सत्यनारायण भगवान की पूजा और व्रत , भगवान विष्णु के सत्य स्वरुप की पूजा है। विष्णु भगवान ही सत्यनारायण हैं।सत्यनारायण भगवान का व्रत परम पावन दुर्लभ व्रत कहा जाता है।
माना जाता है की इस व्रत को करने से मनुष्य धन-धान्य से परिपूर्ण होकर संसार से समस्त सुखों को प्राप्त करता है। यह व्रत और पूजन वैसे तो किसी भी दिन किया जा सकता है लेकिन पूर्णिमा के दिन यह विशेष रूप से किया जाता है।
सत्यनारायण की पूजा सामग्री और व्रत विधि
Satya narayan pooja vrat vidhi
पूजा के लिए सामान
— चौकी
— केले के पत्ते या तना
— आम या अशोक के पत्ते
— कलश
— रोली
— मोली
— अक्षत
— धूप – दीप
— कपूर
— वस्त्र
— दक्षिणा के लिए सिक्के
— जनेऊ
— पुष्प
— पान
— सुपारी
— नारियल
— फल
— नैवेद्य
— तुलसी दल
— पंचामृत
— आटे की पंजीरी
( इसे पढ़ें : पंचामृत बनाने का तरीका )
पूजा करने का तरीका
सत्यनारायण भगवान की पूजा का संकल्प लेने वाले व्यक्ति को दिन भर व्रत रखना होता है। पूजा से पहले स्नान आदि करके शुद्ध वस्त्र धारण करने चाहिए।
पूजा खुद भी कर सकते हैं या पंडित जी को बुलवाकर उनसे भी पूजा करवाई जा सकती है। यदि पुरोहित जी से पूजा करवा रहें हैं तो वो सम्पूर्ण विधि और सामग्री आपको बता सकते हैं।
आप खुद घर पर पूजा करना चाहते हैं तो उसके लिए पूजा वाले स्थान को साफ करके चौकी स्थापित करनी चाहिए। चौकी पर साफ सुन्दर कपड़ा बिछा दें।
चौकी के पायों के पास केले के पत्ते अथवा तना लगा दें। इस चौकी पर सत्यनारायण भगवान की तस्वीर स्थापित करें। सालिग्राम जी , लड्डू गोपाल अथवा ठाकुर जी की पूजा घर में है तो उन्हें भी चौकी पर विराजमान करें। फूल माला आदि से सजा दें।
दाईं तरफ गणेश जी की तस्वीर और कलश रखें। बाईं तरफ दीपक रखें। सबसे पहले गणेश जी की पूजा करें। नव गृह की पूजा करना चाहें तो चावल को हल्दी में रंग कर नव गृह की नौ ढेरियां बना लें और इनकी भी पूजा कर लें।
इसके बाद सत्यनारायण भगवान की पूजा करें। तुलसी का पत्ता डालकर पंचामृत , फल , मिठाई आदि का भोग लगायें। सत्यनारायण भगवान की कथा सुने। सत्य नारायण कथा के पांच अध्याय हैं क्लिक करके पढ़ें –
सत्य नारायण व्रत कथा का पहला अध्याय
सत्य नारायण व्रत कथा का दूसरा अध्याय
सत्य नारायण व्रत कथा तीसरा अध्याय
सत्यनारायण कथा का पांचवां अध्याय
इसके पश्चात सभी लोग बारी बारी से आरती करें। आरती के बाद प्रसाद वितरित करें।
इसके बाद ब्राह्मण जन को दक्षिणा , वस्त्र आदि देकर भोजन कराएँ। इसके बाद स्वयं और परिवार के लोग भोजन करें।
इस प्रकार पूजा और व्रत संपन्न होते हैं।
बोलो सत्यनारायण भगवान की जय .!!!
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