हारसिंगार Harsingar या पारिजात Parijat सुगन्धित फूलों वाला एक बहुत ही खास पेड़ है। इसका पौराणिक महत्त्व भी है तथा यह औषधीय रूप से भी अत्यंत महत्वपूर्ण पेड़ है। हारसिंगार की पत्तियां , बीज , छाल , जड़ आदि दवा के लिए काम में आते हैं।
संस्कृत में इसे प्राजक्ता prajakta , रागपुष्पी Ragpushpi तथा खरपत्रक Kharpatrak भी कहा जाता है। हरसिंगार के फूल को इंग्लिश में Night Jasmine , Coral Jasmine तथा Musk flower कहते हैं।
पश्चिम बंगाल का राजकीय पुष्प State flower of West Bengal हार सिंगार या पारिजात का फूल ही है। बंगाली में इसे शैफाली Shaifali , सेओली seoli तथा शिउलीना shiulina भी कहा जाता है। इसे गुलजाफ़री के नाम से भी जाना जाता है।
हारसिंगार का पौराणिक महत्त्व
कहा जाता है कि पारिजात का वृक्ष समुद्र मंथन से निकला था। देवी लक्ष्मी की उत्पति भी समुद्र मंथन से हुई थी अतः यह देवी लक्ष्मी को अत्यंत प्रिय है। जहाँ यह वृक्ष होता है वहाँ साक्षात लक्ष्मी जी विराजमान होते हैं। हारसिंगार का फूल शिव को चढ़ाये जाने वाले उनके प्रिय फूलों में से एक है। श्रीकृष्ण का भी यह प्रिय फूल है।
हारसिंगार के फूल
हारसिंगार के पेड़ पर सफ़ेद रंग के छोटे सुंदर फूल लगते हैं जिनकी डंडी नारंगी रंग की होती है। हरसिंगार के फूल अक्तूबर से दिसंबर तक आते हैं। ये फूल रात के समय खिलते हैं। इन फूलों में अत्यंत मनमोहक सुगंध आती है। फूल सुबह अपने आप पेड़ से गिर जाते हैं। हरसिंगार के पेड़ के नीचे सुबह सफ़ेद फूलों की चादर सी बिछ जाती है।
दवा के अलावा हरसिंगार के सुगन्धित फूल विभिन्न परफ्यूम बनाने में काम लिए जाते हैं। इसके फूलों में मौजूद नारंगी रंग का उपयोग कपड़ों को रंगने के लिए तथा डाई बनाने के लिए किया जाता है।
हारसिंगार का दवा में उपयोग
हारसिंगार के पत्ते , जड़ , फूल तथा बीज का उपयोग विभिन्न बीमारियों में अलग अलग तरीकों से किया जाता है। विशेष रूप से वात दोष और कफ दोष के कारण उत्पन्न हुई व्याधि को दूर करने में इसका उपयोग होता है।
हारसिंगार की पत्तियां होमिओपैथिक दवाएँ बनाने में काम आती हैं।
हारसिंगार में अनेक औषधीय तत्व होते हैं जिनसे एनालजेसिक , एंटी-वायरल , एंटी-इन्फ्लेमेटरी , एंटी-एलर्जिक , एंटी-फंगल , एंटी-बेक्टीरिया तथा अन्य औषधीय लाभ लिए जाते हैं।
हारसिंगार का उपयोग विभिन्न शारीरिक परेशानियों में
पारिजात के पेड़ की पत्तियां , फूल , जड़ , छाल आदि का उपयोग विभिन्न सहिताओं में कई प्रकार के रोगों के उपचार में उपयोगी बताया गया है। इनमे से कुछ इस प्रकार हैं –
पुराने बुखार जीर्ण ज्वर के लिए – हरसिंगार की पत्ती का रस शहद के साथ।
खून की कमी तथा लीवर सम्बन्धी परेशानी में – हरसिंगार पत्तियों का रस लोह भस्म , अदरक के रस , शहद आदि के साथ।
सायटिका के दर्द में – हरसिंगार की पत्तियों का काढ़ा।
पेट में कीड़े – हर सिंगार की पत्ती का रस मिश्री के साथ।
फेफड़ों से सम्बंधित रोग या कफ – हरसिंगार की छाल का चूर्ण।
आँखों के लिए – हरसिंगार की छाल का तेल।
बालों का गिरना – हरसिंगार के बीज को पानी के साथ घिस कर लगाना।
साँप या अन्य जहरीले जंतु का काटना – हरसिंगार की पत्तियों के रस से बनी दवा।
मासिक धर्म की परेशानी – हरसिंगार के फूल
मसूड़ों से खून आना – हरसिंगार की छाल का काढ़ा
हारसिंगार से घरेलु उपचार
घरेलु उपचार के लिए प्रसिद्ध श्री राजीव दीक्षित के अनुसार हारसिंगार के पत्ते में 40 वर्ष पुराने जोड़ो के दर्द को भी ठीक करने की क्षमता होती है। घुटने का दर्द , कमर का दर्द तथा जोड़ो के दर्द आदि में इसके पत्ते औषधि का काम करते हैं।
उनके बताये अनुसार दर्द के लिए हारसिंगार के पत्ते का काढ़ा लेना चाहिए जिसे बनाने की विधि तथा लेने का तरीका इस प्रकार है –
पारिजात के 5-7 पत्ते तोड़कर चटनी बना लें। इसे एक गिलास पानी में डालकर आधा रह जाने तक उबालें। एकदम ठंडा हो जाये तब खाली पेट पियें। इसे 4-5 दिन पीने से दर्द में बहुत आराम मिलता है। पुराना अर्थराइटिस है तो 15 -20 दिन ले सकते हैं। चिकनगुनिया में यह काढ़ा तीन दिन लेने से बहुत लाभ मिलता है।
हारसिंगार की रोचक पौराणिक कथा
कहा जाता है कि जब समुद्र मंथन में पारिजात वृक्ष की उत्पत्ति हुई तब देवराज इंद्र ने उसे लेकर स्वर्ग में लगा दिया था। एक बार श्रीकृष्ण की पत्नी रुक्मणी श्रीकृष्ण के साथ रैवतक पर्वत पर आई थी। वहां से नारद जी गुजर रहे थे। उनके हाथ में हारसिंगार का फूल था। उन्होंने वह फूल रुक्मणि जी को दे दिया। उन्होंने वह फूल अपने सिर में लगा लिया।
जब रुक्मणि और कृष्ण वापस महल पहुंचे तो रुक्मणी के सिर पर लगा हुआ , पारिजात का फूल , श्रीकृष्ण की दूसरी पत्नी सत्यभामा को बहुत पसंद आया। ( श्रीकृष्ण की तीन पत्नियाँ थी – रुक्मणी , जामवंती और सत्यभामा )
सत्यभामा ने श्रीकृष्ण को कहा कि उन्हें पारिजात के फूल का वृक्ष उनके आँगन में लगाने के लिए चाहिए। तब श्रीकृष्ण इस वृक्ष को स्वर्ग से लेकर आये और द्वारका स्थित उनके महल में उसे लगवाया।
द्वारका से यह वृक्ष उत्तर प्रदेश के बाराबंकी जिले में किन्तूर गाँव में पहुंचा। जिसकी कथा इस प्रकार है –
किन्तूर गाँव महाभारत काल में बसाया गया था। अज्ञातवास के दौरान पांडव यहाँ रहे थे। पांडवों की माता कुंती ने इस गाँव का नाम किंतुर रखा था। पांडवों ने यहाँ कुन्तेश्वर महादेव मंदिर का निर्माण करवाया था। एक बार शिवजी को पूजा में अर्पित करने के लिए कुंती ने अर्जुन से पारिजात के फूल लाने को कहा। माता की इच्छा पूरी करने के लिए अर्जुन पारिजात का फूल लेकर आये तथा साथ ही पारिजात का पेड़ भी द्वारका से लाकर किंतूर गाँव में लगाया।
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