हरतालिका तीज का व्रत Hartalika teej vrat भाद्रपद महीने की शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि के दिन किया जाता है। इस दिन ही पार्वतीजी ने महान तप करके शिवजी को प्राप्त किया था। आइये जानें इस व्रत का महत्त्व और विधि।
माना जाता है की इस व्रत को करने से कुँवारी लड़कियों को मनचाहा वर प्राप्त होता है और विवाहित महिलाओं को अटल सुहाग की प्राप्ति होती है।
दिगंबर जैन समाज में भादवा शुक्ल पक्ष की इस तीज को रोट तीज Rot Teej के रूप में मनाया जाता है। घर घर में खीर और रोट और तुरई साग बनाये जाते हैं।
हरतालिका तीज पूजन विधि – Hartalika Teej Poojan
हरतालिका तीज के दिन शिव पार्वती की मिट्टी से बनी प्रतिमा की पूजा की जाती है। संभव हो तो मिट्टी की प्रतिमा घर पर ही बनानी चाहिए।
पूजा के लिए शाम के समय नहाकर शुद्ध वस्त्र धारण करें। पहले गणेश जी , नवग्रह और षोड़श माता की पूजा करें। इसके बाद शिव पार्वती की प्रतिमा की पूजा करें। इसके लिए शुद्ध जल , पंचामृत , रोली , मौली , अक्षत , चन्दन , सिन्दूर , फ़ल – फूल , बील पत्र से पूजा करें।
प्रतिमा को सुन्दर वस्त्रों से सजाएँ। शिवजी को धोती गमछा चढ़ायें , पार्वती जी को लहंगा ओढ़नी और सुहाग पिटारी चढ़ाएं। आरती करें ।
हरतालिका तीज की कहानी सुने। Hartalika Teej ki kahani आगे बताई गई है।
हो सके तो रात्रि जागरण करें।
अगले दिन शिव पार्वती की प्रतिमा जलाशय में या पीपल में विसर्जित करें। ब्राह्मण – ब्राह्मणी के एक जोड़े को भोजन करायें। धोती गमछा ब्रह्मण को दें , ब्राह्मणी को लहंगा , ओढ़नी , सुहाग पिटारी तथा दक्षिणा देकर विदा करें।
सास को 14 मिठाई और रूपये दें , उनके पांव छूकर आशीर्वाद लें। इसके बाद स्वयं भोजन करें।
हरतालिका तीज की कथा – Hartalika teej katha
पार्वती जी का जन्म हिमाचल राजा के यहाँ हुआ था। बड़े होने पर उनके रूप लावण्य को देखकर राजा उनके योग्य वर के बारे में सोचने लगे।
पार्वती जी को शिवजी से विवाह करना था लेकिन पिता से नहीं कह पाई थी।
एक बार नारद जी घूमते हुए वहां आये तो उन्होंने राजा हिमाचल को पार्वती जी का विवाह भगवान विष्णु से करने की सलाह दी। राजा हर्ष पूर्वक मान गये।
इस बात का पता लगने पर पार्वती जी बहुत दुखी हो गई। उनकी एक सखी ने दुखी होने का कारण पूछा तो उन्होंने कहा -मेने मन में ठान लिया है कि मैं शिव जी से ही शादी करुँगी। ( Hartalika teej ki kahani ….)
सखी ने कहा -लेकिन वे तो योगी हैं। भभूत लगाते हैं , मृग छाला पहनते हैं , उन पर सांप लिपटे रहते हैं। तुम्हारे पिता उनसे तुम्हारी शादी नहीं करेंगे। शिव की वैरागी हैं इसलिए वे भी शादी करने के लिये तैयार नहीं होंगे।
पार्वती जी ने कहा – इसके लिए मैं तपस्या करुँगी।
पार्वती जी ने एक गुफा में जाकर कठिन तपस्या शुरू कर दी। इस तपस्या से प्रसन्न होकर शिवजी ने प्रकट होकर उनसे शादी करने का आश्वासन दिया। ( Hartalika teej ki katha ….)
तब हर्ष विभोर होकर पार्वती जी ने शिव जी की मूर्ति बनाई और रात्रि में तीन बार शिव जी का पूजन किया। रात्रि जागरण किया। उस दिन भाद्रपद शुक्ल पक्ष की तृतीया तिथि थी।
दूसरे दिन दोनों सखी पूजन सामग्री नदी में विसर्जित करने गई।
राजा हिमाचल भी उन्हें ढूंढते हुए वहां आ गए। उनसे घर से चुपचाप चले जाने का कारण पूछा । पार्वती जी ने बताया की उन्हें विष्णु जी से नहीं शिव जी से शादी करनी थी। शिवजी को मन में अपने पति के रूप में धारण किया है। राजा ने पुत्री को बहुत समझाया की शिव जी से शादी करने के बाद रहने तक का ठिकाना नहीं होगा।
पार्वती जी नहीं मानी। आखिर राजा पार्वती जी का विवाह शिवजी से करने को तैयार हो गए। राजा शिवजी के पास अपनी पुत्री पार्वती से विवाह का प्रस्ताव भेजा। शिव जी ने स्वीकार किया और इस तरह शिव जी और पार्वती जी का विवाह संपन्न हुआ।
इस प्रकार व्रत के प्रभाव से पार्वती जी को मनचाहा वर मिला।
शिव पार्वती की …. जय !!!
इन्हे भी पढ़ें और लाभ उठायें :
चौथ माता की कहानी बारह महीने की
मंगला गौरी व्रत और पूजा सम्पूर्ण विधि
गणगौर के गीत पूजा के समय बाद वाले सभी
पीपल के पेड़ की पूजा विधि और लाभ
रुद्राक्ष धारण करने के फायदे और असली की पहचान