पुरुष के शुक्राणु की जाँच और अंडे से मिलना

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पुरुष के वीर्य में स्खलन के समय करोड़ों की संख्या में शुक्राणू  होते है लेकिन गर्भधारण के लिए मात्र एक शुक्राणु ही काफी होता है। एक स्वस्थ और मजबूत शुक्राणू ही महिला के अंडे तक पहुँच कर उसे निषेचित कर पाता है।

करोड़ों शुक्राणू  में से सिर्फ 15% आगे बढ़ने लायक होते हैं जिन्हे ग्रीवा  ( गर्भाशय का मुँह ) तथा गर्भाशय से गुजरकर फेलोपियन ट्यूब में प्रवेश करना होता है। गर्भाशय तक लगभग 1000 शुक्राणू ही पहुँच पाते हैं।

महिला के शरीर में स्थित दो फेलोपियन ट्यूब में से एक में ही अंडा होता है। जो शुक्राणू सही ट्यूब में प्रवेश करता है वही अंडे तक पहुँच पाता है। फेलोपियन ट्यूब का लम्बा रास्ता तय करके अंडे तक पहुँचने वाले शुक्राणू की संख्या मात्र कुछ दर्जन भर रह जाती है।

स्खलन से अंडे तक पहुँचने में कुछ शुक्राणू तो सिर्फ आधा घंटा लगाते हैं और कुछ को दो तीन दिन में भी लग जाते हैं। यदि ओवरी से अंडा नहीं निकला हो अर्थात ओव्यूलेशन नहीं हुआ हो तो जल्दी पहुँचने वाले शुक्राणुओं को फेलोपियन ट्यूब में अंडे के निकलने का इंतजार करना पड़ता है।

यदि महिला की ओवरी से अंडा नहीं निकलता तो अंतिम पड़ाव तक पहुंचे हुए शुक्राणू कुछ दिन में दम तोड़ देते हैं और महिला के श्वेत रक्त कण WBC इन्हे अवशोषित कर इनका निस्तारण कर देते हैं।

अंडे तक पहुँचने में सफल होने वाले शुक्राणू अंडे को घेरकर उसमे प्रवेश करने की कोशिश करते है। अंडे में जब एक शुक्राणू प्रवेश कर लेता है तो उसके बाद अंडे में शुक्राणू  के प्रवेश का रास्ता बंद हो जाता है।

इसके बाद दूसरा कोई शुक्राणू  प्रवेश नहीं कर सकता। शुक्राणु के अंडे में प्रवेश करने पर अंडा जाइगोट में परिवर्तित हो जाता है। यह बढ़ते हुए गर्भाशय में आकर विकसित होता है और बच्चे के रूप मेंपरिवर्तित हो जाता है।

शुक्राणु कितने समय तक जिन्दा रह सकता है

शुक्राणु का जीवित रह पाना इस बात पर निर्भर होता है कि वह किस स्थान और किस वातावरण में है।

—  महिला के शरीर के अंदर शुक्राणु  2 से 5 दिन तक जिन्दा रह सकता है। इसलिए ओव्यूलेशन ( ओवरी से अंडा निकलना ) के चार पांच दिन पहले किया गया सहवास भी प्रेगनेंसी का कारण बन सकता है।

—  एक सूखी सतह जैसे कपड़ा या बिस्तर की चादर पर वीर्य के सूखने के साथ ही शुक्राणु भी ख़त्म हो जाते हैं।

—  गुनगुने पानी में जैसे टब में थोड़ी अधिक देर ( पांच दस मिनट ) तक जिन्दा रह सकते  हैं। हालाँकि उनका पानी में तैरकर महिला को गर्भवती कर पाना लगभग असंभव होता है।

—  उचित वातावरण में वैज्ञानिक तकनीक से शुक्राणु को बहुत लम्बे समय तक जीवित रखा जा सकता है।

वीर्य और शुक्राणू  की जाँच

यदि कोशिश करने के बाद भी गर्भधारण नहीं हो पा रहा हो तो वीर्य की जाँच करवाने की आवश्यकता पड़ सकती है।

इस जाँच से पता चलता है कि शुक्राणू  से संबंधित कोई समस्या तो नहीं है। वीर्य की जाँच में उसका गाढ़ापन, मात्रा, शुक्राणु की डेंसिटी, गति शीलता तथा आकृति आदि की जाँच की जाती है जिनका सही होना जरुरी है अन्यथा इनमे किसी प्रकार की कमी गर्भधारण की विफलता का कारण बन सकती है ।

वीर्य की मात्रा और गाढ़ापन

वीर्यपात में पुरुष 2 -6 ml वीर्य स्खलित करता है अर्थात आधा से एक चम्मच। इससे कम मात्रा होने पर वीर्य में पर्याप्त मात्रा में शुक्राणू  नहीं होंगे और गर्भाधान मुश्किल हो सकता है।

स्खलन के समय वीर्य में पर्याप्त गाढ़ापन होना भी जरुरी होता है। गाढ़े वीर्य से शुरू में शुक्राणू  को आगे बढ़ने में मदद मिलती है। यदि वीर्य पतला होता है कि इसमें  शुक्राणू के लिए आगे बढ़ना मुश्किल होता है।

शुक्राणू डेंसिटी

वीर्य की एक ml मात्रा में कितने शुक्राणू  हैं यह शुक्राणू  डेंसिटी कहलाती है। गर्भाधान सफल होने के लिए सामान्य रूप से एक मिलीमीटर वीर्य में 15 लाख या अधिक शुक्राणू होने जरुरी होते हैं।

शुक्राणू की गतिशीलता

इसमें शुक्राणू  की गतिशीलता को देखा जाता है। सामान्य रूप से स्खलन के एक घंटे बाद भी लगभग 32 % शुक्राणू उचित वातावरण में सीधी लाइन में गति करने योग्य होने चाहिए। ऐसा नहीं है तो गर्भ धारण मुश्किल हो सकता है।

शुक्राणू की आकृति

इसमें शुक्राणू  का आकार तथा उसकी बनावट का अध्ययन किया जाता है। शुक्राणू  की सही बनावट में उसके सभी हिस्से जैसे सिर Head  , गर्दन Midpiece तथा पूंछ  Tail सही आकार के होने जरुरी होते हैं। इन्ही पर उसकी गति और अंडे को निषेचित कर पाने की क्षमता निर्भर होती है।

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