मकर संक्रांति पर सासू माँ को सीढ़ी चढ़ाना – Sasu ji ko siddhi

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मकर सक्रांति पर सासू माँ को सीढ़ी चढाने का रिवाज है। सकरात पर कुछ जगह विशेष प्रकार के नेग ,बयें महिलाओं द्वारा किये जाते हैं। इनका उद्देश्य परिवार के सम्बन्ध को मजबूत बनाना और रिश्तों की मान मर्यादा बढ़ाना होता है।

सकरात एक बड़ा त्यौहार माना जाता है। इस दिन को दान या भेंट आदि देने के लिए श्रेष्ठ माना जाता है। कुछ महिलायें अभीष्ट फल की प्राप्ति और परिवार के कुशल मंगल की कामना में इस दिन से किसी नियम का संकल्प लेकर उसे शुरू करके पूरा करती है। कुछ परिवारों में नेग आदि के रिवाज का प्रचलन होता है।

स्थान और रिवाज के अनुसार  नेग और नियम का पालन किया जाता है।  जानें हमारी भारतीय संस्कृति Indian Culture की एक झलक – सासु माँ को सीढ़ी चढ़ाना

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सासू माँ को सीढ़ी चढ़ाना

Sasuji ko siddhi chadhana

मकर संक्रांति पर सासू माँ को सीढ़ी चढ़ाना यानि उन्हें सम्मान देने का एक तरीका है। इस रिवाज के द्वारा बहू अपनी सासू माँ को पैसे , कपड़े या उपहार देती हैं। उनका आशीर्वाद लेती हैं। इससे सास बहू के रिश्ते में प्यार बढ़ता है। एक दूसरे के प्रति भावनाओं में बढ़ोतरी होती है।

आइये जाने सासू जी को सीढ़ी कैसे चढ़ाते हैं –

मकर संक्रांति के दिन बहू सासू जी को सीढ़ी चढाती हैं। यह एक बहू द्वारा या जितनी भी बहुएँ हों उनके द्वारा मिलकर किया जाता है। अपने रिश्तेदार , पड़ौसी , दोस्त आदि को निमंत्रण देकर बुलाया जाता है। कुछ लोग बैंड बाजा आदि बजवाते हैं। इसे एक उत्सव की तरह मनाया जाता है। सासू माँ को दिए जाने वाले सामान पहले से तैयार कर लिए जाते है।

घर में मौजूद सीढ़ी में सामान वगैरह रखा हो तो उसे हटाकर सीढ़ी को धो पोंछ कर साफ सुथरा किया जाता है। सीढ़ी को रंगोली और फूल आदि से सजाते हैं। अपनी श्रद्धा और रूचि के अनुसार यह काम किया जाता है।

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सासू माँ और बहू सुन्दर वस्त्र आदि पहन कर तैयार हो जाती हैं। इसके बाद बहू द्वारा पहली सीढ़ी पर गिन्नी या श्रद्धानुसार रूपये रखे जाते हैं। बहु सासु माँ से निवेदन करती है और कहती है –

सासुजी आपको सीढ़ी चढ़ाऊँ , आपका मान बढ़ाऊँ !

सासुजी गिन्नी या रूपये ले लेती हैं।

अगली हर सीढ़ी पर बहू कुछ सामान जैसे कपड़े , फल या रूपये आदि रखती जाती हैं और सासु से उसी प्रकार निवेदन किया जाता है। सासु माँ एक एक करके सभी सामान उठा कर अपने पास रखती जाती हैं और सीढ़ी चढ़ती जाती हैं।

अंतिम सीढ़ी पर पहली सीढ़ी जितने ही रूपये या गिन्नी रखी जाती है।

फिर सासुजी को नीचे उतारा जाता है। इस समय पहले से आधे रूपये रखे जाते हैं। बहु फिर निवेदन करती है –

सीढ़ी उतरो सासजी , हमें आशीष की आस जी !

उतरते समय फिर से बहू रूपये आदि रखती जाती हैं और सासुजी उन्हें उठाते हुए एक एक करके सीढ़ी उतरती जाती है।

अंत में सभी चीजें अपने पास रख लेती हैं , बहु सासू माँ के पैर छूती है। सासू माँ बहु को ढ़ेर सारा आशीर्वाद देती है और उसका लाड़ करती है।

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