श्रीयंत्र Shri Yantra का उल्लेख पौराणिक ग्रंथों में मिलता है। यह त्रिपुर सुंदरी महालक्ष्मी का सिद्ध यंत्र है। इसे अत्यधिक शक्तिशाली और महत्वपूर्ण यंत्र माना जाता है। श्री यंत्र को श्री चक्र , नवचक्र और महामेरु के नाम से भी जाना जाता है।
श्री यंत्र की स्थापना और पूजा करने से लक्ष्मी जी प्रसन्न होती है तथा सुख समृधि की प्राप्ति होती है। श्री शब्द का अर्थ लक्ष्मी , सरस्वती , शोभा , सम्पदा तथा विभूति भी होता है। श्रीयंत्र धन धान्य के अलावा अन्य सभी सुख देने में भी सक्षम है।
श्री यंत्र कहाँ और कैसे रखें
shri yantra ko kaha kaise rakhe
श्रीयंत्र को शुभ मुहूर्त में पूरे विधिविधान के साथ घर के पूजाघर अथवा दुकान या ऑफिस में बने पूजास्थल में स्थापित करना चाहिए। लाल वस्त्र पर रखकर रोज इसकी पूजा शुद्ध मनोभाव और कर्म के साथ करनी चाहिए।
श्री यंत्र कैसा होना चाहिए
shri yantra kaisa ho
यंत्र को किसी भी धातु – सोना, चांदी या तांबे में बनाया जा सकता है परन्तु यह अध्यात्मिक गुरु द्वारा अभिमंत्रित किया जाना चाहिए। द्वि आयामी या तीन आयामी दोनों रूप में बने हुए श्री यंत्र की पूजा कर सकते हैं। स्फटिक से बने श्री यंत्र भी उपयोग में लाये जा सकते हैं।
श्री यंत्र को सिद्ध कैसे करे
shri yantra ki siddhi
शुक्ल पक्ष में किसी भी शुक्रवार के दिन श्रीयन्त्र को गंगा जल से स्नान कराके स्थापित करना चाहिए। इसके पश्चात देवी लक्ष्मी का ध्यान लगाते हुए ‘ ओम श्रीँ ‘ मंत्र का जाप करते हुए 21 माला 5 दिन तक रोजाना करनी चाहिए। माना जाता है कि इससे श्री यन्त्र सिद्ध हो जाता है। श्री यंत्र की स्थापना सिद्ध साधक अथवा गुरु के द्वारा होने पर यह अधिक लाभप्रद सिद्ध होता है।
श्री यंत्र की आकृति
shri yantra aakrati
श्री यंत्र में एक केंद्र बिंदु के चारों और 9 त्रिभुज बने होते हैं । ये 9 त्रिभुज अलग अलग आकार के होते हैं तथा एक के ऊपर एक इस तरह से बने होते हैं कि उनसे 43 छोटे त्रिभुज बनते हैं।
त्रिभुजों के चारों और कमल के फूल की पत्तियों वाली आकृति से दो घेरे बने होते हैं। अंदर वाले घेरे में 8 पत्तियाँ ( अष्ट कमलदल ) होती है और बाहरी घेरे में 16 पत्तियाँ (षोडश कमल दल ) होती हैं। पत्तियों के आगे हिस्से में तीन गोले बने होते हैं।
सबसे बाहरी हिस्से में तीन घेरे वर्गाकार आकृति के होते हैं। जिन पर चारों दिशा में अंग्रेजी के T जैसी आकृति होती है।
श्री यंत्र पूजन का श्रेष्ठ समय
shri yantra ki puja
श्री यंत्र के निर्माण , स्थापना या पूजन के लिए दीवाली की रात्रि का समय सर्वश्रेष्ठ होता है। इसके अलावा शिवरात्रि , शरद पूर्णिमा , अक्षय तृतीया , रवि पुष्य योग , गुरु पुष्य योग आदि भी श्रेष्ठ समय माने जाते हैं।
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श्री यंत्र की पूजा के लाभ
shriyantra poojan labh
श्री यंत्र का विधिवत पूजन करने से सभी प्रकार की सुख समृद्धि की प्राप्ति होती है। इसके कुछ फायदे इस प्रकार माने जाते हैं –
— श्रीयंत्र की पूजा करने से भगवती माँ लक्ष्मी की कृपा हमेशा बनी रहती है।
— दुकान , ऑफिस या किसी भी कार्यस्थल पर श्रीयंत्र का पूजन करने से विकास प्राप्त होता रहता है।
— घर पर पूजा घर में रखकर इसका पूजन करने से दाम्पत्य संबंधों में सुख शांति बानी रहती है।
— ध्यान साधना करने के लिए shree yantra अत्यंत प्रभावी सिद्ध होता है तथा मानसिक क्षमता में वृद्धि करता है।
— शरीर के सातों चक्रों में सर्वोच्च माने जाने वाले सहस्रार चक्र को जागृत करने में श्रीयंत्र अत्यंत सहायक सिद्ध होता है।
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— घर में श्रीयंत्र की पूजा करने से सभी प्रकार के वास्तु दोष का निवारण होता है।
— सभी प्रकार की नकारात्मक ऊर्जा को नष्ट करके यह सकारात्मक ऊर्जा में वृद्धि करता है ।
श्रीयंत्र की कथा
shri yantra katha
श्री यंत्र के बारे में पौराणिक कथा कही जाती है , जो इस प्रकार है –
एक बार लक्ष्मी जी किसी कारण से अप्रसन्न होकर बैकुंठ धाम चली गईं। इससे लक्ष्मी के अभाव में समस्त मानव दीनहीन और दुखी हो गए । तब वशिष्ठ मुनि लक्ष्मीजी को वापस लाने के लिए बैकुंठ धाम जाकर उनसे मिले। लेकिन वो पृथ्वी पर आने को तैयार नहीं हुई । तब वशिष्ठ जी विष्णु जी की आराधना करने लगे। Shri Yantra Katha ….
विष्णु जी प्रसन्न होकर प्रकट हुए तब विशिष्ठ जी ने उनसे कहा कि श्री लक्ष्मी के अभाव में सब पृथ्वीवासी पीड़ित और दुखी हो गए हैं। आशा निराशा में बदल गई तथा जीवन के प्रति मोह समाप्त हो गया है। आप कुछ कीजिये ।
विष्णुजी लक्ष्मीजी को मनाने वशिष्ठ जी के साथ गए परन्तु सफल नहीं हुए । लक्ष्मी जी किसी भी स्थिति में पृथ्वी पर जाने को तैयार नहीं हुई । हारकर वशिष्ठ जी पृथ्वी लोक वापस आ गए और सबको ये बातें बताई । लक्ष्मी नहीं आएँगी यह जानकर सभी अत्यंत दुखी हो गए । Shree Yantra Katha …
कुछ सोचकर देवगुरु बृहस्पति जी ने यह विचार व्यक्त किया कि हमें श्रीयंत्र की प्राण-प्रतिष्ठा करके पूजा करनी चाहिए। ऐसा करने से लक्ष्मी जी अवश्य आएँगी ।
गुरु बृहस्पति जी के निर्देशन में श्रीयंत्र का निर्माण किया और उसकी सिद्धि एवं प्राण-प्रतिष्ठा कर धनतेरस के दिन भक्ति भाव के साथ षोडशोपचार पूजन किया । पूजा समाप्त होते-होते तो लक्ष्मी जी वहां उपस्थित हो गईं ।
लक्ष्मी ने कहा श्रीयंत्र मेरा आधार है, इसमें मेरी आत्मा वास करती है। अतः आपके इस प्रयास के कारण मुझे आना ही पड़ा । इसीलिए श्रीयंत्र को सभी यंत्रों में सर्वश्रेष्ठ माना गया है।
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