वट सावित्री व्रत Vat Savitri Vrat ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन किया जाता है। यही व्रत ज्येष्ठ मास की अमावस्या के दिन भी किया जा सकता है। इस वर्ष ज्येष्ठ मास की अमावस्या सोमवती अमावस्या भी है । अतः इस दिन का लाभ अवश्य उठाना चाहिए ।
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अमावस्या या पूनम दोनों दिन 4व्रत को करने की तथा पूजन करने की विधि समान ही होती है। इस दिन बरगद के पेड़ की पूजा की जाती है। बरगद का पेड़ घरेलु उपचार में बहुत काम आता है।
बरगद के पेड़ की पूजा विधि
Bargad ki puja vidhi
एक थाली में पूजा के सामान रखें – रोली , मोली ,चावल , हल्दी , गुड़ , भीगे चने , फूल माला , दीपक तथा जल का लोटा रखें।
बरगद के पेड़ के पास जाकर पेड़ को रोली का टिका करें। चावल अर्पित करें। चना , गुड़ चढ़ाकर दीपक जला दें।
हल्दी में कच्चे सूत के धागे को रंगकर बरगद के पेड़ से लपेट दें।
पेड़ की सात परिक्रमा करें। बड़ के पत्तों की माला बना कर पहन लें।
इसके बाद वट सावित्री की कहानी Vat Savitri ki kahani सुने। भीगे चने पर बायना रखकर सासुजी को दें और उनका आशीर्वाद लें।
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वट सावित्री व्रत की कथा – Vat Savitri Vrat Katha
प्राचीन काल में अश्वपति नाम के राजा थे उनके कोई संतान नहीं थी। उन्होंने ब्रह्मा की पत्नी विधात्री की तपस्या की । विधात्री की कृपा से राजा के यहाँ सुंदर कन्या ने जन्म लिया। लड़की का नाम सावित्री रखा।
सावित्री बहुत रूपवान और गुणी थी। राजा ने पंडितों से उसकी शादी की चर्चा की। पंडितों ने राजा को सलाह दी की सावित्री को खुद अपना वर चुनने की आज्ञा दें। राजा ने ऐसा ही किया।
एक बार सावित्री सत्यवान और उसके माता पिता से मिली। सत्यवान के रूप , गुण और लक्षण देखकर उसे अपना पति चुन लिया । राजा सावित्री की शादी सत्यवान से करने को तैयार हो गए ।
जब नारद जी को यह बात पता चली तो नारद जी ने राजा से कहा-हे राजन ! सावित्री ने जो पति चुना है वह बुद्धि में ब्रह्मा के समान , सुंदरता में कामदेव के समान , वीरता में शिव के समान और क्षमा में पृथ्वी के समान है। लेकिन वह अल्प आयु है और एक वर्ष बाद ही उसकी मृत्यु हो जाएगी। ( Vat savitri vrat katha….)
राजा यह जानकर बहुत दुखी हुए उन्होंने यह बात सावित्री को बताई और कोई दूसरा वर चुनने के लिए कहा । सावित्री ने कहा क्षत्राणी एक बार ही वर चुनती है और मैं सत्यवान को वर चुन चुकी हूँ। तब राजा ने सत्यवान व सावित्री का विवाह करवा दिया। ( वट सावित्री व्रत….)
सावित्री ने ससुराल पहुंचते ही अपने नेत्रहीन सास ससुर की सेवा शुरू कर दी। बचपन से सावित्री शिव आराधना किया करती थी। उसे अपने भविष्य के बारे में मालूम था। शादी के बाद भी वह ॐ नमः शिवाय का जप करने लगी और आने वाले संकट से बचने के लिए प्रार्थना करने लगी।
सपने में शिव जी ने उसे वट वृक्ष अर्थात बरगद के पेड़ की पूजा करने के लिए कहा। सावित्री ने नियम पूर्वक वट वृक्ष की पूजा आरम्भ कर दी। जब सत्यवान की मृत्यु होने में तीन दिन शेष रह गए तो उसने खाना पीना छोड़ कर कठोर व्रत किया ।
ज्येष्ठ महीने की अमावस्या वाले दिन सत्यवान जब लकड़ी काटने के लिए जंगल को जाने लगा तब सास ससुर की आज्ञा लेकर सावित्री भी साथ चली गयी। लकड़ी काटते काटते सत्यवान के सिर में दर्द होने लगा तो सावित्री बोली मेरे गोद में सिर रख कर थोड़ी देर आराम कर लीजिये।
सावित्री की गोद में लेटते ही सत्यवान की मृत्यु हो गयी। ( Vat savitri vrat ki kahani….)
यमराज सत्यवान की आत्मा को ले जाने लगे तो व्रत के प्रभाव से सावित्री को यमराज दिखाई देने लगे। वह यमराज के पीछे-पीछे चल पड़ी। यमराज ने कहा, ” वह उनके पीछे नहीं आवे उन्हें उनका काम करने दें ” किन्तु वह बोली मैं अपने पति के बिना एक क्षण भी नहीं रह सकती , इसलिए मैं अपने पति के साथ चलूँगी।
यमराज ने कहा की ,” तुम मेरे साथ नहीं चल सकती , सत्यवान के अलावा कोई भी वर मांग ले। सावित्री बोली मेरे सास ससुर राज्य छोड़कर अंधे होकर रहे हैं। उनकी आँखों की रौशनी और राज पाट उन्हें वापस मिले।
यमराज ने “तथास्तु “कहा।
सावित्री फिर भी यमराज के पीछे चलने लगी। सावित्री बोली मै सत्यवान के बिना नहीं रह सकती। यमराज बोले सत्यवान को छोड़कर , एक वर और मांग लो। सावित्री ने कहा मेरे पिता के कोई पुत्र नहीं है। उन्हें सौ पुत्र मिलें। यमराज ने ” तथास्तु ” कह दिया।
सावित्री फिर भी यमराज के पीछे चलने लगी। यमराज क्रोध में आकर बोले दो वरदान देने के बाद भी तुम वापस नहीं लौटती। सावित्री बोली महाराज सत्यवान के बिना मेरा जीवन कुछ नहीं। इसलिए मै नही लौटी।
यमराज बोले अब आखरी बार सत्यवान को छोड़कर एक वर और देता हूँ। सावित्री ने कहा मुझे सौ पुत्र और अटल राजपाट मिले। यमराज ने ” तथास्तु ” कहा और जाने लगे। ( वट सावित्री व्रत कथा ….)
पीछे मुड़कर देखा तो सावित्री पीछे आ रही थी। गुस्से से कुपित होकर बोले अब तू नहीं लौटी तो तुझे श्राप दे दूंगा। सावित्री हाथ जोड़कर बोली महाराज एक पतिव्रता स्त्री को आपने सौ पुत्रों का वरदान दिया है। पति सत्यवान के बिना यह कैसे संभव है ?
यमराज को अपनी गलती समझ आ गयी और उन्हें सत्यवान को वापस लौटाना पड़ा। सत्यवान जीवित होकर खड़े हो गए।
सावित्री और सत्यवान ने गाजे बजे के साथ वट वृक्ष की पूजा की। पत्तों के गहने बनाकर पहने तो वे हीरे मोती के हो गए। घर वापस लौटे तो देखा सास ससुर की आँखों की रोशनी वापस आ गयी थी और राजपाट भी वापस मिल गया। पिता अश्वपति के सौ पुत्र हुए। सत्यवान को राजगद्दी मिली।
चारों तरफ सावित्री के व्रत की चर्चा होने लगी। ( वट सावित्री व्रत की कहानी….)
हे वट वृक्ष ! जैसा सावित्री को सुहाग और वैभव दिया वैसा हमें भी देना। कहानी कहने वाले , सुनने वाले , हुंकारा भरने वाले को भी देना।
इसके बाद गणेश जी की कहानी सुननी चाहिए।
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