धन तेरस Dhan Teras से दीपावली का पावन त्यौहार शुरू होता है। कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की त्रयोदशी या तेरस के दिन धन तेरस मनाई जाती है। आइये जानें धन तेरस कैसे मनाते हैं।
दीपावली का त्यौहार पॉँच दिन चलता है जिसमे धन तेरस के बाद रूप चौदस , दिवाली -लक्ष्मी पूजन , अन्न कूट और अंत में भाई दूज मनाई जाती है।
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धन तेरस कैसे मनाते है – How to celebrate Dhan Teras
Dhan Teras ke din kya karte he
धन तेरस की शाम एक दीपक में मूंग के कुछ दाने , कुछ फूले , एक छोटी कील और एक छेद की हुई कौड़ी रखते है ( कौड़ी को घिसने से उसमे छेद बन जाता है )। इस दीपक में चार बत्तियां लगाकर तेल डालकर इसे जलाते है।
इस चार मुँह से जलते दीपक को घर के मुख्य द्वार के सामने रख देते है। सुबह इसमें से कौड़ी निकालकर घर में रूपये पैसे रखने वाली जगह रखते है।
धन तेरस का दिन बहुत शुभ माना जाता है। इस दिन देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी। अतः इस दिन लक्ष्मी पूजा ( Laxmi Pooja ) और कुबेर पूजा ( Kuber Pooja ) शुभ मानी जाती है।
धन तेरस के दिन भजन आदि गाए जाते है। माँ लक्ष्मी को नैवेद्य के रूप में मिठाई का भोग अर्पित किया जाता है। महाराष्ट्र में इस दिन गुड़ और कुटे हुए धनिये को मिलाकर प्रसाद बनाकर भोग लगाया जाता है। गांवों में पशुओं की पूजा की जाती है जो कि लक्ष्मी का स्रोत होते है।
दक्षिण भारत में गायों को विशेष सम्मान देकर पूजा जाता है। इसे अश्वयुज बहुला त्रयोदशी ( Ashvayuj bahula trayodashi ) के नाम से भी जाना जाता है। अश्वयुज मतलब चाँद और बहुला मतलब कृष्ण पक्ष, त्रयोदशी यानि तेरस।
आयुर्वेद चिकित्सा के जनक धन्वन्तरि ( Dhanvantari ) की जयंती अर्थात जन्म दिन के रूप में भी इसे मनाया जाता है। भगवान धन्वन्तरि की पूजा की जाती है। भारत सरकार के आयुष मंत्रालय द्वारा धनवंतरी जयंती को राष्ट्रीय आयुर्वेद दिवस घोषित किया गया है। अतः इस दिन का बहुत महत्व है।
इसके अलावा इस दिन यमराज को दीपदान और पूजा करके स्वस्थ और लंबे जीवन का आशीर्वाद लिया जाता है। इस दिन बर्तन या गहने आदि खरीदना शुभ माना जाता है। व्यापारी अपने लिए नए बही खाते खरीदते है।
धन तेरस की कथा – Dhan Teras Ki Katha
धन तेरस मनाने की प्रथा के सन्दर्भ में एक कहानी प्रचलित है। जो इस प्रकार है :
राजा हिम के पुत्र की कुंडली में शादी के बाद चौथे दिन ‘ सांप के डसने से मौत ‘ होना लिखा था। जब उसकी शादी हुई तो उसकी पत्नी को जब ये बात पता लगी तो उसने किसी भी तरह राजकुमार को बचाने का निश्चय किया।
उस दिन धन तेरस थी। सांप के डसने का अंदेशा था। उसकी पत्नी ने उसे सोने नहीं दिया। अपने सारे जेवर और गहने, सोने चांदी के सिक्के आदि से दरवाजे पर एक ढ़ेर बना दिया। और सब तरफ दीपक आदि जला दिए। इसके बाद अपने पति को कहानी और गीत आदि सुनाने लगी।
जब यमराज साँप के रूप में दरवाजे के पास आये तो सोने, चांदी, जेवर और रौशनी के कारण उनकी आँखें चोंधिया गई। यमराज राजकुमार के कमरे में प्रवेश नहीं कर सके। उनका ध्यान कहानी और गीत के कारण भी भटक गया।
सुबह होने पर यमराज चले गए। इस प्रकार राजकुमार के प्राण उसकी पत्नी ने बचा लिए। उसी दिन से धन तेरस मनाया जाने लगा। इस दिन को यम दीपदान ( Yam Deepdan ) के रूप में मनाया जाता है। दीपदान करने से परिवार के सदस्यों को अकाल मृत्यु के भय से मुक्ति मिलती है।
यम दीपदान विधि – Yam Deepdan Vidhi
इस दिन शाम को मिट्टी के दीपक में नई रुई की बत्ती लगाकर तिल का तेल भरकर जलाते है। इस दिन व्रत रखा जाता है। यमराज को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा रोली , मौली , अक्षत , पुष्प आदि से करते है और गुड़, मिठाई आदि का भोग लगाते है। दक्षिण दिशा की तरफ मुंह करके इस श्लोक का उच्चारण करते हुए दीपदान किया जाता है।
मृत्युना पाशदंडाभ्याम कालेन श्यामया सह , त्रयोदश्याम दीपदानात सुर्यजः प्रीयताम मम।
( अर्थात इस दीपदान से सूर्यपुत्र यम खुश हों तथा हमें मृत्यु , पाश , दण्ड और काल से मुक्त करें )
धन तेरस के दिन देवी लक्ष्मी समुद्र मंथन से प्रकट हुई थी। इसलिए धन तेरस के दिन भी लक्ष्मी और धन के देवता कुबेर की विधि विधान से पूजा की जाती है। शहद , गुड़ , मेवे , मिठाई आदि का भोग लगाया जाता है।
धन तेरस के दिन लक्ष्मी और कुबेर का पूजन चौघड़िया मुहूर्त के अनुसार करने के बजाय सूर्यास्त के बाद प्रदोष काल में स्थिर लग्न में किया जाना अधिक श्रेष्ठ माना जाता है ।
कुबेर पूजन विधि – Kuber Poojan Vidhi
धन तेरस वाले दिन कुबेर मन्त्र या कुबेर मूर्ति की पूजा की जाती है। कुछ लोग तिजोरी या जूलरी बॉक्स की कुबेर के रूप में पूजा करते है।
कुबेर पूजन के लिए रोली से टीका करें , मौली बांधें , अक्षत अर्पित करें। इसके बाद चन्दन , पुष्प आदि अर्पित करें। धूप , दीपक जलायें।
भोग के लिए फल , मिठाई आदि अर्पित करें। मेवे इलायची सुपारी आदि अर्पित करें। अंत में हाथ से पुष्प , गंध व अक्षत छोड़ते हुए इस मन्त्र के उच्चारण के साथ पूजा समाप्त करें –
ओम श्री कुबेराय नमः। अनेन पूजनेन श्री धनाध्यक्ष श्री कुबेर प्रीयताम नमो नमः।
धन्वन्तरि पूजा – Dhanvantari pooja
ऐसा माना जाता है कि जब देवता और राक्षस ने मिलकर समुद्र मंथन किया तो इसी दिन समुद्र से अमृत का कलश लेकर परम वैद्य आयुर्वेद के जनक श्री धन्वन्तरि भगवान प्रकट हुए थे।
इसलिए इसे धन्वन्तरि त्रयोदशी के नाम से भी जाना जाता है। धन्वन्तरि की जयंती के रूप में स्वास्थ्य लाभ और दीर्घायु की कामना से भगवान धन्वन्तरि की पूजा की जाती है।
भगवान धन्वतरि की पूजा भक्तिभाव से चन्दन , पुष्प, अक्षत, धूप , दीप , नैवैद्य , सुपारी , पान दक्षिणा आदि अर्पित करके की जाती है।
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