विजया एकादशी Vijaya ekadashi फाल्गुन माह में कृष्ण पक्ष की एकादशी को कहते हैं। विजया एकादशी का व्रत नए पुराने तथा पिछले जन्म के समस्त पापों को नष्ट करने वाला तथा शत्रु पर विजय दिलाने वाला बताया गया है।
Vijaya Ekadashi ki katha विजया एकादशी की कथा इस प्रकार है –
विजया एकादशी की कथा
Vijaya ekadashi ki kahani
त्रेतायुग में जब श्रीराम को चौदह वर्ष का वनवास मिला तो वे लक्ष्मण और सीता सहित पंचवटी पर निवास करने लगे। वहाँ शूर्पनखा द्वारा परेशान होकर लक्ष्मण ने शूर्पनखा को कुरूप बना दिया था। उसका बदला लेने के लिए रावण ने छल से सीतामाता का हरण कर लिया। इससे श्रीराम और लक्ष्मण बड़े दुखी हो गए थे।
सीतामाता को ढूंढते हुए वे दोनों जब ऋष्यमूक पर्वत के निकट आये तो वहाँ उनकी भेंट हनुमान जी से हुई। सुग्रीव से मित्रता करके श्रीराम ने बाली का वध किया। हनुमान जी ने सीतामाता का पता लगाकर श्रीराम को बताया।
श्रीराम ने सुग्रीव की सम्मति से वानर भालुओं की सेना सहित लंका पर चढ़ाई करने को प्रस्थान किया। परन्तु मार्ग में समुद्र होने के कारण सेना सहित पार जाने में कठिनाई प्रतीत हुई। ( विजया एकादशी की कहानी … )
रामचन्द्रजी ने लक्ष्मणजी से समुद्र को पार करने के विषय में विचार विमर्श किया।
लक्ष्मणजी ने कहा – यहाँ से आधा योजन दूर कुमारी द्वीप में बकदालभ्य नाम के मुनि का आश्रम है। वह मुनि अत्यन्त सिद्ध , तेजस्वी और महान तपस्वी हैं। उन्होंने अनेक ब्रह्मा देखे हैं। अतः हमे उनके पास जाकर समुद्र पार करने का उपाय पूछना चाहिए।
लक्ष्मण से सहमत होकर वे मुनि के पास गए और उन्हें प्रणाम करके एक और बैठ गए। मुनि ने उनके आने का कारण पूछा। ( Vijaya Ekadashi ki katha … )
श्रीराम ने कहा – हे महर्षि ! मैं सेना सहित यहाँ पर आया हूँ और निशिचरों को जीतने के लिए लंका जाना चाहता हूँ। किन्तु बीच में समुद्र होने के कारण लंका जाना कठिन हो रहा है। कृपया मुझे समुद्र पार करने का कोई सरल उपाय बताइए।
मुनि ने कहा – हे राम जी ! फाल्गुन मॉस की कृष्ण पक्ष वाली विजया एकादशी का व्रत करो। निश्चय ही आपको विजय प्राप्त होगी और सहज ही समुद्र ही पार कर सकोगे। मैं इस व्रत की विधि बताता हूँ।
दशमी के दिन स्वर्ण , चांदी , तांबा या मिट्टी का घड़ा जल से भर उसके ऊपर पंचपल्लव रख वेदिका पर स्थापित करें। उस घट के नीचे सात प्रकार के अन्न और घट के ऊपर जौ रखकर श्री नारायण की प्रतिमा स्थापित करें।
एकादशी के दिन स्नानादि से निवृत होकर धूप , दीप , नैवेद्य , नारियल , आदि से भगवान की पूजा करें। दिन भर व्रत रखें और रात्रि को जागरण भजन कीर्तन करते हुए रहें। ( विजया एकादशी की कहानी … )
दूसरे दिन अर्थात द्वादशी वाले दिन नदी या सरोवर पर स्नान करने के पश्चात उस घट को किसी विद्वान ब्राह्मण को दे दें।
हे रामचंद्रजी ! यदि आप इस व्रत को सेना नायकों के साथ करेंगे तो निश्चय ही आपको विजय प्राप्त होगी।
यह सुनकर रामचंद्र जी , लक्षमण जी और सेनानायकों ने बताये हुए विधान के अनुसार विजया एकादशी का व्रत किया। जिसके प्रभाव से समुद्र पार करके लंका पर चढ़ाई की। और रावण को मारकर राक्षसों पर विजय प्राप्त की।
हे राजन ! जो मनुष्य इस व्रत को करता है , उसे दोनों लोकों ( इस लोक और परलोक ) में विजय प्राप्त होती है। इस कथा को पढने या सुनने से भी अनंत फल प्राप्त होता है।
कथा समाप्त।
बोलो विष्णु भगवान की …. जय !!!
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