स्वस्तिक कब क्यों कहाँ बनाते हैं व इसका लाभ महत्त्व क्या है – Swastika

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स्वस्तिक Swastika एक महत्वपूर्ण मांगलिक प्रतीक चिन्ह है। किसी भी शुभ कार्य में सबसे पहले स्वस्तिक बनाया जाता है। क्या आप जानते है स्वस्तिक क्या है , क्यों बनाते हैं और इससे क्या लाभ मिलता है ? आइये जानें ये महत्वपूर्ण बातें –

स्वस्तिक क्या है

What is Swastik

स्वस्तिक एक सांकेतिक चिन्ह है जिसमें लम्बी और आड़ी रेखा समकोण पर मिला कर एक विशेष तरीके से और आगे बढ़ाई जाती हैं। इसके चारों कोनो में बिंदु लगाए जाते हैं। इस चिन्ह को परमात्मा स्वरुप तथा अत्यंत शुभ और मंगलकारी माना जाता है। विश्व भर में इससे मिलते जुलते चिन्ह हजारों वर्ष पहले से उपयोग में लाये जाते रहे हैं।

स्वस्तिक क्यों बनाया जाता है

swastika kyo banate he

स्वस्तिक दो शब्दों से बना है – सु + अस्ति . इसका अर्थ है – शुभ हो अर्थात मंगलमय , कल्याणमय और सुशोभित अस्तित्व हो। यह शाश्वत जीवन और अक्षय मंगल को प्रगट करता है।

स्वस्तिक सभी के लिए शुभ , मंगल तथा कल्याण भावना को दर्शाता है। इसे सुख समृद्धि तथा परमात्मा का प्रतीक माना जाता है। अतः शुभ कार्य में सबसे पहले स्वस्तिक बनाया जाता है।

इसके अलावा यह चारों दिशाओं के अभिपति – पूर्व के इंद्र , पश्चिम के वरुण , उत्तर के कुबेर तथा दक्षिण दिशा के यमराज के अभय एवं आशीर्वाद की प्राप्ति के लिए बनाया जाता है।

ज्योतिष शास्त्र में स्वस्तिक को प्रतिष्ठा , सफलता और उन्नति का प्रतीक माना गया है। इसका प्रयोग धनवृद्धि , गृहशान्ति, वास्तुदोष निवारण, भौतिक कामनाओं की पूर्ति, तनाव, अनिद्रा , क्लेश , निर्धनता से मुक्ति आदि के लिए भी किया जाता है ।

आर्य समाज के अनुसार स्वस्तिक का चिन्ह ब्राह्मी लिपि में लिखा गया ॐ है। जैन धर्म में इसी सातवे तीर्थंकर सुपार्श्वनाथ तथा अष्टमंगल के प्रतीक के रूप में माना जाता है। भगवान बुध के शरीर पर स्वस्तिक चिन्ह होता है।

स्वस्तिक नकारात्मक ऊर्जा को दूर करता है तथा पोजिटिव एनेर्जी में वृद्धि करता है जिसे वैज्ञानिक तौर पर भी स्वीकार किया गया है।

स्वस्तिक कब और कहाँ बनाया जाता है

Swastik kab kaha banate he

स्वस्तिक को बहुत मंगलकारी माना जाता है अतः सभी मांगलिक कार्यों में सबसे पहले इसे स्थापित किया जाता है। इन जगहों पर स्वस्तिक अवश्य बनाया जाता है –

—  किसी भी प्रकार की पूजा में पाटे या चौकी आदि पर।

—  पूजा में रखे गए जल कलश पर।

—  नए घड़े में जल भरने से पहले उस पर।

—  गृह प्रवेश के समय या नववधू के आगमन के समय मुख्य द्वार के दोनों तरफ।

—  विभिन्न पर्व और त्यौहार के समय भित्ति चित्रों में।

—  दीपावली के त्यौहार के समय रंगोली तथा बाँधनवार में।

—  व्यापार के बही खाता पूजन में।

—  तिजोरी , गल्ला या अलमारी में।

—  ऑफिस , दुकान , फैक्ट्री आदि के मुख्य द्वार पर।

—  नवजात शिशु के छठे दिन के उत्सव तथा मुंडन संस्कार के बाद।

—  विवाह के समय पूजा वेदी पर वर वधु के मंगल संग की भावना के लिए।

स्वस्तिक कैसे बनाया जाता है

Swastik ka chinh kaise banate he

शुभ कार्य का कौनसा अवसर है उसके अनुसार स्वस्तिक विशेष रंग या चीज से बनाया जाता है। जैसे  पूजा पाठ , व्रत कथा , संस्कार आदि के अवसर पर जमीन या पाटे पर सफ़ेद रंग से स्वस्तिक बनाया जाता है। इसके लिए गेहूं का आटा या चावल काम में लिए जाते हैं। इस प्रकार से बना स्वस्तिक सुख , आनंद , पोषण तथा मंगल कामना अभिव्यक्त करता है।

दीवार या जमीन पर लाल रंग अथवा गेरू से स्वस्तिक बनाया जाता है जो शक्ति और प्रेम का प्रतीक है। यह अनुराग और शक्ति संपन्न कल्याण सूचित करता है।

बच्चे का मुंडन संस्कार होने कर बाद पीले रंग यानि हल्दी से सिर पर स्वस्तिक बनाया जाता है। पीला रंग विद्या का प्रतीक है जो ज्ञान और विवेक की साधना को मंगलमय बनाता है।

स्वस्तिक का अर्थ :

Meaning of swastika

स्वस्तिक का चिन्ह मंगल कामना का प्रतीक होने के अलावा भी कई प्रकार के अर्थ और सन्देश देता है। स्वस्तिक की रेखाओं का समकोण पर मिलना जीवन में संतुलन बनाये रखने का सन्देश है। संतुलन के बिना मानसिक और शरीरिक विकार उत्पन्न हो जाते हैं जो समाज के लिए सही नहीं हैं।

स्वस्तिक की चार रेखाएं इन्हें भी इंगित करती हैं  –

  • ब्रह्मा के चार मुख
  • चार वेद – ऋग्वेद , यजुर्वेद , सामवेद , अथर्ववेद
  • चार आश्रम – ब्रहचर्य , गृहस्थ , वानप्रस्थान तथा सन्यास आश्रम
  • चार युग – सतयुग , त्रेतायुग , द्वापरयुग और कलियुग
  • चार वर्ण – ब्राह्मण , क्षत्रिय , वैश्य , शुद्र
  • चार पुरषार्थ – धर्म , अर्थ , काम , मोक्ष

स्वस्तिक का भगवत स्वरुप

Divine form of swastik

स्वस्तिक को भगवान् विष्णु का स्वरुप माना जाता है जिमसे चार भुजाएं विष्णु की चार भुजाएं  मानी जाती है। मध्य का केंद्र बिंदु विष्णु का नाभि स्थल है जहाँ से कमल उत्पन्न होता है , जिस पर सृष्टिकर्ता ब्रह्मा जी सुशोभित होते हैं। विष्णु पुराण में स्वस्तिक को सुदर्शन चक्र का प्रतीक माना जाता है।

स्वस्तिक को भगवान शिव का स्वरुप भी माना जाता है जिसमें खड़ी रेखा को ज्योतिर्लिंग के रूप में देखा जाता है जिसका न कोई आदि ही न अंत तथा आड़ी रेखा सृष्टि का विस्तार दर्शाता है। इसे लिंग रूप में निरंतर सृजन और विकास की मूल प्रेरणा समझा जाता है।

स्वस्तिक को धन सम्पदा की देवी लक्ष्मी जी का प्रतीक चिन्ह भी कहा गया है , इसलिए जहाँ भी भगवती लक्ष्मी की पूजा आराधना होती है , वहां स्वस्तिक अवश्य अंकित किया जाता है। यदि देवी की मूर्ति या चित्र न हो तो लाल रंग से स्वस्तिक बना कर उसकी पूजा देवी के रूप में की जाती है।

स्वस्तिक को गणेश जी का स्वरुप भी मानते हैं। माना जाता है कि स्वस्तिक में गणेश जैसी ही विध्न नष्ट करने और अमंगल दूर भगाने की शक्ति निहित होती है।

स्वस्तिक को अनादी , अनंत और अविनाशी ब्रह्मा की संज्ञा भी दी जाती है।

स्वस्तिक कहाँ नहीं बनाना चाहिए

Where swastik should not be made

स्वस्तिक का प्रयोग अशुद्ध, अपवित्र और अनुचित स्थानों पर नहीं करना चाहिए । कहा जाता कि स्वस्तिक के अपमान व गलत प्रयोग करने से बुद्धि एवं विवेक समाप्त होकर दरिद्रता , तनाव , रोग तथा क्लेश आदि में वृद्धि होती है।

दाहिनी ओर मुड़ने वाली भुजाओं वाला स्वस्तिक दक्षिणावर्त स्वस्तिक Dakshinavart swastik तथा बाईं तरफ मुड़ने वाली भुजाओं वाला वामावर्त स्वस्तिक Vamavart Swastik कहलाता है। वामावर्त स्वस्तिक उल्टा होता है जिसे अमांगलिक और हानिकारक माना जाता है , अतः ऐसा स्वस्तिक नहीं बनाना चाहिए।

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