सोमवती अमावस्या व्रत , पूजन तथा उद्यापन विधि – Somvati Amavsya 2022 Vrat

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सोमवती अमावस्या Somvati Amavsya सोमवार को आने वाली अमावस्या को कहते हैं । इस दिन व्रत और पूजन करना वैवाहिक जीवन पर बड़ा गहरा प्रभाव डाल सकता है । इस वर्ष यह सुनहरा अवसर दो बार मिलेगा । इसका लाभ अवश्य उठाना चाहिए ।

सोमवती अमावस्या 2022

Somvati Amavsya 2022

इस वर्ष यानि 2022 मे 2 बार सोमवती अमावस्या आएंगी ।

पहली सोमवती अमावस्या – 31 जनवरी , 2022

दूसरी सोमवती अमावस्या – 30 मई , 2022

पंचांग गणना के अनुसार 29 मई 2022 , रविवार दोपहर 2 बजकर 54 मिनट से अमावस्या प्रारंभ होकर 30 मई  4 : 59 तक रहेगी । सोमवती अमावस्या का पूजन और व्रत दोनों दिन किए जा सकते हैं ।

वट सावित्री व्रत भी 30 मई , सोमवार को रखा जाएगा । वट सावित्री व्रत ज्येष्ठ मास की पूर्णिमा के दिन भी किया जाता है ।

(इसे भी पढ़ें : वट सावित्री व्रत के पूजन की विधि तथा व्रत की कथा )

सोमवती अमावस्या का व्रत

Somvati Amavsya Ka Vrat

वैवाहिक जीवन मे प्रेम और सद्भाव बढ़ाने के लिए सुहागिन महिलाओं को यह व्रत करना चाहिए । इससे गृह क्लेशों से मुक्ति मिलती है । सुख समृद्धि प्राप्त होती है ।

पति पत्नी मे फालतू का मन मुटाव , झगड़े आदि अधिक होते हों तो दोनों को यह व्रत करना चाहिए । एक साथ परिक्रमा लगाने और व्रत करने से आपस मे प्रेम भाव बढ़ता है । सुख शांति मे वृद्धि होती है । घर मे कलह मिटती है ।

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सोमवती अमावस्या का धार्मिक दृष्टि से बड़ा महत्व होता है । इस दिन महिलायें जीवन साथी की लंबी आयु के लिए व्रत रखती हैं । इस दिन मौन व्रत रखने से सहस्र गोदान का फल मिलता है ।

सोमवती अमावस्या के दिन व्रत , पूजन करने और पितरों को जल तिल देने से बहुत पुण्य मिलता है । यह तिथि पितरों की तिथि मानी जाती है । इसमें चन्द्रमा की शक्ति जल में प्रविष्ट हो जाती है । इस तिथि को राहु और केतु की उपासना विशेष फलदायी होती है ।

इस दिन दान और उपवास का विशेष महत्व होता है और विशेष प्रयोगों से विशेष लाभ प्राप्त होते हैं ।

यदि किसी घर मे लड़के की शादी नहीं हो पा रही है तो सोमवती अमावस्या का व्रत करने से मुश्किलें आसान हो जाती हैं ।

सोमवती अमावस्या का पूजन

Somvati Amavsya ka poojan

सोमवती अमावस्या के दिन पीपल के पेड़ की पूजा की जाती है । माना जाता है कि पीपेल के पेड़ मे मूल भाग मे भगवान विष्णु , अग्र भाग मे ब्रह्मा जी और तने मे भगवान शिव का वास होता है । यदि पीपल के वृक्ष की पूजा ना कर सकें तो तुलसी के पौधे की पूजा भी की जा सकती है । इस दिन शिव पार्वती की पूजा करना अत्यंत लाभदायक सिद्ध होता है ।

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सोमवती अमावस्या पूजा विधि

Somvati Amavsya ki puja vidhi

इस दिन सुबह सूर्योदय से पहले स्नान कर लेना चाहिए । स्नान पानी मे गंगाजल डालकर करना चाहिए ।

पूजा वाली जगह को जल गोबर आदि से पवित्र कर लें । कलश स्थापित करने के लिए अष्ट दल कमल बनायें । इस पर कलश रखें कलश मे पानी भरें । उसमे चावल , पुष्प , हल्दी , दक्षिणा , सुपारी डालकर ढक्कन लगाकर उस पर चावल रख दें । उस पर दीपक रख दें । दीपक मे मौली की बत्ती लगाएं ( रूई की नहीं , क्योंकि रूई छूना वर्जित होता है )

सुपारी पर मौली लपेट कर उसे गणेश जी के रूप मे स्थापित कर दें । गौरी माता की स्थापना के लिए छोटी मूर्ति लें अथवा गोबर से बनाकर स्थापित कर लें ।

पूजन आसन पर बैठ कर करें ।

सबसे पहले खुद पर तीन बार जल छिड़क कर खुद को पवित्र करें ।

इसके बाद दीपक जला लें । फिर व्रत का संकल्प करें । गणेश जी और माँ गौरी का आवाहन करें ।

( इसे भी पढ़ें : गणेश जी की यह कहानी हर व्रत मे कही सुनी जाती है )

गणेश जी , माँ गौरी और कलश का पूजन करने के लिए जल छिड़कें , रोली , मौली , पुष्प , नेवेद्य आदि अर्पित करें । दक्षिणा अर्पित करें । माँ गौरी को शृंगार सामग्री ( बिंदी , चूड़ी , माला , काजल , मेहंदी आदि ) अर्पित करें ।

इसी प्रकार तुलसी का पूजन करें । इसके बाद 108 परिक्रमा लगायें ।

पीपल की पूजा की है तो पेड़ पर सूत लपेट दें । अपने सामर्थ्य के अनुसार फल , मिठाई , सुहाग सामग्री आदि की भँवरी ( परिक्रमा ) दी जा सकती है । भँवरी पर चढ़ाया सामान बाद मे सुपात्र ब्राह्मण , ननद या भांजे को दिया जा सकता है । 108 परिक्रमा लगायें । परिक्रमा करते समय “ ॐ श्री वासूदेवाय नमः “ का जाप करें ।

इसके बाद सोमवती अमावस्या की कहानी सुने या कहें।

( क्लिक करें और देखें : सोमवती अमावस्या व्रत की कहानी )

पूजन के बाद गणेश जी , माँ गौरी आदि को धन्यवाद करते हुए विदा होने की प्रार्थना करें ।

सोमवती अमावस्या व्रत का उद्यापन

Somvati amavsya vrat ka udyapan kaise kare

सोमवती अमावस्या का उद्यापन 12 वर्ष तक सोमवती अमावस्या का व्रत करने के बाद किया जाता हैं । उद्यापन 6 वर्ष के बाद या शुरू मे भी किया जा सकता है ।

उद्यापन मे विधिवत पूजन किया जाता है । पंचरत्न की वेदी बनाई जाती है । पंचरत्न पाँच तत्वों के प्रतीक होते हैं । वेदी पर सोने से बना पीपल वृक्ष स्थापित किया जाता है । भगवान विष्णु गरुड़ सहित तथा माँ लक्ष्मी की स्थापना कर उनकी पूजा की जाती है । भोग लगाया जाता है ।

रात को विष्णु भगवान के भजन गाकर जागरण किया जाता है । दूसरे दिन सुबह हवन आदि किया जाता है । ब्राह्मण भोजन करवाया जाता है । दक्षिणा , वस्त्र आदि देकर उन्हे विदा किया जाता हैं ।

पूजन के समय दान वस्तु के साथ 108 परिक्रमा लगाई जाती है । फिर वो 108 वस्तु दान की जाती है ।

इसके अलावा धोबन को दान की वस्तुएं दी जाती हैं । जिसमे बाल्टी , मग ,  रस्सी , साबुन , ब्रश , धोवना , धोबन के लिए वस्त्र , चप्पल , शृंगार का सामान आदि शामिल किए जाते हैं । धोबन और धोबी के भोजन की व्यवस्था की जाती है । उन्हे दक्षिणा दी जाती है ।

उद्यापन करना जरूरी होता है । इसी से व्रतराज का सम्पूर्ण लाभ प्राप्त होता है ।

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