अधिक मास Adhik mas जिसे मल मास Mal mas या पुरुषोत्तम मास Purushottam mas भी कहा जाता है , तीन साल मे एक बार आता है । हिन्दू केलेण्डर मे आने वाले इस अधिक मास मे पूजा पाठ , दान धर्म , व्रत आदि विशेष रूप से किए जाते हैं । आइये देखें कि अधिक मास कब और क्यों होता है तथा इसका क्या महत्व है ।
श्राद्ध के बाद नवरात्रा क्यों नहीं
Navratra late kyo
हर वर्ष श्राद्ध समाप्त होने के तुरंत बाद नवरात्रा की पूजा घट स्थापना के साथ शुरू हो जाती है। लेकिन इस वर्ष 2020 मे ऐसा नहीं होगा क्योकि बीच मे अधिक मास आ गया है । ऐसा संयोग 165 वर्ष के बाद घटित होगा ।
अधिक मास कब और क्यों आता है
Adhik mas kab kyo
अधिक मास तीन वर्ष के अंतराल से आता है । भारतीय हिन्दू कैलेंडर मे सूर्य वर्ष और चंद्र वर्ष के अनुसार गणनाएँ की जाती है । भारतीय गणना पद्धति के अनुसार एक सूर्य वर्ष लगभग ”365 दिन और 6 घंटे” का होता है । जबकि एक चंद्र वर्ष लगभग ”354 दिन ” का होता है ।
दोनों वर्षों के बीच का यह अंतर तीन वर्ष मे एक महीने के बराबर हो जाता है । इस अंतर को मिटाने के लिए अधिक मास रखा गया है ।
अधिक मास की विशेषता
Adhik Mas specialilty
- यह मास अतिरिक्त ( extra ) होता हैं यानि एक वर्ष मे 12 महीने की बजाय 13 महीने होते हैं ।
- अधिक मास मे दो अमावस्या के बीच सूर्य संक्रांति नहीं होती है । संक्रांति का अर्थ होता है – सूर्य का एक राशि से दूसरी राशि मे प्रवेश ।
- ज्योतिष गणना के अनुसार शुरू के सात महीने मे ही अधिक मास आता है। अर्थात चैत्र से लेकर आश्विन महीने तक मे ही अधिक मास आता है।इसके बाद वाले महीने यानि कार्तिक से फाल्गुन तक के महीनो मे अधिक मास नहीं होता है ।
- भगवान विष्णु ने नर्सिंग अवतार धारण करके हिरण्य कश्यक का वध अधिक मास मे ही किया था । क्योकि उसे ब्रह्मा जी का वरदान प्राप्त था कि उसकी मृत्यु 12 महीने के किसी भी महीने मे ना हो ।
- शास्त्रों के अनुसार अधिक मास मे मांगलिक कार्य करना निषेध माना जाता है ।
- बृजवासियों के लिए पुरुषोत्तम मास सबसे शुभ माना जाता है क्योंकि इस माह सभी तीर्थ ब्रिज क्षेत्र में निवास करते हैं। जो त्यौहार तीन साल से नहीं मनाया हो उसे इस माह मनाया जाता है।
अधिक मास को पुरुषोत्तम मास क्यों कहते हैं
Purushottam mas kyo kaha jata he
अधिक मास के विषय मे एक रोचक कथा है । कहा जाता है कि हर एक चंद्र मास के लिए एक अलग देवता का निर्धारण किया गया था । लेकिन अधिक मास मात्र संतुलन बनाने के उद्देश्य से प्रकट हुआ था। इसलिए इसका अधिपति बनने के लिए कोई देवता तैयार नहीं हुआ ।
ऐसे मे ऋषि मुनियों ने इस मास का अधिपति बनने के लिए भगवान विष्णु से प्रार्थना की जिसे उन्होने स्वीकार कर लिया । इस तरह भगवान् विष्णु अधिक मास के अधिपति बने। विष्णु भगवान के एक नाम पुरुषोत्तम भी है अतः इस माह को पुरुषोत्तम मास भी कहा जाता है ।
अधिक मास मे क्या करना चाहिए
Adhik Mas me kya kare
अधिक मास मे भगवान विष्णु की पूजा एवं आराधना करना विशेष फलदायी माना जाता है । इस मास के अंतर्गत श्री विष्णु पुराण , भागवत पुराण , विष्णु सहस्रनाम , महा-मृत्युंजय का जप , रुद्र जप आदि का पाठ करना श्रेष्ठ होता है ।
इसके अलावा पूजा पाठ , ध्यान , भजन कीर्तन आदि भी इस मास मे विशेष रूप से प्रतिदिन करने चाहिए । अधिक मास मे धार्मिक अनुष्ठान , तीर्थ स्नान , दान , व्रत , उपवास आदि कार्य किए जा सकते हैं ।
प्रतिदिन दैनिक कार्य तथा स्नान ध्यान से निवृत होकर सूर्य भगवान की पूजा करनी चाहिए ।
अधिक मास मे दोनों एकादशी के दिन व्रत करना अत्यंत शुभ फलदायी माना जाता है । पुरुषोत्तम महीने मे शुक्ल पक्ष की एकादशी पद्मिनी एकादशी तथा कृष्ण पक्ष की एकादशी परमा एकादशी कहलाती हैं । अधिक मास की एकादशी का व्रत अवश्य करना चाहिए ।
अधिक मास मे शुद्ध घी में बने हुए मालपुए का दान करना बहुत लाभकारी माना जाता है ।
अधिक मास मे क्या नहीं करना चाहिए
Adhik mas me kya na kare
इस माह मे कोई विवाह , गृह प्रवेश , नामकरण , यज्ञोपवीत , मुंडन , स्थापना जैसे संस्कार व कर्म नहीं करने चाहिए । इस मास मे नए वस्त्र , वाहन , प्रॉपर्टी , सोना चाँदी आदि खरीदना भी निषेध माना जाता है ।
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