पापमोचनी एकादशी व्रत कथा Papmochani Ekadashi ki Katha

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पापमोचनी एकादशी चैत्र महीने के कृष्ण पक्ष में आती है। पुराणों की कथा के अनुसार युधिष्ठिर ने श्री कृष्ण से चैत्र मास की कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम , इस दिन व्रत करने का फल और व्रत की विधि के बारे में पूछा था।

तब श्रीकृष्ण ने कहा – एक बार राजा मान्धाता ने लोमश ऋषि से यही प्रश्न पूछा था। महर्षि लोमश ने चैत्र मास कृष्ण पक्ष की एकादशी का नाम पापमोचनी एकादशी बताया था । इस दिन व्रत करने से समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं यह भी कहा था। इसके अलावा यह कथा सुनाई –

पापमोचनी एकादशी की कथा

Papmochani ekadsahi ki kahani

प्राचीन काल में चैत्ररथ नाम का एक सुंदर सुहावना वन था , उस वन में गन्धर्व कन्याएँ सदैव क्रीड़ा किया करती थी। उसी वन में इंद्र भी अन्य देवताओं के साथ मिलकर क्रीड़ा किया करते थे। उस वन में परम शिवभक्त मेधावी नाम के एक मुनि भी तपस्या किया करते थे।

एक बार मंजुघोषा नाम की एक सुंदर अप्सरा मुनि को मोहित करने का प्रयास कर रही थी। उस समय कामदेव भी शिवभक्त मेधावी मुनि पर विजय प्राप्त करने का प्रयत्न कर रहे थे। ( पापमोचनी एकादशी व्रत कथा …. )

कामदेव ने मंजुघोषा अप्सरा की भृकुटी को धनुष बनाया , उसके कटाक्ष की प्रत्यंचा ( डोरी ) बांधी , उसके नेत्रों को संकेत बनाया और कुचों का बाण बनाकर मंजुघोषा को सेना नायक बनाकर मुनि के ऊपर अपना प्रहार किया।

उस समय वह मेधावी मुनि भी हृष्ट पुष्ट तथा युवा आयु वाले थे। वह मुनि भी उस अप्सरा के सौन्दर्य और गाने पर मुग्ध हो गए।

मंजुघोषा ने मुनि को और अपने ऊपर आसक्त जानकर जिस प्रकार वायु के प्रभाव से लता वृक्ष से आलिंगन करती है उसी प्रकार वह अप्सरा उस मेधावी मुनि से आलिंगन करने लगी। वह मेधावी मुनि उस अप्सरा के साथ कितने काल तक रमण में खोये रहे इसका उन्हें ध्यान ही नहीं रहा।

एक दिन मंजूघोषा अप्सरा ने मेधावी मुनि से कहा – हे मुनि ! बहुत काल व्यतीत हो गया है ! अतः मुझे स्वर्ग जाने की आज्ञा दीजिये। ( Papmochni ekadashi vrat ki katha ….)

मंजूघोषा के वचन सुनकर मुनि ने कहा – हे सुंदरी ! तुम अभी और आज इसी संध्या को तो आई हो। अतः अभी कुछ काल तक मेरे पास और ठहरो। प्रातः कल तुम चली जाना। मुनि के आग्रह करने पर वह अप्सरा ठहर गई और कुछ समय और वहाँ रही।

एक दिन फिर अप्सरा ने मुनि से स्वर्ग जाने की आज्ञा मांगी। मेधावी ने कहा – हे देवी ! अभी तो कुछ समय नहीं हुआ है।  अतः अभी कुछ देर के लिए और ठहरो।

इस पर अप्सरा ने उत्तर देते हुए कहा – हे मुनि ! आपकी रात्रि का तो कभी अंत होने वाला दिखाई नहीं देता है। मुझे आपके पास आये बहुत समय हो गया है , मुझे जाना ही होगा।

मंजू घोष के वचन सुनकर मेधावी को ज्ञान प्राप्त हुआ और उन्होंने जब रमण करने के समय का विचार किया तो पाया कि 57 वर्ष , 7 माह , 3 दिन बीत गए थे। ( पापमोचनी एकादशी व्रत कथा …. )

यह जानकर मुनि उस अप्सरा को कालरूप जानने लगे। अपना तप नाश करने वाली उस अप्सरा की और क्रोधावेश में देखने लगे। उनके अधर क्रोध से कांपने लगे और समस्त इन्द्रियां थरथराने लगी।

उन्होंने उस अप्सरा को शाप दे दिया की अरे दुष्ट ! तू पिशाचिनी बन जा।  तू महापापिनी और दूराचारिणी है , तुझे धिक्कार है।

मुनि के शाप से यह अप्सरा पिशाचिनी बन गई। तब उसने प्रार्थना करके मुनि से कहा – हे मुनि  ! कृपया आप क्रोध को त्याग दीजिये क्रोध में आकर दिए इस शाप का निवारण बताइए ।

उसकी बात सुनकर मुनि ने शांत होकर कहा – अरे दुष्ट ! तुमने मेरा बड़ा बुरा किया है परन्तु फिर भी मैं तुझे इस शाप से मुक्ति पाने का उपाय बताता हूँ। ( Papmochni ekadashi vrat ki katha ….)

चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पाप मोचनि एकादशी का व्रत करने से तेरी यह पिशाचिनी की देह छुट जाएगी। मुनि ने उस व्रत की विधि भी बताई। फिर मेधावी मुनि भी अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए अपने परम पूज्य पिता च्यवन ऋषि के चले गए।

च्यवन ऋषि अपने पुत्र मेधावी को देखकर बोले – अरे पुत्र ! यह तुमने क्या किया ? तुम्हारे समस्त तप का अंत कैसे हो गया है। मेधावी ने कहा –  मैंने बहुत बड़ा पाप किया है , कृपा करके आप मेरे इन पापों को नष्ट करने का उपाय बताइए।

च्यवन ऋषि ने कहा – हे पुत्र ! तुम चैत्र मास के कृष्ण पक्ष की पाप मोचनी एकादशी का व्रत करो इसके करने से तुम्हारे समस्त पाप नष्ट हो जायेंगे। अपने पिता की आज्ञा मान मेधावी मुनि ने विधि पूर्वक उस पाप मोचनी एकादशी का व्रत धारण किया। जिसके प्रभाव से उनके समस्त पाप नष्ट हो गए।

उधर मंजूघोषा अप्सरा भी पाप मोचनी एकादशी का व्रत कर समस्त पापों से मुक्त हो गई। उसकी पिशाचिनी देह छूट गई और सुंदर रूप धारण करके वह स्वर्ग लोक को चली गई। ( पापमोचनी एकादशी व्रत कथा …. )

लोमेश ऋषि ने कहा – हे मान्धाता ! इस पाप मोचनी  एकादशी के प्रभाव से मनुष्य के समस्त पाप नष्ट हो जाते हैं।  इसकी कथा श्रवण करने से या पठन करने से एक हजार गौ दान का फल प्राप्त होता है।

कथा समाप्त

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