सत्य नारायण व्रत कथा पहला अध्याय Satya Narayan vrat katha -1

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सत्य नारायण व्रत कथा में पांच अध्याय हैं। पहले अध्याय की कथा यहाँ बताई गई है। भक्तिभाव से पढ़ें और आनंद प्राप्त करें।

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सत्य नारायण व्रत कथा पहला अध्याय

एक समय नैमिषारण्य नामक तीर्थ में शौनक आदि हजारों ऋषियों ने श्री सूत जी से पूछा –

हे प्रभु ! इस कलियुग में मनुष्यों को प्रभु की भक्ति किस प्रकार मिलेगी तथा उनका उद्धार कैसे  होगा ?  हे मुनिश्रेष्ठ ! कोई ऐसा तप या व्रत बताइए जिसके करने से आसानी से पुण्य प्राप्त हो तथा मनवांछित फल मिल जाये , ऐसा वर्णन सुनने की हमारी प्रबल इच्छा है।

सर्वशास्त्रज्ञाता श्री सूत जी बोले –

हे वैष्णवों में पूज्य ! आप सबने प्राणियों के हित की बात पूछी है। अतः मैं ऐसा ही एक श्रेष्ठ व्रत आप लोगों को बताता हूँ।  ऐसा ही व्रत नारद जी ने लक्ष्मीनारायण से पूछा था और श्री लक्ष्मीपति ने खुद मुनि श्रेष्ठ नारदजी को बताया था। अतः ध्यान से सुनिये –

एक समय योगीराज नारद जी दूसरों के हित की इच्छा से अनेक लोकों में घुमते हुए मृत्युलोक में आ पहुंचे। यहाँ अनेक योनियों में जन्मे हुए , प्रायः सभी मनुष्यों को अपने कर्मो द्वारा , अनेक दुखों से पीड़ित देखा।

उन्होंने सोचा कि क्या कोई ऐसा प्रयत्न है , जिससे इन प्राणियों के दुखों का नाश निश्चित रूप से हो जाये।

ऐसा मन में विचार करते हुए नारदजी विष्णुलोक पहुंचे।  ( सत्यनारायण व्रत कथा पहला अध्याय…. )

वहां श्वेत वर्ण और चार भुजाओं वाले देवों के ईश नारायण को देखा , जिनके हाथों में शंख , चक्र , गदा और पद्म थे और वरमाला पहने हुए थे। नारद जी उनकी स्तुति करने लगे –

हे भगवान ! आप अत्यंत शक्तिशाली हैं। मन वाणी भी आपको नहीं पा सकती है। आपका आदि–मध्य–अंत नहीं है। आप निर्गुण स्वरुप हो। सृष्टि के आदि भूति व भक्तों के दुखों को नष्ट करने वाले हो। आपको मेरा नमस्कार है। ( सत्यनारायण व्रत कथा पहला अध्याय…. )

नारदजी से इस प्रकार की स्तुति सुनकर विष्णु भगवान बोले –

हे मुनिश्रेष्ठ ! आपके मन में क्या है ? आपका किस काम के लिए आगमन हुआ है , निसंकोच कहिये ।

तब नारद मुनि बोले –

भगवन ! मृत्यु लोक में सभी मनुष्य जो अनेक योनियों में पैदा हुए हैं , अपने अपने कर्मों के द्वारा अनेक प्रकार के दुखों से दुखी हो रहे हैं।  हे नाथ ! मुझ पर दया रखकर बताइए कि उन मनुष्यों के सब दुःख थोड़े से प्रयत्न से कैसे दूर हो सकते हैं ?

श्री भगवान जी बोले –

हे नारद ! मनुष्यों की भलाई के लिए तुमने बहुत अच्छी बात पूछी है। जिस काम के करने से मनुष्य मोह से छूट जाता है वह मैं तुम्हे बताता हूँ।  सुनो –

बहुत पुण्य देने वाला स्वर्गलोक और मृत्युलोक दोनों में दुर्लभ एक उत्तम व्रत है। आज मैं प्रेमवश होकर तुम्हे बता रहा हूँ।  यह सत्य नारायण व्रत है।

सत्य नारायण का व्रत अच्छी तरह विधि पूर्वक करके मनुष्य जब तक जीवित है तब तक सुखपूर्वक जी सकता है साथ ही मृत्यु के बाद मोक्ष को भी प्राप्त हो सकता है।  ( सत्यनारायण व्रत कथा पहला अध्याय…. )

श्री भगवान के वचन सुनकर नारद मुनि ने कहा –

यह व्रत करने से क्या फल मिलता है ? किस दिन यह व्रत करना चाहिये ? इसे करने का क्या विधान है और किसने यह व्रत किया है ?

ये सब मुझे विस्तार से बताइये। ( Satya narayan vrat katha pahla adhyay…. )

भगवान बोले –

दुःख शोक आदि को दूर करने वाला , धन धान्य को बढ़ाने वाला , सौभाग्य तथा संतान को देने वाला यह व्रत सब स्थानों पर विजयी करवाने वाला व्रत है।

भक्ति और श्रध्दा के साथ किसी भी दिन मनुष्य श्री सत्यनारायण की पूजा धर्म परायण होकर ब्राह्मणों और बंधुओं के साथ मिलकर करे।

भक्ति भाव से नैवेध्य , फल , घी , दूध और गेहूं का आटा सवाया लेवे।  गेहूं ना हो तो उसके स्थान पर साठी का चूर्ण , शक्कर और गुड़ और सब खाने योग्य चीजें जमा करके भगवान को अर्पण करे तथा बंधुओं सहित ब्राहमणों को भोजन कराये उसके बाद स्वयं भोजन करे ( Satya narayan vrat katha pahla adhyay…)

नाच गाकर सत्यनारायण भगवान का स्मरण और भजन करे।

इस तरह व्रत करने से मनुष्यों की इच्छा निश्चय ही पूरी हो सकती है। विशेषकर कलियुग में भूमि पर मोक्ष का यही सबसे सरल उपाय है।

सत्यनारायण कथा का पहला अध्याय यहाँ समाप्त होता है।

बोलो सत्यनारायण भगवान की ….. जय !!!

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