ऑक्सीमीटर Oximeter का महत्व कोरोना की वजह से बहुत बढ़ गया है । यह एक क्लिप जैसी छोटी मेडिकल डिवाइस है जो रक्त मे ऑक्सीज़न की मात्रा तथा पल्स रेट आदि का पता लगाने मे काम आती है ।
फेफड़ों मे संक्रमण अधिक होने पर रक्त मे ऑक्सीज़न की कमी हो जाती है । फेफड़ों मे संक्रमण की स्थिति का पता लगाने मे ऑक्सीमीटर सहायक होता है ।
ऑक्सीमीटर अस्थमा , न्यूमोनिया , फेफड़ों से संबन्धित रोग , हार्ट अटेक आदि अनेक परिस्थिति मे काम आता है । इसे उपयोग मे लाने पर किसी प्रकार का दर्द महसूस नहीं होता है ।
रक्त मे ऑक्सीज़न की कमी का पता चलने पर समय से उपचार लेकर गंभीर स्थिति से बचा जा सकता है । आइये जाने पल्स ओक्सीमीटर क्या है , यह कैसे काम करता है तथा इससे ऑक्सीज़न का लेवल कैसे पता चलता है ।
ऑक्सीमीटर कैसे काम करता है
oximeter kaise kam karta hai
रक्त के लाल रक्त कण मे हीमोग्लोबिन होता है । हीमोग्लोबिन ऑक्सीज़न लेकर प्रत्येक टिशू तक पहुंचाता है । जब ओक्सीमीटर को अंगुली पर लगाते हैं तो उसकी कार्यप्रणाली अंगुली के रक्त मे ऑक्सीज़न की मात्रा तथा पल्स रेट डिस्प्ले पर बताती है ।
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ऑक्सीमीटर की कार्यप्रणाली :
पल्स ओक्सीमीटर मे एक तरफ लाइट उत्सर्जित करने वाले एलईडी लगे होते हैं और दूसरी तरफ लाइट सेंस करने वाले सेंसर लगे होते हैं । इनके बीच मे अंगुली रखी जाती है । जब लाइट अंगुली से होकर गुजरती है तो लाइट की कुछ मात्रा ऑक्सीज़न युक्त रक्त द्वारा अवशोषित कर ली जाती है ।
ओक्सीमीटर मे दो प्रकार की लाइट उत्सर्जित होती है । एक रेड कलर की लाइट और एक इन्फ्रा रेड लाइट । इन्फ्रा रेड लाइट हमे दिखाई नहीं देती ।
रक्त मे ऑक्सीज़न की मात्रा जितनी ज्यादा होती है लाइट का अवशोषण उतना ही अधिक होता है । इन दोनों लाइट की कितनी मात्रा अवशोषित हुई इसकी तथा अन्य जटिल चीजों की सूचना सेंसर के माध्यम से प्रोसेसर तक पहुँचती है ।
प्रोसेसर गणना करके परिणाम डिस्प्ले पर दर्शाता है । ब्लड ऑक्सीज़न लेवल (SpO2) सामान्य स्थिति मे 95% से 100% तक होता है । अर्थात ऐसी रीडिंग आने पर यह नॉर्मल होता है ।
ऑक्सीज़न की कमी से सांस लेने मे दिक्कत , छाती मे दर्द , सिरदर्द या धड़कन बढ़ने जैसे लक्षण महसूस हो सकते हैं । ऐसी स्थिति मे बाहरी स्रोत से ऑक्सीज़न सपोर्ट देना पड़ सकता है ।
सेंसर के माध्यम से ही पल्स रेट का भी पता चलता है । जो सामान्य स्थिति मे 72 होती है ।
ऑक्सीमीटर कैसे लगाया जाता है
oximeter kaise lagate he
ओक्सीमीटर को हाथ या पैर की अंगुली या कान के ईयर लोब पर लगाया जाता है । इसमे थोड़ा दबाव तो महसूस होता है पर दर्द नहीं होता । वैसे तो पाल्स ओक्सीमीटर सही स्थिति बताता है । परंतु रीडिंग मे लगभग 2% कम या ज्यादा का अंतर आ सकता है ।
ऑक्सीमीटर कब गलत रीडिंग बता सकता है
kya dhyan rakhe
कुछ परिस्थितियों में पल्स ऑक्सीमीटर गलत परिणाम दे सकता है। सेंसर तक पहुँचने वाली लाइट कई कारणों से प्रभावित हो सकती है। अतः इन बातों का ध्यान रखना चाहिए। गलत परिणाम के कुछ कारण ये हो सकते हैं –
- महिलाओं की अंगुली पर अक्सर नेल पोलिश लगी होती है । अंगुली पर नेलपॉलिश लगी होने पर ओक्सीमीटर सही स्थिति नहीं बताता अतः नेल पोलिश हटा देनी चाहिए ।
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- रीडिंग लेते समय जितना हो सके स्थिर रहना चाहिए । हिलना नहीं चाहिए ।
- सेंसर पर बाहरी लाइट नहीं गिरनी चाहिए ।
- सेंसर गन्दा नहीं होना चाहिए।
- 4 घंटे पहले तक सिगरेट नहीं पीनी चाहिए।
- भीड़ भाड़ वाले ट्रैफिक की धुआँ में रहने के कारण परिणाम गलत हो सकते हैं।
- अंगुली सही तरीके से लगी होनी चाहिए। इंडेक्स फिंगर की जगह मिडिल फिंगर लगाने से तथा हथेली ऊपर की तरफ रखने से परिणाम सही मिलने की सम्भावना अधिक होती है।
घर पर ऑक्सीमीटर रखना अच्छी बात है। लेकिन इसे सही तरीके से काम में नहीं लेने पर गलत परिणाम आपको बिना किसी कारण के चिंता में डाल सकते हैं। इसके अलावा हर बीमार व्यक्ति की शारीरिक स्थिति भिन्न होती है। अतः सिर्फ ऑक्सीमीटर के परिणाम देखकर आप खुद सही नतीजे पर नहीं पहुँच सकते। ये काम डॉक्टर्स ही कर सकते हैं।
ऑक्सीमीटर कौनसा लें
बाजार में तथा ऑनलाइन कई प्रकार के पल्स ऑक्सीमीटर उपलब्ध हैं। यदि आप ओक्सीमीटर खरीदना चाहते हैं तो आपको कुछ बातों का ध्यान रखना चाहिए । जो इस प्रकार हैं –
एक्यूरेसी : इसका महत्व सबसे ज्यादा है । ओक्सीमीटर को सही एक्यूरेट परिणाम बताना चाहिए । रेप्युटेड और जाने पहचाने ब्रांड अधिक विश्वसनीय होते हैं । डॉक्टर की सलाह भी ले लेनी चाहिए कि कौनसा पल्स ओक्सीमीटर लें ।
प्रोब साइज़ : एक वयस्क व्यक्ति की अंगुली ओक्सीमीटर मे आसानी से आ जानी चाहिए । इसके लिए प्रोब का साइज़ देख लेना चाहिए की अंगुली पर लगाने मे कोई दिक्कत तो नहीं होगी । यदि बच्चे के लिए ले रहे हैं तो छोटी अंगुली भी उसमे फिट हो सके यह देख लेना चाहिए ।
डिस्प्ले : ओक्सीमीटर की रीडिंग देखने के लिए डिस्प्ले सही साइज़ का होना चाहिए । जिसमे रिजल्ट साफ दिखाई दे । डिस्प्ले LCD या OLED वाले होते हैं । इनमे OLED वाले डिस्प्ले मे ज्यादा बेहतर दिखता है । कुछ में जरूरत के अनुसार ब्राइटनेस भी सेट की जा सकती है ।
वार्निंग सिस्टम : कुछ मॉडल मे अनियमित हार्ट रेट , कम SpO2 , या लो बेटरी के लिए आवाज करने वाला साउंड सिस्टम होता है । यदि आपको लगे कि इन सुविधा कि जरूरत है तो वैसा लेना चाहिए ।
अन्य फीचर्स मे जरुरत और पसंद के अनुसार डाटा स्टोरेज , अलार्म , ऑटो शट ऑफ आदि भी देखे जा सकते हैं ।
Ref : https://www.nursingtimes.net/clinical-archive/assessment-skills/the-correct-use-of-pulse-oximetry-in-measuring-oxygen-status-01-03-2002/
अस्वीकरण : इस पोस्ट का उद्देश्य जानकारी देना मात्र है , किसी भी उपचार अथवा निष्कर्ष के लिए विशेषज्ञ से परामर्श अवश्य करें।
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