अनंत चतुर्दशी व्रत 2022 की विधि – Anant chaturdashi vrat 2022

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अनंत चतुर्दशी व्रत Anant chaturdashi vrat भाद्रपद शुक्ल पक्ष की चतुर्दशी ( भादवा सुदी चौदस ) के दिन किया जाता है . आम भाषा में इसे अनंत चौदस , अनत चौदस Anat chaudas या अणत चौदस भी कहा जाता है।

इस दिन निराहार या एक समय बिना नमक वाला भोजन (अलुनिया ) लेकर व्रत किया जाता है तथा अनंत भगवान की पूजा की जाती है।

शास्त्रों के अनुसार सृष्टि के आरम्भ में भगवान ने चौदह लोक – तल , अतल , वितल , सुतल , तलातल , रसातल , पाताल , भू , भुवः , स्वः , जन , तप , सत्य और मह की रचना की थी। इन लोकों की रक्षा करने के लिए भगवान खुद भो चौदह रूपों में प्रकट हुए थे। इन्ही रूपों के कारण उनका स्वरूप अनंत प्रतीत होने लगा। अनंत चतुर्दशी के दिन भगवान विष्णु के इसी अनंत स्वरुप को प्रसन्न करने और अनंत फल प्राप्त करने की कामना से व्रत रखा जाता है।

यह व्रत करने से अनंत कष्ट दूर होते हैं तथा अनंत मनोकामनाएँ पूर्ण होती हैं . मान्यता है कि 14 वर्ष तक यह व्रत करने से विष्णु लोक की प्राप्ति होती है . इस दिन विष्णु सहस्त्रनाम का पाठ भी किया जाता है .

अनंत चतुर्दशी के दिन का महत्त्व गणपति विसर्जन के रूप में भी है . गणेश चतुर्थी के दिन लाये गए गणेश जी की प्रतिमा का लोग जुलुस निकालते हुए गाते बजाते समुद्र या किसी जलाशय में भक्ति भाव से विसर्जन करते हैं और अगले वर्ष फिर से आने की विनती करते हैं . महाराष्ट्र में गणेश विसर्जन का यह दिन विशेष रूप से बड़े उल्लास के साथ मनाया जाता है .

अनंत चतुर्दशी 2022 की तारीख

Anant chaturdashi date 2020

9 सितम्बर 2022 , शुक्रवार 

अनंत चतुर्दशी व्रत का तरीका

Anant chaudas vrat vidhi

सुबह दैनिक क्रियाओं से निवृत होकर , स्नान आदि करके व्रत का संकल्प लिया जाता है . साफ और शुद्ध पूजा स्थल पर एक कलश स्थापित किया जाता है . उस पर अष्टदल कमल के समान बने बर्तन में कुशा से निर्मित अनंत भगवान विष्णु को विराजमान किया जाता है . अथवा विष्णु भगवान का चित्र भी लगा सकते हैं .

इसके अलावा कच्चे सूत के चौदह धागे लपेटकर उसे हल्दी में रंग कर चौदह गांठ लगाकर पास में रखा जाता है . इसे अनंत सूत्र Anant sutra कहते हैं . यह अनंत भगवान का प्रतीक होता है जो चौदह लोकों में व्याप्त हैं .

इस प्रकार स्थापित किये गए अनंत भगवान और अनंत सूत्र की पूजा गंध , अक्षत , पुष्प , धूप , दीप , नेवेध्य आदि के साथ की जाती है . पूजा करने के बाद हवन किया जाता है तथा अनंत चतुर्दशी व्रत की कहानी सुनी जाती है .

अनंत चतुर्दशी व्रत की कहानी जानने के लिए यहाँ क्लिक करें। 

चौदह गांठ वाले डोरे को हवन के धुंए से पवित्र करके दायें हाथ पर बांधा जाता है . यह धागा अनंत फल देने वाला माना जाता है . रात को सोने से पहले यह धागा खोल कर शुद्ध जगह पर रख दिया जाता है .

कुछ लोग इसे 14 दिन तक धारण करते हैं बाद में इसे किसी नदी या सरोवर में प्रवाहित कर दिया जाता है अथवा किसी पवित्र वृक्ष के नीचे अर्पित कर दिया जाता है .

अनंत चतुर्दशी व्रत कथा – Anant chaturdashi vrat katha

एक बार युधिष्ठिर ने राजसूय यज्ञ किया . यज्ञ मंडप को बहुत सुन्दर और अद्भुत बनाया गया था . वहाँ वास्तुकारों ने कुछ निर्माण इस प्रकार के किये थे जहाँ पानी होने का भ्रम तो होता था लेकिन पानी नहीं होता था और कुछ जगह लगता था पानी नहीं है लेकिन वहां जलाशय होता था . जब दुर्योधन वहां आया तो इसी भ्रम में फंसकर गलती से पानी में गिर गया . यह देखकर द्रौपदी को बहुत हंसी आई और उसने अंधे का बेटा अँधा कहकर दुर्योधन का उपहास किया .

यह बात दुर्योधन को बहुत चुभ गई . इसका बदला लेने के लिए उसने पांडवों को हस्तिनापुर बुलाकर छल से जुए में हरा दिया . पांडवों को बारह वर्ष का वनवास भोगना पड़ा . जंगल में पांडवों को बहुत कष्ट उठाने पड़ रहे थे . एक बार श्रीकृष्ण भगवान उनसे मिलने आये . युधिष्ठिर ने कष्ट दूर करने का उपाय पूछा . श्रीकृष्ण ने उन्हें अनंत भगवान का व्रत करने की सलाह दी और कहा कि इससे खोया हुआ राज्य पुनः प्राप्त होगा .

पांडवों ने वैसा ही किया जिसके प्रभाव से पांडवों को महाभारत में युद्ध में विजय प्राप्त हुई .

अनंत भगवान की …. जय !!!

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