निर्जला एकादशी व्रत पारण पूजा विधि और इसका महत्त्व -Nirjala Ekadashi

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निर्जला एकादशी या निर्जला ग्यारस  Nirjala Ekadashi का महत्त्व साल भर में आने वाली 24 एकादशी में सबसे अधिक होता है। निर्जला का मतलब है बिना पानी। इस दिन किये जाने वाले व्रत में पानी भी नहीं पिया जाता है।

यह बहुत कठिन व्रत होता है। इस दिन लम्बी उम्र के लिए , मोक्ष की प्राप्ति के लिए तथा सुख समृद्धि और सम्पन्नता प्राप्त करने के लिए व्रत किया जाता है। इस व्रत को पुरुष और महिलायें दोनों कर सकते हैं।

माना जाता है कि एक निर्जला एकादशी का व्रत करने से पूरे साल की 24 एकादशी के व्रत करने का लाभ मिलता है। इसे निर्जला ग्यारस Nirjala Gyaras भी कहा जाता है।

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निर्जला एकादशी

ज्येष्ठ महीने के शुक्ल पक्ष की एकादशी को निर्जला एकादशी होती है। इसे भीम एकादशी Bhim Ekadashi  ,  भीमसेनी एकादशी Bhimseni Ekadashi और पांडव एकादशी Pandav Ekadashi के नाम से भी जाना जाता है।

एकादशी का व्रत तीर्थ यात्रा का फल देने वाला , पाप नष्ट करने वाला तथा आत्मा और शरीर को शुद्ध करने वाला माना जाता है। इसके एक दिन पहले यानि ज्येष्ठ महीने में शुक्ल पक्ष की दशमी तिथि को गंगा दशहरा मनाया जाता है। माना जाता है इस दिन देवी गंगा का नदी के रूप में धरती पर अवतरण हुआ था।

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निर्जला एकदशी का व्रत कैसे करते हैं – Vrat ka tarika

निर्जला ग्यारस का व्रत एकादशी के दिन सूर्योदय से लेकर अगले दिन सूर्योदय तक अर्थात 24 घंटे का होता है। व्रत वाले दिन ना तो कुछ खाते हैं और ना ही कुछ पीते हैं।

इस दिन भगवान विष्णु की पूजा और भक्ति की जाती है तथा आम , खरबूजा , शक्कर , वस्त्र , मटकी , छाता , जूता, बीजणी  ( हाथ से चलाये जाने वाली पंखी ) आदि का दान देना शुभ माना जाता है। कुछ लोग गाय का दान भी करते हैं। इस दिन ” ओम नमो भगवते वासुदेवाय “ मन्त्र का जाप करना चाहिए।

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यह व्रत कठिन होने के कारण अपनी शारीरिक अवस्था के अनुसार ही करना चाहिए। शरीर साथ ना दे तो एक समय फलाहार करके यह व्रत करना चाहिए। बच्चे , बूढ़े और बीमारी की अवस्था में पौष्टिक तरल आहार जैसे ठंडाई आदि लेकर तथा फल जैसे आम , खरबूजा आदि खाकर यह व्रत करना चाहिए।

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कभी कभी तिथि बढ़ जाती है। यदि एकादशी दो हों तो पहली स्मार्त की तथा दूसरी वैष्णव की एकादशी मानी जाती है। अतः व्रत इसके अनुसार करना चाहिए।

निर्जला एकादशी के दिन व्रत और पूजा

Nirjala Ekadashi Vrat and Pooja

इस दिन सूर्योदय के साथ ही व्रत शुरू हो जाता है और अगले दिन सूर्योदय तक न ही कुछ खाया जाता है और ना ही कुछ पीया जाता है। सुबह स्नान करने के बाद शुद्ध वस्त्र पहन कर मंदिर जाना चाहिए और विष्णु भगवान के दर्शन करने चाहिए। इस दिन मंदिर जाकर विष्णु भगवान के दर्शन करना विशेष लाभप्रद माना जाता है।

निर्जला ग्यारस के दिन विष्णु भगवान की पूजा की जाती है। विष्णु भगवान की पूजा घर में भी की जा सकती है। पूजा करने का तरीका इस प्रकार है –

पूजा का सामान – Pooja ki samagri

~  विष्णु भगवान की मूर्ति

~  जल का लोटा

~  पंचामृत ( इसे बनाने का तरीका आगे बताया गया है )

~  रोली

~  मोली

~ चन्दन

~ पुष्प

~ तुलसी के पत्ते

~ फल

~ मिठाई

~ नारियल

~ लौंग , इलायची

~ घी का दीपक

पंचामृत बनाने का तरीका : Panchamrit

दूध                  7  चम्मच

दही                 1  चम्मच

घी                   1  चम्मच

शहद                2  चम्मच

पिसी मिश्री          1  चम्मच

इन पांचों वस्तुओं को मिले लें। पंचामृत तैयार है।

पूजा करने की विधि – Poojan Vidhi

~ विष्णु भगवान की मूर्ति को जल से और पंचामृत से स्नान करायें।

~ वस्त्र अर्पित करें।

~ रोली चन्दन का टीका करें।

~ पुष्प अर्पित करें।

~ नारियल अर्पित करें।

~  मिठाई और फल के साथ तुलसी का पत्ता रख कर भगवान को भोग लगायें।

~ इलायची , लौंग आदि अर्पित करें।

~ घी के दीपक से आरती करें।

निर्जला एकादशी के व्रत का पारण

Ekadashi Vrat ka Parana

निर्जला एकादशी के व्रत का पारण अगले दिन यानि द्वादशी तिथि को किया जाता है । द्वादशी के दिन व्रत अवश्य खोल लेना चाहिए अन्यथा व्रत का पूरा फल नहीं मिलता है। सूर्योदय के बाद व्रत का पारण किया जाता है।

पारण हरि वासर समय समाप्त होने के बाद करना चाहिए। हरि वासर का मतलब बारस तिथि की शुरुआत का एक चौथाई समय होता है। व्रत प्रातःकाल में खोल लेना चाहिए।  यदि प्रातः काल में व्रत नहीं खोल पाएं तो मध्याह्न के समय के पश्चात पारण करना चाहिए।

द्वादशी के दिन स्नान करने के पश्चात ब्राह्मणों को भोजन करवा कर व्रत खोलना चाहिए। यदि ब्राह्मण भोजन नहीं करा पायें तो भोजन का सीदा देकर भी व्रत खोल सकते हैं।

निर्जला एकादशी के व्रत की कहानी

Nirjala Ekadashi Vrat Ki  Kahani

कुंती , द्रौपदी और पांडव एकादशी का व्रत करते थे। भीम भी यह व्रत करना चाहता था लेकिन वह बिना खाये रह नहीं पाता था। इसके उपाय के रूप में महर्षि वेद व्यास जी ने उसे निर्जला एकादशी का व्रत करने की सलाह दी ताकि उसे साल की सभी एकादशी का फल मिले जाये।

उसने पूरी निष्ठा से व्रत का पालन किया। यद्यपि वह बेहोश हो गया था लेकिन उसने व्रत नहीं तोड़ा। दूसरे दिन उसने तुलसी में गंगाजल अर्पित करने के बाद ही व्रत खोला। तभी से निर्जला एकादशी का व्रत सभी लोग करते है। इसीलिए निर्जला ग्यारस को भीमसेनी ग्यारस भी कहते हैं।

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