धर्मराज जी का व्रत मकर संक्रांति के दिन से शुरु किया जाता है । धर्मराज जी के व्रत की कथा वर्ष-भर सुनी जाती है । ये यमराज है इन्ही को धर्मराज के नाम से भी जाना जाता है ।
माना जाता है कि जिस घर में स्त्री या पुरुष धर्मराज की कथा को श्रद्धा पूर्वक प्रतिदिन पढ़ते या सुनते हैं वे दु:खों से मुक्त हो जाते हैं। मृत्यु पश्चात उन्हे यमलोक के मार्ग में कोई कष्ट नहीं होता तथा शीघ्र ही उन्हे स्वर्ग तथा मोक्ष प्राप्त होते है।
धर्म राज जी की कथा मे ही धर्मराज जी के व्रत की विधि भी बताई गई है जो इस प्रकार है –
धर्मराज जी की कहानी – Dharamraj ji katha
प्राचीन काल मे बबरुवाहन नामक एक राजा था । वह बड़ा धर्मात्मा और दयालु था । उसके राज्य मे हरीदास नाम का एक ब्राह्मण था । हरीदास बड़ा तपस्वी था । उसकी पत्नी का नाम गुणवती था । वह बहुत ही सुशील और धर्मवती थी । गुणवती पतिव्रता और भगवान की बड़ी भक्त थी ।
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गुणवती ने अपने जीवन मे सभी देवी देवताओं की उपासना की । एकादशी , महाशिवरात्रि तथा जन्माष्टमी आदि सभी व्रत विधि विधान से करती थी । वह यथाशक्ति दान पुण्य भी करती रहती थी । अतिथि सेवा से भी वह कभी विमुख नहीं रही ।
इस प्रकार जीवन भर वह धर्म परायण रही । वृद्धावस्था मे जब उसका देहांत हुआ तो धर्मराज जी के दूत उसे आदर पूर्वक धर्मराजपुर ले गए ।
धर्मराजपुर मे सुंदर सिंहासन पर धर्मराज जी भगवान विराजमान थे । उनके पास ही चित्रगुप्त जी का स्थान था । चित्रगुप्त जी मृत प्राणियों के पाप पुण्य का लेखा धर्मराज जी को सुना रहे थे ।
गुणवती भयभीत हुई वहाँ नीचे मुँह करके खड़ी हो गई । चित्रगुप्त जी ने उसके पाप पुण्य का ब्योरा धर्मराज जी को दिया । जिसे सुनकर धर्मराज जी को प्रसन्नता हुई । किन्तु कुछ उदासी उनके मुख मण्डल पर छा गई ।
यह देखकर गुणवती ने पूछा मैंने अपने जीवन मे कोई दुष्कर्म नहीं किया । फिर भी आपके मुख पर उदासी क्यों है । कृपा करके बताएं ।
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धर्म राज जी ने कहा – हे देवी , तुमने सभी देवी देवताओं को व्रत आदि से संतुष्ट किया है । लेकिन मेरे नाम से तुमने कुछ भी पूजा पाठ या दान पुण्य आदि नहीं किया।
यह सुनकर गुणवती ने धर्मराज जी से क्षमा याचना की और कहा कि मैं आपकी उपासना नहीं जानती थी । कृपा करके वो उपाय बताइए जिससे सभी मनुष्य आपकी कृपा के पात्र बन सकें ।
यदि मैं आपके मुख से आपके भक्ति मार्ग को सुनकर मृत्यु लोक वापस जा सकूँ तो आपको संतुष्ट करने का प्रयास अवश्य ही करूंगी ।
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धर्मराज जी ने बताया – मकर संक्रांति के दिन जब सूर्य भगवान उत्तरायण में प्रवेश करते हैं , उस दिन से मेरी पूजा शुरू करनी चाहिए । पूरे एक साल तक मेरी पूजा करे और मेरी कथा सुने । एक दिन भी पूजा या कथा छूटनी नहीं चाहिए । साथ ही धर्म के इन दस नियमों का पालन करें –
1 – धृति अर्थात धीरज रखना तथा संतुष्ट रहना
2 – क्षमा करना और मन को वश मे रखना
3 – चोरी ना करना
4 – मन से पर पुरुष या पर स्त्री से बचना अर्थात मानसिक और शारीरिक शुद्धि
5 – इंद्रियों को वश मे रखना
6 – बुद्धि की पवित्रता यानि बुरे विचार ना करना
7 – पूजा पाठ तथा दान पुण्य करना
8 – व्रत करना और व्रत की कहानी सुनना
9 – सच बोलना और सच्चा व्यवहार करना
10 – क्रोध ना करना
धर्म के इन दस लक्षण का पालन करे । मेरी कथा नियम से सुनता रहे । दान पुण्य और परोपकार करता रहे । वर्ष भर बाद मकर संक्रांति आए तब इस व्रत का उद्यापन करे ।
अपने सामर्थ्य के अनुसार मेरी मूर्ति बनवाकर विधि विधान से प्राण प्रतिष्ठा करवा करके पूजा और हवन करे । साथ ही चित्रगुप्त जी की पूजा भी करे । काले तिल के लड्डू का भोग लगाए ।
ब्राह्मण भोजन कराए । बांस की टोकरी मे पाँच सेर अनाज दान करे । इसके अलावा गद्दा , तकिया , कंबल , चप्पल , लोटा , तथा वस्त्र आदि देने चाहिए । हो सके तो गाय का दान भी करे ।
धर्मराज जी की बातें सुनकर गुणवती ने विनती की – हे प्रभो ! मुझे फिर से मृत्यु-लोक में जाने दें । जिससे मैं आपके व्रत को करूँ और इस व्रत का प्रचार भी लोगों मे कर सकूँ।
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धर्मराज जी ने इसके लिये अपनी सहमति दे दी।
गुणवती वापस जीवित हो गई । उसके शरीर में जान आ गई। वह उठ कर खड़ी हो गई । उसके सभी परिवार जन बड़े प्रसन्न हुए ।
गुणवती ने धर्मराज जी वाली सभी बातें अपनी पति को बताई। उसने कहा हम धर्मराज जी का व्रत अवश्य करेंगे तथा धर्म का पालन भी करेंगे ।
मकर संक्राति आने पर गुणवती और उसके पति ने धर्मराज जी के निमित्त व्रत शुरु किया। एक वर्ष के बाद विधि विधान से इस व्रत का उद्यापन किया।
इस व्रत के प्रभाव से उन्हे धर्मराज जी की कृपा प्राप्त हुई और उन्हे मोक्ष तथा स्वर्ग की प्राप्ति हुई।
कथा समाप्त ।
बोलो – धर्मराज जी की …. जय ।।
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