शरीर के सात चक्र हमारे शरीर में मौजूद कई चक्रों में से प्रमुख चक्र हैं। ये चक्र ऊर्जा के स्रोत होते हैं जो हमे मानसिक और शारीरिक रूप से मजबूत या कमजोर बना सकते हैं। इनके सक्रिय या निष्क्रिय होने से हमारा जीवन प्रभावित रहता है। उपनिषदों में इनका वर्णन मिलता है।
सामान्य अवस्था में ये चक्र निष्क्रिय अवस्था में होते हैं। इन्हें जागृत किया जा सकता है। शरीर के चक्र जागृत होने पर अत्यंत लाभकारी सिद्ध होते हैं तथा मानव को उन्नति की और अग्रसर करते हैं। सभी चक्र सम्पूर्ण रूप से जागृत होने पर इसे ” कुंडली जागरण ” की अवस्था कहते हैं , जो मनुष्य का सर्व शक्तिमान रूप होता है।
चक्र मन्त्र और ध्यान की सहायता से जाग्रत किये जाते है। इन चक्रों को फूल के रूप में दर्शाया जाता है जिसमे अलग संख्या की पंखुडियां होती हैं। प्रत्येक चक्र का एक अलग अक्षर रुपी मन्त्र और एक अलग रंग होता है।
शरीर में स्थित सात चक्रों के नाम , उनका स्थान , उनके रंग , पंखुड़ी की संख्या और चक्र जागृत करने का प्रभाव आदि इस प्रकार होते हैं –
1. मूलाधार चक्र
यह चक्र रीढ़ की हड्डी के आधार पर गुदा और लिंग के बीच स्थित होता है। यह आधार चक्र भी कहलाता है।
इस चक्र का मन्त्र ” लं ” है। इसका रंग लाल है। इसे 4 पंखुड़ी वाले फूल के रूप में दर्शाया जाता है। ये पंखुडियां मानवता , बुद्धि , चित्त और अहंकार की प्रतीक हैं। इस चक्र का तत्व धरती है।
मूलाधार चक्र Mooladhar chakra को जागृत करने से चेतना और मानवता का विकास होने लगता है। इसके अलावा वीरता , निर्भीकता तथा आनंद का भाव महसूस होने लगता है।
जिस व्यक्ति में यह चक्र असंतुलित होता है तो वह सांसारिक चीजों को अधिक महत्त्व देता है , असुरक्षित और बैचेनी महसूस करता है तथा अकेला रहना पसंद करता है। उसे भोजन और नींद अधिक प्रिय होते हैं।
2. स्वाधिष्ठान चक्र
यह चक्र त्रिकास्थि के निचले छोर में स्थित होता है। इसका मन्त्र ” वं “ है। इसे 6 पंखुड़ी वाले कमल के फूल के रूप में दर्शाया जाता है। ये पंखुड़ीयां क्रोध , घृणा , वैमनस्य , क्रूरता , अभिलाषा , और गर्व की प्रतीक हैं। इन पर विजय पाना लक्ष्य होता है। इसके अलावा ये विकास में बाधक 6 अवगुण आलस , डर , संदेह , इर्ष्या , लोभ और प्रतिशोध का भी संकेतक है।
स्वाधिष्ठान चक्र Swadhishthan chakra का रंग नारंगी ( orange ) तथा तत्व जल है। यह सकारात्मक गुणों का प्रतीक है। इस चक्र में प्रसन्नता , निष्ठा , आत्म विश्वास और उर्जा जैसे गुण पैदा होते हैं।
इस चक्र के संतुलित होने पर ईमानदारी और नैतिकता के गुण आते हैं। ख़ुशी और आनंद का पूर्ण अनुभव होता है। रचनात्मक विचार बढ़ जाते हैं।
3. मणिपुर चक्र
यह तीसरा चक्र नाभि केंद्र में स्थित होता है। इसका मन्त्र “ रं ” है। इसका रंग पीला होता है। इसका तत्व अग्नि है अतः इसे सूर्य केंद्र भी कहा जाता है। इसे 10 पंखुड़ी वाले फूल के रूप में दर्शाया जाता है।
मणिपुर चक्र Manipur chakra को जाग्रत करने से ज्ञान , बुद्धि , आत्म विश्वास , नेतृत्व और सही निर्णय लेने की क्षमता जैसे गुण विकसित होते हैं।
इस चक्र में अवरोध होने पर पाचन तंत्र में खराबी , ब्लड प्रेशर का ज्यादा या कम होना , डायबिटीज जैसी परेशानी हो सकती है। इसके अलावा यह चक्र कम सक्रीय हो तो व्यक्ति में असफलता से भय तथा आत्म विश्वास कम होना जैसे लक्षण हो सकते हैं।
4. अनाहत चक्र
यह चक्र ह्रदय के पास सीने में मध्य में स्थित होता है। इसे ह्रदय चक्र भी कहते हैं। इसका मन्त्र “यं “ है। इसका रंग हरा होता है। इसे 12 पंखुड़ी वाले कमल के रूप में दर्शाया जाता है जो शांति , व्यवस्था , प्रेम , संज्ञान , स्पष्टता , शुद्धता, एकता, अनुकंपा, दयालुता, क्षमाभाव और सुनिश्चिय को दर्शाती हैं ।
Anahat chakra अनाहत चक्र को जाग्रत करने से निस्वार्थ प्रेम तथा क्षमा की भावना पैदा होती है। ऐसा व्यक्ति सबका प्रिय बन जाता है।
जिस व्यक्ति में यह चक्र असंतुलित होता है उसमे भावनाओं पर काबू ना रहना , खुद से नफरत करना , इर्ष्या , हताशा , उदासीनता जैसे लक्षण दिखाई देते हैं।
5. विशुद्धि चक्र
यह पांचवां चक्र कंठ में स्थित होता है , इसका मन्त्र “ हं “ है। इसका रंग बैंगनी होता है। इसे 16 पंखुड़ी वाले फूल के रूप में दर्शाया जाता है जो उन सोलह कलाओं का प्रतीक है जो इन्सान का विकास करती हैं। इसे कंठ चक्र भी कहते हैं।इसका तत्त्व आकाश (अंतरिक्ष) है।
विशुद्धि चक्र Vishuddhi chakra प्रसन्नता की अनगिनत भावनाओं और स्वतंत्रता को दर्शाता है जो हमारी योग्यता और कुशलता को प्रफुल्लित करता है। विकास के इस स्तर के साथ, एक स्पष्ट वाणी, गायन और भाषण की प्रतिभा के साथ-साथ एक संतुलित और शांत विचार भी होते हैं।
विशुद्धि चक्र में अवरोध चिन्ता की भावनाएं, स्वतंत्रता का अभाव, बंधन और कंठ की समस्याएं उत्पन्न करता है। कुछ शारीरिक कठिनाइयों, जैसे सूजन और वाणी में रुकावट का भी सामना करना पड़ सकता है।
6. अजना चक्र ( आज्ञा चक्र )
यह मस्तक पर भोहों के बीच स्थित होता है। इसे तीसरा नेत्र भी कहते हैं। इसका मन्त्र ॐ तथा रंग सफ़ेद होता है।
आज्ञा चक्र के प्रतीक चित्र में दो पंखुडिय़ों वाला एक कमल है जो यह बताता है कि चेतना के इस स्तर पर आत्मा और परमात्मा (स्व और ईश्वर) ही हैं। इस स्तर पर केवल शुद्ध मानव और दैवी गुण होते हैं।
आज्ञा चक्र Agya chakra के जाग्रत होने से अध्यात्मिक जागरूकता, आत्मचिंतन तथा स्पष्ट विचार की प्राप्ति होती है। सभी सोई हुए शक्ति जाग उठती हैं और व्यक्ति एक ज्ञानवान सिद्ध व्यक्ति बन जाता है।
आज्ञा चक्र के स्थान पर तीनो प्रमुख नाड़ी इडा , पिंगला और सुषुम्ना की ऊर्जा मिलकर आगे उठती है तो समाधी और सर्वोच्च चेतना प्राप्त होती है।
इस चक्र को योगहृदय वृत्त , हृदय अधर और सुखमन भी कहा जाता है।
इस चक्र में अवरोध होने पर व्यक्ति की परिकल्पना और विवेक की शक्ति कम हो जाती है तथा वह भ्रम की स्थिति में होता है।
7. सहस्रार चक्र
यह सिर के शिखर पर स्थित होता है। इसका मन्त्र भी ॐ ही है। इसे हजार पंखुड़ी वाला कमल और ब्रह्म रंध्र भी कहा जाता है।
सहस्रार चक्र का कोई विशेष रंग या गुण नहीं है। यह विशुद्ध प्रकाश है, जिसमें सभी रंग हैं। सभी नाडिय़ों की ऊर्जा इस केन्द्र में एक हो जाती है।
सहस्रार चक्र Sahasrar chakra में एक महत्त्वपूर्ण शक्ति मेधा शक्ति होती है जो स्मरण शक्ति, एकाग्रता और बुद्धि को प्रभावित करती है।
सहस्रार चक्र के जाग्रत होने का अर्थ है दैवी चमत्कार और सर्वोच्च चेतना का दर्शन । सहस्रार चक्र के जागरण से अज्ञानता पूर्णतया नष्ट हो जाती है।
ध्यान में योगी , समाधि के उच्चतम स्तर द्वारा सहस्रार चक्र पर पहुँचते हैं , जहाँ मन पूरी तरह निश्चल हो जाता है और ज्ञान , ज्ञाता और ज्ञेय एक में ही समाविष्ट होकर पूर्णता को प्राप्त होते हैं।
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