शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी के दिन शीतला माता की पूजा shitla mata ki pooja की जाती है। होली के सात आठ दिन बाद चैत्र कृष्ण पक्ष में शीतला सप्तमी या अष्टमी होती है।
यह त्यौहार बासोड़ा Basoda , ठंडा बासी thanda basi तथा राधा पुआ Radha Pua के नाम से भी जाना जाता है।
बासोड़ा Basoda यानि बासी ठंडा भोजन का माता शीतला Sheetla mata को भोग लगाना ।
शीतला माता का पूजन और ठन्डे व्यंजनों का भोग लगाने के बाद घर के सभी सदस्य सिर्फ ठन्डे व्यंजन ही खाते हैं जिन्हे एक दिन पहले ही बना कर रख लिया जाता है। यह मौसम में परिवर्तन संकेत भी है।
सिंधी समाज मे यही पर्व रक्षा बंधन के आठ दिन बाद मनाया जाता है । जिसे थडड़ी Thadri के नाम से जाना जाता है । इस दिन ठंडे पकवान जैसे मीठी रोटी , बेसन की रोटी , कोकी , दही बड़ा , सब्जियों में करेला, भाटा, भिंडी, परवल, आदि बनाए जाते हैं । शीतला माता की पुजा की जाती है ।
सीतला अष्टमी के दिन से पक्की गणगौर की पूजा शुरू होती है। कुछ जगह बच्चे दूल्हा दुल्हन का वेश बनाकर बारात निकालते हैं तथा विवाह जैसी रस्मे की जाती हैं। इन्हे शिव पार्वती का रूप माना जाता है।
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शीतला माता का वाहन गर्दभ यानी गधा है। माता अपने हाथों में कलश , सूप , झाडू तथा नीम के पत्ते धारण करती हैं।
मान्यता है कि शीतला माता की पूजा करने से चेचक , खसरा आदि रोगों का प्रकोप नहीं फैलता है। शीतला माता भगवती माँ दुर्गा का ही एक रूप है।
शीतला सप्तमी की पूजा विधि
Sheetla Saptami Pooja Vidhi
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इस दिन सुबह स्नान करके शीतला माँ की पूजा की जाती है। ठन्डे और बासी व्यंजन का माता शीतला को भोग लगाया जाता है। इसीलिए इसे बासोड़ा Basyoda कहते है। शीतला माता की पूजा Shitla mata ki puja करने की विधि इस प्रकार है :
— एक दिन पहले मीठा भात (ओलिया ) , खाजा , चूरमा , मगद , नमक पारे , शक्कर पारे , बेसन चक्की , पुए , पकौड़ी , राबड़ी , बाजरे की रोटी , पूड़ी सब्जी आदि बना लें।
कुल्हड़ में मोठ , बाजरा भिगो दें। इनमे से कुछ भी पूजा से पहले नहीं खाना चाहिए। माता जी की पूजा के लिए ऐसी रोटी बनानी चाहिए जिनमे लाल रंग के सिकाई के निशान नहीं हों।
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— एक दिन पहले रात को सारा भोजन बनाने के बाद रसोईघर की साफ सफाई करके पूजा करें। रोली , मौली , पुष्प , वस्त्र आदि अर्पित कर पूजा करें। इस पूजा के बाद चूल्हा नहीं जलाया जाता।
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— शीतला सप्तमी / अष्टमी के एक दिन पहले नौ कंडवारे, एक कुल्हड़ और एक दीपक कुम्हार के यहाँ से मंगवा लेने चाहिए।
— बासोड़े के दिन सुबह जल्दी उठकर ठंडे पानी से नहायें ।
— एक थाली में कंडवारे भरें। कंडवारे में थोड़ा दही , राबड़ी , चावल ( ओलिया ) , पुआ , पकौड़ी , नमक पारे , रोटी , शक्कर पारे ,भीगा मोठ , बाजरा आदि जो भी बनाया हो रखें।
— एक अन्य थाली में रोली , चावल , मेहंदी , काजल , हल्दी , लच्छा ( मोली ) , वस्त्र , होली वाली बड़कुले की एक माला व सिक्का रखें।
— जल कलश भर कर रखें।
— पानी से बिना नमक के आटा गूंथकर इस आटे से एक छोटा दीपक बना लें। इस दीपक में रुई की बत्ती घी में डुबोकर लगा लें ।
— यह दीपक बिना जलाये ही माता जी को चढ़ाया जाता है।
— पूजा के लिए साफ सुथरे और सुंदर वस्त्र पहनने चाहिए।
— पूजा की थाली पर , कंडवारों पर तथा घर के सभी सदस्यों को रोली , हल्दी से टीका करें। खुद के भी टीका कर लें।
— हाथ जोड़ कर माता से प्रार्थना करें –
” हे माता , मान लेना और शीली ठंडी रहना ”
— इसके बाद मन्दिर में जाकर पूजा करें। यदि शीतला माता घर पर हो तो घर पर पूजा कर सकते हैं ।
— सबसे पहले माता जी को जल से स्नान कराएँ।
— रोली और हल्दी से टीका करें।
— काजल , मेहंदी , लच्छा , वस्त्र अर्पित करें ।
— तीन कंडवारे का सामान अर्पित करें। बड़ी माता , बोदरी और अचपडे ( खसरा ) के लिए।
— बड़कुले की माला अर्पित करें।
— आटे का दीपक बिना जलाये अर्पित करें।
— आरती या गीत आदि गा कर माँ की अर्चना करें। शीतला माता की आरती के लिए यहाँ क्लीक करें।
— हाथ जोड़ कर आशीर्वाद लें।
— अंत में वापस जल चढ़ाए , और चढ़ाने के बाद जो जल बहता है, उसमें से थोड़ा जल लोटे में डाल लें। यह जल पवित्र होता है। इसे घर के सभी सदस्य आँखों पर लगाएँ। थोड़ा जल घर के हर हिस्से में छिड़कना चाहिए। इससे घर की शुद्धि होती है पॉजिटिव एनर्जी आती है।
— शीतलामाता की पूजा के बाद पथवारी की पूजा करनी चाहिए। एक कुंडवारे का सामान यहाँ अर्पित करें।
— शीतला माता की कहानी , पथवारी की कहानी और गणेश जी की कहानी सुने।
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— इसके बाद जहाँ होली का दहन हुआ था वहाँ आकर पूजा करें थोड़ा जल चढ़ावे , पुआ , पकौड़ी , बाजरा व एक कुंडवारे का सामान चढ़ाए।
— घर आने के बाद परिंडे पर मटकी की पूजा करें।
— बचे हुए कंडवारे का सामान कुम्हारी को या गाय को और ब्राह्मणी को दें।
— इस प्रकार शीतला माता की पूजा संपन्न होती है।
— ठन्डे व्यंजन सपरिवार मिलजुल कर खाएँ और बासोड़ा त्यौहार का आनंद उठाएँ।
शीतला सप्तमी / अष्टमी से सम्बंधित अन्य जानकारी :-
— शीतला माता की पूजा ठंडे वार को करनी चाहिए जैसे सोमवार , बुधवार या शुक्रवार ठंडे वार माने जाते हैं।
— यह पूजा बच्चो के स्वास्थ्य के लिए उनकी माँ करती हैं।
— इस दिन सिर नहीं धोते , सिलाई नहीं करते , सुई नहीं पिरोते , चक्की या चरखा नहीं चलाते हैं। यह अगता माँ और दादी रखते हैं।
— इसी दिन गणगौर की पूजा के लिए जवारे बोये जाते है।
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