वास्तु के अनुसार दिशा का महत्त्व और असर – Vastu and Directions

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वास्तु Vastu एक वैज्ञानिक शास्त्र है जो मकान निर्माण से सम्बंधित नियमों की जानकारी देता है। वास्तु शास्त्र के नियम धरती की चुम्बकीय शक्ति ,  धरती पर चलने वाली हवाओं तथा सूर्य का प्रकाश व शुद्ध हवा के आवागमन को ध्यान में रखकर बनाये गए हैं।

यदि किसी मकान में वास्तु के नियमों का भली भांति पालन किया गया हो तो उस मकान में सकारात्मक ऊर्जा का प्रवाह महसूस होता है। साथ ही ऐसे घर में रहने वाले लोग स्वस्थ और सुखी जीवन के साथ समृद्धि और प्रगति पाते हैं  ।

वर्तमान समय में वास्तु का सम्पूर्ण रूप से पालन करना असंभव सा हो गया है लेकिन जहाँ तक संभव हो वास्तु के नियमों का पालन जरुर करना चाहिए। इससे शारीरक और मानसिक लाभ मिलता है। शारीरिक और मानसिक रूप से स्वस्थ व्यक्ति ही प्रगति की और अग्रसर रह कर सुख समृद्धि प्राप्त कर सकता है ।

वास्तु में दिशाओं का अत्यधिक महत्त्व है। वास्तु शास्त्र में पूर्व , पश्चिम , उत्तर , दक्षिण के अलावा उत्तर पूर्ण – ईशान कोण , दक्षिण पूर्व – आग्नेय कोण , दक्षिण पश्चिम – नैऋत्य कोण तथा उत्तर पश्चिम – वायव्य कोण से सम्बंधित विशेषता भी बताई गई हैं। आइये जाने दिशा से सम्बंधित वास्तु नियम या विशेषता क्या हैं और उनका क्या प्रभाव होता है ।

वास्तु के अनुसार कौनसी दिशा में क्या

Vastu according directions in hindi

उत्तर – North

वास्तु में उत्तर दिशा को मुख्य स्थान दिया गया है । क्योकि इस दिशा में सकारात्मक ऊर्जा Positive energy का आधिपत्य रहता है । इसलिए मकान के इस हिस्से को खुला रखने की सलाह दी गई है ताकि सकारात्मक ऊर्जा का प्रवेश घर में हो सके ।

इस दिशा का स्वामी कुबेर Kuber बताया गया है जो आर्थिक उन्नति को प्रभावित करता है। इस दिशा में वास्तु का उलंघन होने से प्रगति में रूकावट , आमदनी से अधिक खर्चा , महिला को समस्या , धन की हानि जैसे परेशानी हो सकती है। उत्तर दिशा में बालकोनी होना बहुत शुभ होता है ।

दक्षिण – South

दक्षिण दिशा को अशुभ मानना गलत है। यह जरुर है कि इस दिशा में मुख्य द्वार ना हो तो अच्छा  रहता है। दक्षिण दिशा में द्वार Main Gate in south सहित अन्य वास्तु उलंघन परेशानी का कारण बनते हैं , ना की सिर्फ दक्षिण का द्वार। इस दिशा के स्वामी यम है जो मृत्यु के देवता हैं। इस दिशा से सम्बंधित वास्तु नियम के उलंघन क़ानूनी परेशानियों की वजह बन सकते हैं ।

दक्षिण में द्वार से कुछ नुकसान हो सकता है लेकिन यदि इस दिशा में उचित रूप से वास्तु का पालन किया जाये तो सुख समृद्धि और सफलता अवश्य मिल सकती है। दक्षिण दिशा वाले प्लाट south facing plot से दूर रहना समझदारी नहीं होती है। वास्तु के अनुसार दक्षिण दिशा में सेप्टिक टेंक , बच्चों का कमरा , लिविंग रूम या गेस्ट रूम आदि नहीं होने चाहिए ।

पूर्व – East

इस दिशा के स्वामी स्वयं इंद्र है। जो वर्षा , उन्नति व शक्ति के देवता हैं। पूर्व दिशा का स्थान खुला और साफ होना चाहिए। इस दिशा में ऊँची दीवार बनाना या हवा के लिए खिड़की दरवाजे आदि नहीं होने से प्रगति रूक जाती है। पूर्व में सीढ़ी , टॉयलेट या स्टोर होना अशुभ होता है। पूर्व दिशा में अवरोध जीवन में अवरोध पैदा कर सकता है ।

ईस्ट फेसिंग प्लाट सबसे अच्छे माने जाते हैं क्योकि इनमे वास्तु का पालन अधिक हो सकता है। लेकिन सिर्फ पूर्व देखता प्लाट east facing plot ही पर्याप्त नहीं होता। उस पर बना मकान भी वास्तु सांगत होना जरुरी होता है अन्यथा कोई लाभ नहीं होता ।

पूर्व दिशा को अधिक खुला रखना चाहिए ताकि सुबह सूरज की किरणों का प्रवेश घर में हो सके ।

पश्चिम – West

इस दिशा से स्थायित्व stability प्रभावित होता है। वरुण इस दिशा के स्वामी हैं , जो भाग्य और प्रसिद्धि के देवता हैं। इस दिशा में अधिक खुलापन आर्थिक परेशानी पैदा कर सकता है। इस दिशा में टॉयलेट , भोजन कक्ष , दुछत्ती आदि बनाये जा सकते है ।

उत्तर पूर्व  या ईशान कोण – North East

इसके स्वामी भगवान शिव हैं। यह दिशा हर प्रकार की सुख समृद्धि दे सकती है  यह ज्ञान और शांति प्राप्त करने के लिए सर्वश्रेष्ठ दिशा है। अतः विद्यार्थी तथा ज्ञान से सम्बंधित लोगों को इसका विशेष लाभ मिल सकता है। यह दिशा बोरिंग , पानी की टंकी तथा पूजा स्थल आदि के लिए सर्वश्रेष्ठ होती है ।

उत्तर पूर्व का भाग खाली या नीचा होना चाहिए इससे आर्थिक उन्नति तथा व्यापार में लाभ होता है ।  छत का ढलान भी उत्तर पूर्व में रखना शुभ होता है , उत्तर में या पूर्व में भी ठीक होता है ।

उत्तर पूर्व में एक गमले में तुलसी का पौधा लगाने से मानसिक , शारीरिक और आर्थिक परेशानी कम होती हैं ।

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इस दिशा में टॉयलेट , बेडरूम , स्टोर रूम , भारी फर्नीचर , आलमारी आदि नहीं होने चाहिए। इस दिशा में अग्नि या बिजली सम्बन्धी चीजें होने से दुर्घटना की संभावना बन सकती है ।

दक्षिण पूर्व या आग्नेय कोण – South East

इस दिशा के स्वामी अग्नि देव हैं । जब सूर्य इस दिशा में आता है तो उग्र हो जाता है।  इस दिशा में आने पर सूरज से इन्फ्रा रेड किरण उत्सर्जित होती हैं। इस दिशा में अग्नि से सम्बन्धित चीजों को स्थान देना शुभ होता है। रसोईघर के लिए यह दिशा सर्वश्रेष्ठ होती है। बिजली के मीटर , जेनेरेटर , ट्रांसफार्मर आदि के लिए यह दिशा उपयुक्त होती है। अग्नि के विरुद्ध चीजें जैसे पानी और हवा को इस जगह स्थान देने से नुकसान उठाना पड़ सकता है ।

दक्षिण पश्चिम या नैऋत्य कोण – South West

इस दिशा का स्वामी निरिती नामक राक्षस है। इस दिशा में चुम्बकीय ऊर्जा सबसे अधिक हो सकती है। इस दिशा का सही उपयोग आत्मविश्वास , तथा हेल्थ और वेल्थ बढ़ाता है साथ ही यह नाम और प्रसिद्धि दिला सकता है । इस दिशा में वास्तु का उलंघन आर्थिक हानि , तनाव , चिंता , डिप्रेशन , थकान का कारण बन सकता है तथा वंश वृद्धि में अवरोध पैदा हो सकता है।

दक्षिण पूर्वी स्थान मकान में सबसे ऊंचा रहना चाहिए। मुखिया का स्थान या कमरा यहाँ होना शुभ होता है। सीढी यहाँ बनाई जा सकती हैं ।

उत्तर पश्चिम या वायव्य कोण – North West

इस दिशा का स्वामी वायुदेव है। यह दिशा जीवन में अवसर पैदा करती है। यह दिशा कैरिअर को ऊंचाइयों तक पहुंचा सकती है। इस दिशा में वास्तु का उलंघन अस्थिरता , संशय और कई तरह की बीमारी और बिना वजह की परेशानियों का कारण बन सकता है।

ड्राइंग रूम , गेस्ट रूम , सर्वेंट रूम , स्टोर रूम या गैरेज इसी दिशा में बनाये जा सकते हैं। इस स्थान को खुला नहीं रखना चाहिए। बड़े बुजुर्गों के कमरे इस स्थान पर ना हों। यह स्थान ईशान कोण से ऊँचा होना चाहिए। यहाँ कुआ, गड्डा, सेप्टिक टेंक आदि ना हो।

वास्तु के अनुसार ध्यान रखने योग्य बातें

Vastu Tips in hindi

मुख्य दरवाजा Main Gate पूर्व , उत्तर या उत्तर पूर्व में खुलना शुभ माना जाता है। दरवाजे के बाहर जूते चप्पल या कूड़ेदान नहीं रखना चाहिए। प्रवेश द्वार पर अँधेरा , काला रंग ,  जानवरों की मूर्ती या तस्वीर आदि ना हो।

पूर्व या दक्षिण दिशा में सीढ़ी Stairs बनाना शुभ होता है। दक्षिण पूर्व में बनी सीढ़ी अत्यंत शुभ होती है। सीढ़ी का घुमाव दायीं तरफ होना शुभ होता है। सीढ़ियों की संख्या विषम होना अच्छा होता है।

तिजोरी , कीमती आभूषण Ornaments , कैश cash आदि सदैव उत्तर दिशा में रखना शुभ होता है ,क्योंकि कुबेर का वास उत्तर दिशा में होता है ।

पूजा घर अथवा योग साधना , ध्यान आदि के लिए कमरा पूर्व या उत्तर पूर्व दिशा में होना चाहिए। पूजा या साधना करते समय पूर्व दिशा में मुंह रखना चाहिए।

रसोई Kitchen के लिए मकान का दक्षिण पूर्व कोना सबसे अच्छा होता है। खाना बनाते समय मुँह पूर्व दिशा में होना ठीक होता है। सिंक और स्टोव एक लाइन में या पास में नहीं होने चाहिए। माइक्रोवेव , ओवन आदि दक्षिण पूर्व में होने चाहिए। पानी का घड़ा , RO फ़िल्टर आदि उत्तर पूर्व North East में होने चाहिए। रसोई की दीवार के साथ बाथरूम या टॉइलेट जुड़े नहीं होने चाहिए। यदि मल्टी स्टोरी बिल्डिंग हो तो रसोई के ऊपर बाथरूम या टॉइलेट नहीं होने चाहिए।

बेडरूम Bedroom दक्षिण पश्चिम भाग में होना शुभ होता है। यह स्वास्थ्य और समृद्धि के लिए अच्छा होता है। उत्तर पूर्व में बेडरूम होने से स्वास्थ्य समस्या हो सकती है तथा दक्षिण पूर्व में बेडरूम होने पर दंपत्ति में झगड़े हो सकते हैं। बेडरूम में मंदिर , पानी वाले चित्र , फव्वारे आदि नहीं होने चाहिए।

सोते समय सिर Head direction for sleep पश्चिम या दक्षिण दिशा में होना चाहिए। बिस्तर के सामने टीवी या आईना नहीं होना चाहिए। कांच में परछाई नजर आना अशुभ होता है।

घर में खिड़कियाँ Window सम संख्या में होनी चाहिए।

कोई भी नल टपकता Leaking tap हो तो उसे तुरंत ठीक करा लेना चाहिए अन्यथा यह धन हानि की वजह बन सकता है।

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