कुम्भ का मेला Kumbh ka mela किसी एक तीर्थ स्थल पर बारह वर्ष के बाद आयोजित होता है । ये तीर्थ स्थल हैं – हरिद्वार , प्रयाग , उज्जैन और नासिक । हरिद्वार और प्रयाग में छः साल के अन्तराल से अर्धकुम्भ मेला आयोजित होता है ।
जब सूर्य , चन्द्र , गुरु और शनि ग्रहों का संयोग एक राशी में होता है तभी कुम्भ के मेले का आयोजन किया जाता है ।
कुम्भ का मेला इन्ही चार जगहों पर क्यों आयोजित होता है इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जिसे आगे बताया गया है ।
कुम्भ का मेला भरने का कारण सिर्फ धार्मिक नहीं है । कुछ विद्वानों के अनुसार इन स्थानों पर उस समय एक विशेष ऊर्जा तंत्र सक्रीय रहता है जो शरीर को आश्चर्यजनक रूप से लाभान्वित कर सकता है । उस समय वहां उपस्थित रहकर या नदी में स्नान करके उसका लाभ उठाया जा सकता है ।
हरिद्वार को तो ‘गंगाद्वार’ के नाम से भी जाना जाता है । यह वो स्थान है जहाँ गंगा नदी अपने निर्गम “” गंगोत्री “” से निकलकर 253 किलोमीटर की यात्रा के बाद मैदानी क्षेत्र मे प्रवेश करती है ।
हरिद्वार मे समुद्र मंथन के बाद निकले अमृत के घड़े से कुछ बूंद गिर गई थी । एक मान्यता के अनुसार जहाँ पर अमृत की बूंदें गिरी वह स्थान हर की पौड़ी ब्रह्म कुण्ड है ।
हर की पौड़ी हरिद्वार का सबसे पवित्र घाट माना जाता है । भक्त तथा तीर्थयात्री पवित्र दिनों के अवसर पर स्नान करने के लिए यहाँ आते हैं। यहाँ स्नान करना मोक्ष प्राप्त करवाने वाला माना जाता है । इसी प्रकार चारों स्थान की अपनी अलग विशेषता है ।
कुम्भ मेले का विशेष आकर्षण शाही स्नान Shahi snan होते हैं जो साधू संतों का स्नान है । ये साधू इस अवसर पर जंगल , पहाड़ों या गुफाओं से निकलकर स्नान के लिए आते हैं । विभिन्न अखाड़े अपनी बारी के हिसाब संगम स्नान का लाभ उठाते हैं ।
सबसे पहले नागा साधू Naga Sadhu शाही स्नान करते हैं । इन जटाधारी राख से लिपटे नागा साधुओं का स्नान एक अलग रोमांच पैदा करता है ।
कुम्भ का मेला कहाँ और क्यों होता है
यह तीन साल के अंतर से एक तीर्थ स्थल पर पवित्र नदी के तट पर होता है जो इस प्रकार हैं –
इलाहबाद : गंगा , यमुना , सरस्वती के त्रिवेणी संगम स्थल पर
हरिद्वार : गंगा नदी के तट पर
उज्जैन : शिप्रा नदी के तट पर
नासिक : गोदावरी नदी के तट पर
किसी एक तीर्थ स्थल पर बारह वर्ष बाद कुम्भ का मेला आयोजित होता है ।
प्रयाग और हरिद्वार में छः साल के अन्तराल से अर्धकुम्भ मेला आयोजित होता है ।
कुम्भ का मेला इन्ही चार जगहों पर क्यों आयोजित होता है इसके पीछे एक पौराणिक कथा है जो इस प्रकार है –
कुम्भ मेले की कथा – Kumbh mela story
एक बार महर्षि दुर्वासा के श्राप से देवता बहुत कमजोर हो गए थे । दैत्यों से बचने का उपाय पूछने वे भगवान विष्णु के पास गए । विष्णु जी ने उन्हें क्षीर सागर के मंथन से अमृत निकाल कर पीने की सलाह दी । यह काम दैत्यों के बिना संभव नहीं था । अतः उन्हें साथ लेकर समुद्र मंथन शुरू हुआ ।
जैसे ही अमृत कलश निकला इंद्र का पुत्र जयंत उसे लेकर आकाश में उड़ गया । दैत्यों ने पीछा करके उसे पकड़ लिया और अमृत कलश छीनने लगे । देवता और दानवों में युद्ध हुआ जो लगातार बारह दिन तक चला जो मनुष्य के बारह वर्ष के बराबर होते हैं ।
इस युद्ध के दौरान छीना छपटी में अमृत छलक कर पृथ्वी पर चार स्थानों कर गिरा । ये चार स्थान थे प्रयाग , हरिद्वार , नासिक और उज्जैन । अतः इन्ही जगहों पर बारी बारी से कुम्भ का मेला भरता है ।
माना जाता है कि अमृत की खींचतान के समय चन्द्रमा ने उसे व्यर्थ बह जाने से रोका , गुरु ने अमृतकलश को राक्षसों से छुपाया , सूर्य ने अमृत कलश फूटने से बचाया और शनि ने इंद्र के कोप से रक्षा की । अतः जब सूर्य , चन्द्र , गुरु और शनि ग्रहों का संयोग एक राशी में होता है तभी कुम्भ के मेले का आयोजन किया जाता है ।
उज्जैन के कुम्भ को सिंहस्थ कहा जाता है ।
बृहस्पति के सिंह राशी में तथा सूर्य के मेष राशी में प्रवेश करने पर कुम्भ का आयोजन नासिक में गोदावरी नदी के तट पर किया जाता है । यह स्थिति 12 वर्ष में एक बार बनती है । इसे महाकुम्भ Mahakumbh भी कहते हैं ।
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