर तेल और गेरू लगाया जाता है। घर पर बने भोजन में से पहले गाय को खिलाते है। घर में गाय नहीं हो तो बाहर जाकर गाय को खिलाते है।

इस दिन चाँद नहीं देखना चाहिए। यह अशुभ माना जाता है।

कुछ जगह इस दिन भगवान विश्वकर्मा की पूजा भी की जाती है। विश्वकर्मा देव शिल्प माने जाते है जिनका जन्म समुद्र मंथन से हुआ था। इन्हें यांत्रिक विज्ञान तथा वास्तु कला का जनक कहा जाता है। कहा जाता है कि मुख्य पौराणिक भवन व नगरी जैसे श्री कृष्ण की द्वारिका , लंका नगरी , हस्तिनापुर आदि का निर्माण विश्वकर्मा द्वारा किया गया था।

फैक्ट्री के मजदूर , मिस्त्री , कारीगर , शिल्पकार , फर्नीचर बनाने वाले , मशीनों पर काम करने वाले लोग इस दिन मशीनों औजारों आदि की साफ सफाई करते है , उनकी पूजा करते है तथा भक्ति भाव  और हर्षोल्लास से भगवान  विश्कर्मा का पूजन किया जाता है।

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