रूप चौदस Roop Chodas को नरक चतुर्दशी Narak Chaturdashi या काली चौदस Kali Chodas भी कहते है। यह कार्तिक महीने में कृष्ण पक्ष की चतुदर्शी को आती है। आइये जाने यह दिन कैसे मनाया जाता है।
बंगाल में यह दिन माँ काली के जन्म दिन के रूप में काली चौदस के तौर पर मनाते है। दिवाली के पाँच दिन के त्यौहार में धन तेरस के बाद यह दिन आता है। इसके बाद दिवाली – लक्ष्मी पूजन फिर अगले दिन अन्न कूट , गोवर्धन पूजा तथा अंत में भाई दूज मनाये जाते है।
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इसे छोटी दीपावली भी कहते है। इस दिन स्नानादि से निपट कर यमराज का तर्पण करके तीन अंजलि जल अर्पित किया जाता है। संध्या के समय दीपक जलाये जाते है। तेरस , चौदस और अमावस्या तीनो दिन दीपक जलाने से यम यातना से मुक्ति मिलती है तथा लक्ष्मी जी का साथ बना रहता है।
रूप चौदस का यह दिन अपने सौन्दर्य को निखारने का दिन है। भगवान की भक्ति व पूजा के साथ खुद के शरीर की देखभाल भी बहुत जरुरी होती है। रूप चौदस का यह दिन स्वास्थ्य के साथ सुंदरता और रूप की आवश्यकता का सन्देश देता है।
रूप चौदस के दिन सुबह जल्दी उठकर शरीर पर तेल की मालिश की जाती है। कुछ लोग तेल में हल्दी , गेहूं का आटा , बेसन आदि मिलाकर उबटन बना कर इसे शरीर पर लगाकर नहाते है।
नहाने के पानी में चिचड़ी (अपामार्ग) के पत्ते डाले जाते है। इस स्नान को अभ्यंग स्नान कहते है। कहा जाता है कि भगवान श्रीकृष्ण नरकासुर का वध करने के बाद तेल से नहाये थे, तब से यह प्रथा शुरू हुई। यह स्नान करने से नरक से मुक्ति मिलती है । इसलिए इसे नरक चतुर्दशी भी कहते है।
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इस दिन भगवान् श्रीकृष्ण और उनकी पत्नी सत्यभामा ने नरकासुर नामक राक्षस का वध किया था। इस दिन श्रीकृष्ण की विशेष पूजा की जाती है और इस मन्त्र का उच्चारण किया जाता है —
वसुदेव सुत देवं , नरकासुर मर्दनमः । देवकी परमानन्दं, कृष्णम वंदे जगत गुरुम ।।
दक्षिण भारत में भगवान की यह विजय विशेष तरीके से मनाते है। इस दिन लोग सूर्योदय से पहले उठकर तेल और कुमकुम को मिलाकर रक्त का रूप देते है। फिर एक कड़वा फल तोड़ा जाता है जो नरकासुर के सिर को तोड़े जाने का प्रतीक होता है।
फल तोड़कर कुमकुम वाला तेल मस्तक पर लगाया जाता है। फिर तेल और चन्दन पाउडर आदि मिलाकर इससे स्नान किया जाता है।
अलग अलग हिस्से में इस त्यौहार को अलग तरह से मनाया जाता है।
बंगाल में यह दिन काली चौदस के नाम से जाना जाता है। महाकाली देवी शक्ति के जन्मदिन के रूप में इसे मनाया जाता है। काली माँ की बड़ी बड़ी मूर्तियां बनाकर पूजा की जाती है। यह आलस्य तथा अन्य बुराईयों को त्याग कर जीवन को रोशन करने का दिन माना जाता है।
कुछ जगह भगवान विष्णु के वामन अवतार की पूजा की जाती है। इस दिन भगवान विष्णु ने वामन अवतार धारण करके देवताओं को राजा बलि के आतंक से मुक्ति दिलाई थी। भगवान ने राजा बलि से वामन अवतार के रूप में तीन पैर जितनी जमीन दान के रूप में मांगकर उसका अंत किया था ।
राजा बलि के बहुत ज्ञानी होने के कारण भगवान विष्णु ने उसे साल में एक दिन याद किये जाने का वरदान दिया था। अतः नरक चतुर्दशी ज्ञान की रौशनी से जगमगाने का दिन माना जाता है।
इस दिन हनुमान जी की विशेष पूजा भी की जाती है। बचपन में हनुमान जी ने सूर्य को खाने की वस्तु समझ कर अपने मुंह में ले लिया था। इस कारण चारों और अंधकार फैल गया। बाद में सूर्य को इंद्र देवता ने मुक्त करवाया था।
कुछ लोग रूप चतुर्दशी का व्रत रखते है तथा रूप चौदस की कहानी सुनते है। रूप चौदस की कहानी इस प्रकार है –
रूप चौदस की कहानी – Roop Chaudas Ki Kahani
एक योगी ने खुद को भगवान के ध्यान में लीन करते हुए समाधी लगाई। समाधी लगाने के कुछ दिन बाद ही उनके शरीर में कीड़े पड़ गए। बालों में भी कीड़े पड़ गए। आँखों की पलकों और भोहों में भी जुएँ पैदा हो गई।
इससे परेशान योगी की समाधी जल्द ही टूट गई। अपने शरीर की दुर्दशा देखकर योगी को बड़ा दुःख हुआ।
नारद जी वीणा और खरताल बजाते हुए वहाँ से गुजर रहे थे। योगी ने नारद जी को रोककर पूछा कि प्रभु चिंतन में लीन होने की चाह होने पर भी यह दुर्दशा क्यों हुई।
नारद जी बोले – हे योगिराज , आपने प्रभु चिंतन तो किया लेकिन देह आचार नहीं किया। क्योंकि यह कैसे करते है आपको पता ही नहीं है। समाधी में लीन होने से पहले देह आचार कर लेते तो आपकी यह दशा नहीं होती।
योगिराज ने पूछा अब क्या करना चाहिए।
तब नारद जी ने कहा की आपको रूप चतुर्दशी के दिन सूर्योदय से पहले उठकर शरीर पर तेल की मालिश करें। इसके बाद अपामार्ग ( चिचड़ी ) का पौधा जल में डालकर उस जल से स्नान करें।
इस दिन व्रत रखते हुए विधि विधान से भगवान श्रीकृष्ण का पूजन करें तो आपका शरीर स्वस्थ और रूपवान हो जायेगा। योगिराज के ऐसे करने पर वे स्वस्थ और रूपवान हो गए।
रूप चौदस का दिन बहुत शुभ दिन है अतः प्रसन्न रहकर भक्तिभाव से अपने इष्ट की पूजा करने से अभिष्ट फल की प्राप्ति होती है।
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