राधाअष्टमी और महालक्ष्मी व्रत सोलह दिन का – Radha ashtmi Mahalakshmi Vrat

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राधाअष्टमी – Radha ashtami भादों सुदी अष्टमी के दिन मनाई जाती है। इस दिन शक्ति श्री राधेरानी का एक कन्या के रुप में कमल के पुष्प पर प्रादुर्भाव हुआ था।

इस दिन सुबह वृषभानु जी ने देखा कि तालाब के चारों और महान दिव्य ज्योति की छठा छा रही है। कमल पर एक अति सुंदर ज्योतिमय कन्या विराजमान है। वे उस कन्या को घर ले आये। वहाँ नित नए मंगल होने लगे।

राधाअष्टमी

राधाअष्टमी कैसे मनाते हैं

Radha ashtami celebration

राधाअष्टमी के दिन राधाजी को पंचामृत और शुद्ध जल से स्नान करवाकर  सुन्दर वस्त्र से श्रृंगार करना चाहिए। रोली, चावल , पुष्प , इत्र , धूप , दीप आदि अर्पित कर लड़डू और पाक पंजीरी का भोग लगाना चाहिए। आरती , भजन-कीर्तन और मंगल गीत गाने चाहिए। इस प्रकार उत्सव मनाने से श्री राधाकृष्ण प्रसन्न होते हैं। यह उत्सव बृज मंडल में बड़े उत्साह से मनाया जाता है। राधा बिना कृष्ण और कृष्ण बिना राधा नहीं मिलते। दोनों एक ही स्वरुप हैं।

महालक्ष्मी व्रत – Mahalakshami Vrat

राधा अष्टमी के दिन से सोलह दिन का महालक्ष्मी व्रत शुरू किया जाता है। महालक्ष्मी व्रत राधाअष्टमी से शुरू होकर आश्विन कृष्ण पक्ष की अष्टमी तक चलता है। व्रत का संकल्प निम्न मन्त्र पढ़ कर किया जाता है –

करिष्येहं महालक्ष्मी व्रत ते त्वत्परायणा  । 

अविघ्नेन मे यातु  समाप्तिं  त्वत्प्रसादतः ।।

अर्थात – हे देवी , मैं आपकी सेवा में तत्पर होकर आपके इस महाव्रत का पालन करुँगी। आपकी कृपा से यह व्रत बिना विघ्न के सम्पूर्ण हो।

महालक्ष्मी व्रत करने का तरीका

Maha Lakshmi Vrat Vidhi

स्नान आदि से निवृत होकर शुद्ध वस्त्र पहनें। पान के पत्ते पर लक्ष्मी जी की प्रतिमा पाटे पर रखें। सोलह सूत का डोरा या कलावे के तार का डोरा सोलह गांठ लगाकर पिसी हल्दी मे रंग लें। इसे पाटे पर रखें।

प्रत्येक गांठ पर ‘ लक्ष्मये नमः ‘ कहकर लाल चंदन वाला जल मिले हुए कुमकुम से पूजा करके पुष्प अर्पित करें।  इस डोरे को हाथ की कलाई में बांध लें। सोलह दिन तक रोजाना लक्ष्मी जी की पूजा करें। पूजा के समय 16 दूब के पल्लव और 16 गेहूं के दाने हाथ में रखें।

सोलहवें दिन लक्ष्मी जी की प्रतिमा को पंचामृत और शुद्ध जल से स्नान कराएं। वस्त्र , काजल , मेहंदी , पुष्प , नैवेद्य की मिठाई आदि अर्पित करें। जल पिलाएं। सोलह प्रकार से पूजन करें।  दिन भर व्रत रखें।

रात को तारागणों को लक्ष्मीजी  के प्रति अर्घ्य देकर लक्ष्मीजी से मनोकामना पूरी करने की प्रार्थना करें। व्रत रखने वाली स्त्री पंडित से हवन करवाये और खीर की आहुती दे।

एक नये सूप में चन्दन , तालपत्र , फूल , चावल , दूर्वा , लाल सूत , सुपारी, नारियल 16 -16  रखें तथा सोलह खाने की चीजें जैसे पपड़ी , शक्करपारे , जलेबी , इमरती आदि रखें। इस सूप को एक दूसरे सूप से ढ़ककर लक्ष्मी जी को अर्पित करें और यह मन्त्र बोलें –

क्षीरोदार्णवसम्भूता  लक्ष्मीश्चन्द्र सहोदरा । 

व्रतेनानेन   संतुष्टा   भवताविष्णुवल्लभा ।।

अर्थात – क्षीर सागर से प्रकट हुई लक्ष्मी , चन्द्रमा की सहोदर भगिनी , श्री विष्णुवल्लभा , महालक्ष्मी आप  मेरे इस व्रत से संतुष्ट हों। इसके बाद श्रद्धानुसार ब्राह्मण युगल को भोजन कराके , दक्षिणा देकर विदा करें फिर स्वयं भोजन करें। इस प्रकार व्रत करने से लक्ष्मी जी की कृपा हमेशा बनी रहती है।

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