कैलादेवी का मेला Kailadevi ka mela चैत्र और शारदीय नवरात्रा के अवसर पर आयोजित किया जाता है। चैत्र मेला मुख्य मेला होता है जो अधिक दिनों तक चलता है।
कैला देवी के मेले में लाखों लोग दूर दूर से आकर माता के दर्शन का लाभ उठाते हैं। कैलादेवी का यह प्रसिद्द मंदिर Kailadevi Temple राजस्थान में त्रिकुट पर्वत पर कालीसिल नदी Kalisil River के किनारे स्थित है। इस मंदिर में माँ कैलादेवी की मुख्य मूर्ती के साथ चामुंडा माता की मूर्ती भी विराजमान है।
इस चैत्र मेले Kailadevi Chaitra Fair का मुख्य आकर्षण प्रथम पांच दिन एवं अंतिम चार दिनों में देखने को मिलता है। रोजाना लाखों की संख्या में दूर दूर से पदयात्री लम्बे-लम्बे ध्वज लेकर लांगुरिया गीत गाते हुए और कैला माई की जय बोलते हुए आते है। मन्दिर के समीप स्थित कालीसिल नदी में स्नान का भी विशेष महत्व होता है।
कैलादेवी की मूर्ति कौनसी है
कुछ लोगों को मालूम नहीं है कि कैलादेवी मंदिर में जो दो प्रतिमाएँ हैं वो किसकी हैं और दोनों में से कैलादेवी की मूर्ति कौनसी है। मंदिर में जिस मूर्ति का चेहरा थोड़ा घूमा हुआ है वो कैलादेवी हैं और दूसरी चामुंडा माता की प्रतिमा है।
लांगुरिया तथा लांगुरिया भजन
Languriya bhajan
आपने प्रसिद्ध लांगुरिया भजन के बारे में जरुर सुना होगा। कुछ लोगों को यह नहीं मालूम कि लंगुरिया कौन हैं तथा लांगुरिया भजन का क्या महत्त्व है।
देवी की मूर्ति के सामने हनुमान जी तथा लाल भैरव जी की मूर्तियाँ स्थापित हैं। ये देवी के रक्षक पुत्र माने जाते हैं। इन्हें ही लांगुरिया Languria कहा जाता है। देवी दर्शन से पहले इन लांगुरिया को प्रसन्न करने तथा उनकी उपासना करने के लिए ही लांगुरिया भजन गाये जाते हैं। माना जाता है कि माता को लांगुरिया भजन अत्यधिक प्रिय है।
कैलादेवी के बारे में मान्यताएं
कैलादेवी के सन्दर्भ में अनेक प्रकार की मान्यताएं प्रचलित है।
कुछ लोगों का मानना है कि भगवान कृष्ण की बहन योगमाया (महामाया) जिसका वध कंस करना चाहता था , वे ही कैलादेवी के रूप में विराजमान हैं।
एक मान्यता यह है कि प्राचीन काल में नरकासुर नामक एक राक्षस के आंतक से मुक्ति दिलाने के लिए दुर्गा माँ का अवतरण कैलादेवी के रूप में हुआ था । इसलिए कैलादेवी को दुर्गा माता के रूप में भी पूजा जाता है।
एक मान्यता के अनुसार यह स्थान सती के अंग गिरने वाले अनेक स्थानों में से एक अर्थात शक्तिपीठ है।
माता जी को क्या चढ़ाया जाता है
हर साल लाखों की संख्या में भक्त कैला मैया के दर्शन के लिए आते हैं। माता को चूड़ी , काजल , बिंदी , मेहंदी , चुनरी , नारियल , मिठाई , रूपये आदि अर्पित करके माँ का आशीर्वाद प्राप्त करते हैं। यहाँ अमर सुहाग के प्रतीक हरे रंग की चूड़ियाँ तथा सिन्दूर विशेष रूप से महिलायें बड़े उत्साह के साथ खरीदती हैं।
यहां देवी के चमत्कार की कई घटनाएं लोककथा के रूप में प्रचलित हैं जिनमें सुखदेव पटेल की देह में रमण , भक्त बहोरा को दर्शन , खींची राजा को प्राणदंड से बचाना , ब्राह्मण पुत्र को जीवनदान आदि प्रमुख हैं।
कैलादेवी पहुँचने का तरीका
Kaila devi mandir kaise jaye
जयपुर से कैलादेवी मंदिर की दूरी लगभग 195 किलोमीटर है। जयपुर आगरा राष्ट्रीय राजमार्ग पर स्थित महुआ से हिंडोन होते हुए करौली और वहां से कैलादेवी मंदिर जाया जा सकता है। इसके अलावा दौसा से लालसोट फिर गंगापुर सिटी होते हुए भी कैला देवी मंदिर पहुंचा जा सकता है।
दिल्ली मुंबई रेलमार्ग पर हिंडौन या गंगापुर सिटी उतर कर वहां से कैलादेवी मंदिर जा सकते हैं। इन दोनों स्टेशन के बाहर से मंदिर जाने के लिए वाहन आसानी से उपलब्ध हो जाते हैं।
कैलादेवी मंदिर में व्यवस्थाएं
कैला देवी मंदिर ट्रस्ट की और से यहाँ आने वाले भक्तो की सुविधा के लिए कई प्रकार की व्यवस्थाएं की हुई हैं ।
यहाँ ट्रस्ट द्वारा संचालित कई धर्मशाला हैं। जहाँ साधारण , डीलक्स तथा एयरकंडीशन , हरेक की जरुरत के हिसाब से कमरे उपलब्ध हैं।
दर्शन के लिए धक्का मुक्की से बचने के लिए यहाँ बहुत अच्छी व्यवस्था की हुई है। सुविधा युक्त दर्शन के लिए चैनल तथा पंडाल आदि बनाये हुए हैं ताकि लोग आराम से दर्शन कर सकें।
भोजन के लिए अन्नपूर्णा केन्टीन की व्यवस्था है जहाँ शुद्ध सात्विक भोजन उचित दर पर उपलब्ध हो जाता है।
यहाँ पर एक बड़ा और साफ सुथरा मुंडन कक्ष भी है जहाँ बच्चों का मुंडन संस्कार किया जाता है।
जय कैला मैया !!!
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