जल झुलनी एकादशी Jal Jhulni Ekadashi एक बड़ी एकादशी मानी जाती है। भाद्रपद महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी जलझूलनी एकादशी होती है। इसे वामन एकादशी Waman Ekadashi भी कहते हैं।
यह एकादशी डोल ग्यारस Dol gyaras, परिवर्तनि एकादशी Parivartani Ekadashi, तथा पद्मा एकादशी Padma Ekadashi, जयंती एकादशी Jayanti Ekadashi आदि नामों से भी जानी जाती है।
जल झुलनी एकादशी – Jal jhoolni ekadashi
इस दिन विष्णु भगवान के वामन अवतार की पूजा की जाती है। माना जाता है की इस दिन भगवान वामन की पूजा ब्रह्मा , विष्णु ,महेश तीनों की पूजा करने के समान होती है।
जल झुलनी एकादशी के दिन उपवास किया जाता है जिसका बहुत महत्त्व होता है। यह उपवास करने से भगवत्कृपा प्राप्त होकर सुख समृद्धि में बढ़ोतरी होती है। कहते हैं भगवान विष्णु की प्रसन्नता के लिए स्वर्ग के देवी देवता भी इस व्रत को करते हैं।
अपने प्रतिद्वंदी से आगे रहने और राजा जैसा सम्मान पाने के लिए शास्त्रों में इस व्रत का विधान बताया गया है। जल झुलनी एकादशी के दिन भगवान विष्णु को मंदिर या घर से बाहर ले जाकर नदी तालाब आदि के किनारे जल से स्नान कराया जाता है।
वहां पूजा की जाती है। कई स्थानों पर भगवान को डोली में बिठाकर शोभा यात्रा निकली जाती है। कुछ स्थानों पर मेले का भव्य आयोजन किया जाता है जिसमे हजारों की संख्या में लोग हिस्सा लेकर उत्सव मनाते हैं।
जल झुलनी एकादशी मान्यता
jal jhulni ekadashi manyata
इस एकादशी के बारे में कई प्रकार की मान्यतायें प्रचलित हैं।
— कहते है भगवान श्रीकृष्ण के जन्म के बाद माता यशोदा ने कपड़े वगैरहा धोकर शुद्धि करके जलवा पूजा था। इसी दिन माता ने पहली बार कान्हा को घर से बाहर निकाला था।
— एक अन्य मान्यता के अनुसार चार मास के शयन काल में शेषनाग की शैया पर लेटे भगवान विष्णु इस दिन करवट बदलते हैं इसलिए इसे परिवर्तनि एकादशी कहते हैं।
— एक अन्य कथा के अनुसार इस दिन भगवान विष्णु ने राक्षस राज बलि को वामन ब्राह्मण बन कर परास्त किया था। जिसकी कथा इस प्रकार है –
वामन अवतार और राजा बलि की कथा
त्रेतायुग में बलि नामक एक दानव था । दानव होते हुए भी वह भक्त, दानी, सत्यवादी तथा ब्राह्मणों की सेवा करने वाला था। साथ ही वह यज्ञ और तप आदि भी किया करता था। भक्ति के प्रभाव से वह इतना बलवान हो गया कि वह स्वर्ग में इन्द्र के स्थान पर राज्य करने की कोशिश करने लगा। इससे देवताओं के लिए समस्या उत्पन्न हो गई।
समस्या के समाधान के लिए उन्होंने भगवान श्रीविष्णु से सहायता की प्रार्थना की। भगवान श्रीविष्णु ने वामन का रूप धारण किया और पृथ्वी लोक पर राजा बलि के सामने पहुंचे। उनसे याचना करके कहा –
हे राजन ! तुम मुझे तीन पग भूमि दे दो, इससे तुम्हें तीन लोक दान का फल प्राप्त होगा। राजा बलि ने दानी होने के कारण वामन का आग्रह स्वीकार कर लिया। भगवान ने अपना आकार बढ़ा लिया कि पृथ्वी भी छोटी पड़ गई।
वामन देव ने अपने प्रथम पग में भूमि और दूसरे पग में नभ को नाप कर उन पर अधिकार का लिया( jal jhulni ekadashi ki katha … )
वामन देव ने राजा बलि से पूछा कि मैं यह तीसरा पग कहां रखूं। ऐसे में राजा ने तीसरा पग रखने के लिए अपना सिर आगे बढ़ा दिया, वामन देव ने अपना पांव उस पर रख दिया। इस तरह स्वर्ग एवं पृथ्वी लोक एक साथ-साथ राजा बलि पर भी वामन देव का अधिकर हो गया। भक्त दानव पाताल लोक चला गया और देवों को उसकी शक्ति से छुटकारा मिला।
पाताल लोक जाकर भी अपने कठोर तप से राजा बलि ने फिर से विष्णुजी को प्रसन्न किया और वरदान के रूप में वामन देव को पाताल लोक में पहरेदार बनाने की विनती की। यह समय भाद्रपद माह का ही था और हिन्दू पंचांग के अनुसार यह समय शुक्ल पक्ष के भीतर आता है। तभी से हिन्दू धर्म में इस दिन वामन एकादशी मनाई जाती है।
जलझूलनी एकादशी व्रत की विधि
Jal Jhulani Ekadashi Vrat Vidhi
दशमी को ब्रह्मचर्य का पालन करें।
एकादशी के दिन सुबह नित्य कर्म और स्नान आदि से निवृत होकर शुद्ध वस्त्र धारण करें।
वामन भगवान के सामने व्रत का संकल्प लें।
निराहार रहकर उपवास करें।
एक समय फलाहार किया जा सकता है। अन्न बिल्कुल ना लें।
वामन भगवान की विधि विधान से पूजा करें। पंचामृत से स्नान कराएं। रोली , अक्षत , मौली ,अर्पित करें , पुष्प अर्पित करें , नैवेद्य के रूप में फल , मिठाई आदि अर्पित करें। दीपक जलाकर आरती करें। विष्णु सहस्रनाम का पाठ करें। हो सके तो भजन कीर्तन के साथ रात्रि जागरण करें।
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