अपरा एकादशी ज्येष्ठ महीने के कृष्णपक्ष की एकादशी को कहते हैं। इसे अचला एकादशी achla ekadashi भी कहा जाता है । अपरा एकादशी apara ekadashi के दिन जो व्यक्ति व्रत रखकर भगवान विष्णु और लक्ष्मी जी की विधिवत पूजा करता है , उसे धन संपदा सहित समस्त सांसारिक सुखों की प्राप्ति हो सकती है ।
अपरा एकादशी का महत्व
Apara ekadashi importance
अचला एकादशी का व्रत करने से जाने अनजाने किए गए पापों से मुक्ति मिलती है । पराई स्त्री से भोग , दूसरों की बुराई करना , झूठ बोलना या लिखना , ठगी या छल करना , अपने कर्तव्य से विमुख होना , गुरु की निंदा करना जैसे पाप नष्ट होते हैं । प्रेत योनि की बाधा से मुक्ति मिल सकती है ।
हिंदू धर्म शास्त्रों में अपरा या अचला एकादशी का व्रत मोक्ष प्रदान करने वाला माना जाता है । अचला एकादशी achla gyaras व्रत का विधिवत पालन करने पर भगवान विष्णु सहित मां लक्ष्मी की भी कृपा प्राप्त होती है ।
जो फल तीनों पुष्करों मे स्नान करने से , कार्तिक मास मे स्नान करने से अथवा गंगा जी के तट पर पितरों को पिंड दान करने से मिलता है , वह फल अपरा एकादशी apra gyaras का व्रत करने से मिल सकता है ।
यज्ञ मे गौ दान , हाथी दान , घोडा दान , भूमि दान ओर स्वर्ण दान करने से जो फल मिलता है उसके बराबर ही फल अचला एकादशी के व्रत को करने से प्राप्त होता है ।
अपरा या अचला एकादशी 2022 का व्रत कब करें
इस वर्ष apara Ekadashi 2022 या achla Ekadashi 2022 का व्रत
26 मई गुरुवार
को रखा जाना चाहिए ।
अपरा एकादशी की कथा
apra ekadashi ki kahani
महिध्वज नाम का एक धर्मात्मा राजा था । उसके छोटे भाई का नाम वज्रध्वज था । वज्रध्वज बड़ा ही कूर , अधर्मी तथा अन्यायी था। वह अपने बड़े भाई से द्वेष रखता था और उसे मार कर खुद राज्य पर कब्जा करना चाहता था ।
वज्रध्वज ने एक रात अवसर पाकर महिध्वज की ह्त्या कर दी । इसके बाद उसकी देह को पीपल के पेड़ के नीचे गाढ़ दिया और खुद राजा बन बैठा । apara gyaras ki katha …
अपघात से मरने के कारण मृत्यु के बाद राजा महिध्वज प्रेतात्मा बन गया । वह पीपल के पेड़ मे रहने लगा । अब वह प्रेत बन गया था इसलिए स्वभाव वश आने जाने वालों को परेशान करने लगा ।
एक दिन धौम्य नाम के ऋषि उधर से गुजर रहे थे । उन्हे पीपल के पेड़ के पास प्रेत होने का आभास हुआ । ऋषि ने अपनी तपस्या के बल से राजा के प्रेत बनने व उत्पात करने का कारण जान लिया । उन्हे पता चला कि राजा प्रेत योनि से मुक्त होना चाहता है । achla gyaras ki kahani
ऋषि ने प्रेतात्मा को पीपल के पेड़ से उतारा और उसके लिए अपरा एकादशी का व्रत करके उसके फल को प्रेत बने राजा को देने का संकल्प कर दिया ।
अपरा एकादशी के व्रत के प्रभाव से राजा महिध्वज प्रेत योनि से मुक्त हो गया और उसे स्वर्ग प्राप्त हुआ ।
कथा समाप्त हुई !!!
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