वैशाख पूर्णिमा व्रत , पूजा , महत्व और कथा – Vaishakh Poornima Vrat puja katha

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वैशाख महीने की पुर्णिमा Vaishakh Poornima  एक वर्ष मे आने वाली सभी पूर्णिमाओं मे अत्यधिक महत्व वाली कुछ पूर्णिमा मे से एक मानी जाती है  । इसे पीपल पूर्णिमा Peepal Poonam तथा बुद्ध पूर्णिमा Buddha Purnima भी कहा जाता है ।

माना जाता है कि वैशाख पूर्णिमा के दिन किए गए दान से विशिष्ट फलों की प्राप्ति होती है । वैशाख पूर्णिमा के दिन व्रत का पालन करने से सभी प्रकार के कष्ट दूर होते हैं तथा सुख संपत्ति की प्राप्ति होती है । इस दिन महात्मा बुद्ध को बोधि वृक्ष के नीचे बुद्धत्व प्राप्त हुआ था । इसलिए यह बुद्ध पूर्णिमा भी कहलाती है ।

वैशाख पूर्णिमा के दिन क्या करें

Vaishakh purnima kya kare

इस दिन पवित्र नदियों मे स्नान करने का विशेष महत्व होता है । इसीलिए पवित्र तीर्थ स्थलों पर इस दिन लोग स्नान करते हैं तथा दान आदि करके पुण्य प्राप्त करते है । घर पर नहाने के पानी मे गंगा जल या यमुना का जल मिलाकर भी स्नान किया जा सकता है ।

नारद पुराण के अनुसार वैशाख महीने की एकादशी के दिन अमृत प्रकट हुआ था । द्वादशी के दिन भगवान विष्णु ने अमृत की रक्षा की थी , त्रयोदशी के दिन विष्णु जी ने देवताओं को सुधा पान कराया था । चतुर्दशी के दिन देवताओं ने राक्षसों का संहार किया और वैशाख पूर्णिमा के दिन देवताओं को अपना साम्राज्य प्राप्त हो गया ।

अतः वैशाख महीने के अंतिम दिनों मे किए गए पूजा पाठ अत्यंत लाभकारी सिद्ध होते हैं । वैशाख पूर्णिमा के दिन सत्य नारायण की कथा करने से भगवान विष्णु की असीम कृपा प्राप्त होती है ।

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जो लोग पितृ दोष या शनि दोष से परेशान हैं उन्हे वैशाख पूर्णिमा के दिन पीपल के पेड़ पर काले तिल का तेल मिलाकर जल चढ़ाना चाहिए । इससे पितृ दोष से राहत मिलती है । इस दिन पीपल के पेड़ की पूजा से शनि का प्रकोप कम होता है । जीवन मे आ रही बाधाएं दूर होती हैं । सफलता , तरक्की तथा धन की प्राप्ति होती है । सुबह स्नान करके पीपल के पेड़ पर दूध और जल चढ़ाने से सभी मनोकामना पूरी होती हैं ।

वैशाख पूर्णिमा के दिन पूजा विधि

Vaishakh Poornima Pooja Vidhi

इस दिन स्नान आदि से निवृत होकर स्वच्छ वस्त्र आदि पहनकर पूजा करनी चाहिए । पूजा करते समय आपका मुँह पूर्व दिशा मे होना चाहिए ।

एक चौकी पर लाल और सफेद कपड़ा बिछाकर विष्णुजी और लक्ष्मी जी की मूर्ति स्थापित करें । भगवान को स्नान कराके रोली , मोली , अक्षत , पुष्प , आदि अर्पित करें । फल , मेवा , मिष्ठान आदि का तुलसी पत्र डालकर भोग लगाएं । विष्णु भगवान की और लक्ष्मी जी की आरती गायें ।

इस दिन पीपल के पेड़ पर जल भी चढ़ाना चाहिए । चंद्रमा को भी जल अर्पित करना चाहिए ।

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वैशाख पूर्णिमा के दिन दान

vaishakh poornima daan

वैशाख पूर्णिमा के दिन पानी की मटकी , पंखी , छाता , चप्पल , फल , सत्तू आदि दान करने चाहिए । इस दिन किया गया दान गाय के दान के समान फल देने वाला माना जाता है ।

वैशाख पूर्णिमा की व्रत कथा

Vaishakh Purnima Vrat Katha

द्वापर युग मे एक बार यशोदा माँ ने श्री कृष्ण से कहा कि वह सारे संसार के पालनहारी है ।  ऐसा व्रत बताओ जिसको करने से मृत्युलोक मे भी स्त्रियों को विधवा होने का भय ना रहे तथा वह व्रत सभी मनुष्यों की मनोकामना पूर्ण करने वाला हो ।

श्री कृष्ण जी उन्हे बताते हैं कि सौभाग्य की प्राप्ति के लिए स्त्रियों को 32 पूर्णिमाओं का व्रत करना चाहिए । यह व्रत अचल सौभाग्य देने वाला और भगवान शिव के प्रति मनुष्य मात्र की भक्ति को बढ़ाने वाला व्रत है । यशोदा जी ने पूछा कि इस व्रत को मृत्युलोक मे किसने किया था ।

श्री कृष्ण ने बताया –

कातिका नाम की एक नगरी थी । जो अनेक प्रकार के रत्नों से परिपूर्ण थी । वहाँ चंद्रहास नामक राजा राज्य करता था । उसी नगर मे धनेश्वर नाम का एक ब्राह्मण रहता था । उसकी स्त्री बहूत सुंदर थी , जिसका नाम रूपवती था । दोनों उस नगरी मे बड़े प्रेम से रहते थे । veshak purnima vrat ki kahani …

उनके घर मे धन धान्य आदि की कोई कमी नहीं थी । लेकिन उनकी कोई संतान नहीं थी । इसलिए वे दुखी रहते थे ।

एक बार एक बड़ा योगी उस नगरी मे आया । वह योगी उस ब्राह्मण के घर को छोड़कर अन्य सभी घरों से भिक्षा लेकर भोजन किया करता था । रूपवती से वह कभी भिक्षा नहीं लेता था ।

एक दिन वह योगी किसी अन्य घर से भिक्षा लेकर गंगा किनारे बैठकर प्रेमपूर्वक खा रहा था । तभी धनेश्वर ने योगी को देखा । धनेश्वर ने योगी से पूछा कि वह सभी घरों से भिक्षा लेते है लेकिन उसके घर से कभी भिक्षा नहीं लेते हैं इसका क्या कारण है ।

योगी ने कहा कि निसन्तान के घर की भीख पतितों के अन्न के समान होती है । और जो पतितों का अन्न खाता है , वह भी पतित हो जाता है । इसलिए पतित हो जाने के डर से वह उनके घर की भिक्षा नहीं लेता ।

धनेश्वर यह बात सुनकर दुखी हुआ और हाथ जोड़कर योगी के पैरों मे गिर गया । कहने लगा कि यदि ऐसा है तो वह उसे पुत्र प्राप्ति का उपाय बतायें। धन की उसके घर कोई कमी नहीं है लेकिन कोई संतान ना होने के दुख का हरण करें ।

यह सुनकर योगी कहने लगे कि उन्हे चंडी की आराधना करनी चाहिए ।

घर आकर उसने अपनी स्त्री को पूरी बात बताई और खुद वन मे चला गया । वहाँ उसने चंडी की उपासना करनी शुरू कर दी और उपवास भी किया। baisakh poonam ki katha …

चंडी ने सोलहवें दिन उसको स्वप्न मे दर्शन दिए और कहा कि तुम्हारे यहाँ पुत्र होगा । परंतु 16 वर्ष की आयु मे ही उसकी मृत्यु हो जाएगी । यदि तुम दोनों पति पत्नी 32 पूर्णिमाओं का व्रत विधिपूर्वक करोगे तो वह दीर्घायु हो जाएगा ।

अपने सामर्थ्य के अनुसार आटे के दिए बनाकर शिवजी का पूजन करना तथा पूर्णिमा के पूरे 32 व्रत करना । सुबह यहाँ एक आम का वृक्ष दिखाई देगा । उस वृक्ष पर चढ़कर फल तोड़कर तुरंत घर चले जाना और अपनी पत्नी को सारा वृतांत बताना । ऋतु स्नान करने के बाद शंकर भगवान का ध्यान करके उस फल को खाने से तुम्हारी पत्नी गर्भवती हो जाएगी ।

जब ब्राह्मण सुबह उठा तो उसने पास ही आम का वृक्ष देखा । जिस पर बहुत सुंदर आम का फल लगा हुआ था । ब्राह्मण बहुत कोशिश करने पर भी वृक्ष पर चढ़ नहीं पाया । तब वह गणेश भगवान की वंदना करने लगा । गणेश जी की प्रार्थना करने पर उनकी कृपा से धनेश्वर वृक्ष पर चढ़ गया और उसने सुंदर आम का फल तोड़ लिया ।

उसने घर जाकर अपनी स्त्री को वह फल दे दिया । उसकी स्त्री ने अपने पति के कहे अनुसार उस फल को खा लिया और वह गर्भवती हो गई । vaishakh poornima vrat ki kahani

देवी जी की असीम कृपा से एक अत्यंत सुंदर पुत्र उत्पन्न हुआ । उसका नाम उन्होंने देवीदास रखा ।  भगवान की कृपा से वह बालक बहुत ही सुंदर और सुशील था । पढ़ने लिखने मे भी वह बहुत निपुण हो गया ।

दुर्गा जी की आज्ञा अनुसार उसकी माता ने 32 पूर्णमासी का व्रत रखना प्रारंभ कर दिया । जिससे उसका पुत्र बड़ी आयु वाला हो जाए । सोलहवां वर्ष लगते ही देवीदास के माता पिता को बहुत चिंता हुई कि उनके पुत्र की इस वर्ष मृत्यु हो गई तो वे कैसे सहन करेंगे ।

उन्होंने देवीदास के मामा को बुलाया और कहा कि उनकी इच्छा है कि देवीदास एक वर्ष तक काशी मे जाकर विद्या का अध्ययन करे । परंतु उसका अकेला नहीं भेज सकते । इसलिए वह साथ चले जाएं और एक वर्ष के बाद उसे वापस ले आयें  । मामा ने सहमति दे दी ।

सारा प्रबंध करके देवीदास को एक घोड़े पर बैठाकर उसके मामा के साथ भेज दिया । धनेश्वर ने अपनी पत्नी के साथ माता भगवती के सामने मंगल कामना तथा दीर्घायु के लिए भगवती की आराधना और पूर्णमासियों का व्रत करना प्रारंभ कर दिया । इस प्रकार बराबर 32 पूर्णमासी के व्रत को उन्होंने पूरा किया ।

कुछ समय के बाद एक दिन वह दोनों मामा और भानजा रात बिताने के लिए एक गाँव मे ठहरे थे । जहाँ वे रुके थे वहाँ पर एक ब्राह्मण की सुंदर लड़की का विवाह होने वाला था । उसकी बारात भी वहाँ रुकी हुई थी ।

लड़की ने देवीदास को देखा तो वो उस पर मोहित हो गई । लड़की देवीदास के साथ विवाह करने के लिए कहने लगी । देवीदास ने उसे अपनी आयु के बारे मे बताया और कहा कि उसकी आयु कम है । लड़की ने कहा कि जो भी गति होगी उसे स्वीकार है । दोनों की शादी करा दी गई ।

सुबह देवीदास ने अपनी पत्नी को तीन नगों से जड़ी हुई एक अंगूठी और रुमाल दिया । और कहा कि एक पुष्प वाटिका बना ले । जिस समय और जिस दिन उसके प्राणों का अंत होगा वाटिका के फूल सुख जाएंगें । और यदि वे फिर से खिल उठे तो समझ लेना की वह जीवित है । vaisakh poonam vrat katha …

इसके पश्चात देवीदास काशी विद्या प्राप्त करने के लिए चला गया । जब कुछ समय बीत गया तो काल से प्रेरित होकर एक सर्प रात के समय उसको डसने के लिए वहाँ आया । परंतु व्रत के प्रभाव से उसको काट नहीं पाया क्योंकि उसकी माता ने 32 पूर्णमासी का व्रत कर रखा था ।

इसके बाद स्वयं काल वहाँ पर आया और उसके शरीर से प्राण निकालने की कोशिश करने लगा । इससे देवीदास बेहोश होकर पृथ्वी पर गिर पड़ा ।

उसी समय माता पार्वती के साथ भगवान शंकर जी वहाँ पर आए । उसको बेहोश देखकर पार्वती जी ने भगवान से प्रार्थना की और कहा कि इस बालक की माता ने पहले ही 32 पूर्णमासी का व्रत पूरा किया है वह उसे प्राणदान दे । पार्वती जी की बात मानकर शिवजी ने उसको प्राणदान दे दिया ।

इस व्रत के प्रभाव से काल को भी पीछे हटना पड़ा और देवीदास स्वस्थ होकर बैठ गया । उधर उसकी पत्नी उसके काल की प्रतीक्षा किया करती थी । जब उसने देखा कि उस पुष्प वाटिका मे पुष्प सूख नहीं रहे । वाटिका भी हरी भरी हो गई तो वह जान गई थी कि उसके पति को कुछ नहीं हुआ है । यह देखकर वह बहुत प्रसन्न मन से अपने पिता से कहने लगी कि उसके पति जीवित है और वे उन्हे खोजें ।

सोलहवां साल बीत जाने पर देवीदास अपने मामा के साथ काशी से वापस जाने रवाना हुआ। उसके ससुर उन्हे खोजने जाने वाले ही थे कि वह दोनों मामा भानजा वहाँ आ गए । उनको आया हुआ देखकर उसके ससुर को बहुत प्रसन्नता हुई और वह प्रसन्नता के साथ उन्हे अपने घर ले गए ।

कुछ दिन बाद देवीदास अपनी पत्नी और मामा के साथ बहुत से उपहार लेकर अपने नगर के लिए रवाना हुए । वह अपने गांव के निकट पहुंचे तो लोगों ने उन्हे देखकर उसके माता पिता को पहले ही खबर दे दी कि उनका पुत्र देवीदास अपनी पत्नी और मामा के साथ आ रहा है ।

ऐसा सुनकर उनके माता पिता बहुत खुश हुए । पुत्र और पुत्रवधू के आने की खुशी मे धनेश्वर ने बहुत बड़ा उत्सव मनाया ।

श्री कृष्ण जी कहते हैं कि जिस प्रकार धनेश्वर 32 पूर्णमासी के प्रभाव से पुत्रवान हुआ । उसी तरह जो व्यक्ति इस व्रत को करते हैं । वे जन्म जन्मांतर के पापों से तथा हर प्रकार के दुख से छुटकारा प्राप्त कर लेते हैं । उनकी समस्त मनोकामना पूर्ण होती है ।

वैशाख पूर्णिमा की कथा यहाँ समाप्त होती है । भगवान आप सभी की मनोकामना पूर्ण करे ।

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