शिवलिंग पर जल क्यों , कैसे , कौनसा मंत्र व बर्तन – shivling par jal ka tarika

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शिवलिंग पर जल चढ़ाने बहुत से लोग जाते हैं । लेकिन कुछ लोगों को पता नहीं होता कि शिवलिंग पर जल क्यों चढ़ाया जाता है , शिवलिंग पर जल कौनसे बर्तन से चढ़ाना चाहिए , जल चढ़ाते समय मुँह किस तरफ होना चाहिए , शिवलिंग पर जल चढ़ाने का सही तरीका क्या है और जल चढ़ाते समय कौनस मंत्र बोलना चाहिए । शिवजी को जल चढ़ाने के बारे मे सभी प्रकार की जानकारी यहाँ प्राप्त करें ।

शिवलिंग पर जल क्यों चढ़ाया जाता है

समुद्र मंथन के बारे मे सब जानते हैं । जब देवता और राक्षस समुद्र मंथन कर रहे थे तो समुद्र से भयानक विष निकलने लगा था । उस विष को भगवान शिव ने धारण किया था । लेकिन उस विष के प्रभाव से शिवजी का शरीर बहुत गर्म हो गया और उनके शरीर से ज्वालाएं निकलने लगी ।

उनकी गर्मी शांत करने के लिए सभी लोग उन पर जल चढ़ाने लगे । जब तक विष निकलता रहा तब तक शिव जी उस विष को ग्रहण करते रहे । और गर्मी शांत करने के लिए सभी लोग उन पर जल गिराते रहे ।

इससे शिवजी की गर्मी शांत हुई और वे बड़े प्रसन्न हुए । तब उन्होंने प्रण लिया कि जब भी कोई उन पर जल चढ़ाएगा वो उसके जीवन से हर प्रकार का संकट यानि विष ग्रहण कर लेंगे ।

इसीलिए संकट निवारण , शिवजी की प्रसन्नता तथा आशीर्वाद के लिए शिवलिंग पर जल चढ़ाया जाता है ।

शिवलिंग पर जल कैसे चढ़ायें

कभी भी शिवजी को जल तेजी से नहीं चढ़ाना चाहिए ।
शास्त्रों में भी बताया गया है कि शिवजी को जलधारा अत्यंत प्रिय है । इसलिए जल चढ़ाते समय ध्यान रखें कि जल के पात्र से धार बनाते हुए धीरे से जल अर्पित करें । पतली जल धार शिवलिंग पर चढाने से भगवान शिव की विशेष कृपा दृष्टि प्राप्त होती है ।

शिवलिंग पर जल चढ़ाने का तरीका

यह बहुत महत्वपूर्ण है की शिव जी को जल अर्पण करते समय हमारा मुँह किस तरफ होना चाहिए । शिवजी को जल चढ़ाते समय हमारा मुँह उत्तर की तरफ होना चाहिए । जलहरी की दिशा ( मुँह ) हमेशा उत्तर की तरफ होती है । अतः हमे जलधारी के मुँह के दूसरी तरफ रहना चाहिए ।

सबसे पहले जलहरी के दाईं तरफ जल चढ़ायें वहाँ गणेश जी का स्थान होता है ।

फिर बाईं तरफ कार्तिकेय जी का स्थान होता है , वहाँ जल चढ़ाएं ।

इसके बाद दोनों के बीच शिव जी की पुत्री अशोक सुंदरी का स्थान होता है वहाँ जल चढ़ाएं ।

जलधारी का गोलाकार हिस्सा माता पार्वती का हस्तकमल होता है । उसे साफ करके वहाँ जल चढ़ाएं ।

इसके बाद शिवलिंग पर जल चढ़ाएं ।

पात्र मे भरा पूरा जल चढ़ा देना चाहिए । फिर भी बच जाए तो शिव जी के ऊपर यदि कलश हो तो जल उसमे डाल देना चाहिए ।

शिवजी को जल बैठ कर चढ़ायें या खड़े रहकर

शिवलिंग पर जल खड़े होकर चढ़ाना चाहिए या बैठकर यह इस पर निर्भर होता है कि शिवलिंग किस प्रकार का है । क्या आप जानते है की शिवलिंग कितने प्रकार के होते हैं ।  मंदिर मे शिवलिंग दो प्रकार के हो सकते हैं ।

शक्ति शिवलिंग और विष्णु शिवलिंग ( हरी सर्वेश्वर शिवलिंग )

जिस शिवलिंग की जलहरी धरती से छूती हुई होती है वो शक्ति शिवलिंग होता है । इसकी जलहरी माता पार्वती का हस्त कमल होती है । ऐसे शिवलिंग पर बैठकर जल चढ़ाना चाहिए ।

जो शिवलिंग डमरू के आकार का होता है । जिसकी जलहरी धरती से थोड़ी ऊपर होती है । वो शिवलिंग विष्णु शिवलिंग कहलाता है । इसकी जलहरी ब्रह्मा जी का हस्तकमल होती है जलहरी के नीचे बना आकार विष्णु जी का हस्तकमल होता है ।  ऐसे शिवलिंग पर खड़े होकर जल चढ़ाना चाहिए ।

खड़े रहकर जल चढ़ाते समय दोनों पैर बराबर नहीं रखना चाहिए । दायाँ पैर आगे और बायाँ पैर थोड़ा पीछे रखना चाहिए ।

शिवजी को जल चढ़ाने का बर्तन कैसा लें

यह शंका की लोगों के मन मे होती है की शिवलिंग पर जल चढ़ाने का लोटा कॉनसी धातु का होना चाहिए । जिस पात्र से शिव जी को जल चढ़ायें वह पत्र तांबे का या चांदी का होना चाहिए । तांबे का लोटा है तो इससे दूध नहीं चढ़ाना चाहिए । जल चढ़ाने के लिए स्टील के बर्तन का उपयोग नहीं करना चाहिए । क्योंकि स्टील लोहे से बना होता है ।

जल चढ़ाते समय कौनसे मंत्र का पाठ करें

शिव जी को जल अर्पित करते समय इस मंत्र का उच्चारण करना चाहिए ।

ॐ नमः शम्भवाय च मयोभवाय च ,

नमः शन्कराय च मयस्कराय च ,

नमः शिवाय च शिवतराय च ।।

यदि इस मंत्र का उच्चारण ना कर पायें तो “ ॐ नमः शिवाय ”  का जप भी कर सकते हैं ।

अन्य किसी भी जानकारी के लिए आप पूछ सकते हैं । आशा है आप लाभान्वित जरूर होंगे ।

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