महाशिवरात्रि Maha Shivratri शिव और शक्ति की आराधना का पर्व है। फाल्गुन महीने की कृष्ण पक्ष की चतुर्दशी का दिन महाशिवरात्रि के रूप में मनाया जाता है। भोलेनाथ सरल ह्रदय है और तुरंत प्रसन्न होते है।
शिवजी की भक्ति और कृपा प्राप्ति के लिए महाशिवरात्रि को स्वर्णिम अवसर माना जाता है। इस विशेष दिन शिव शंकर की आराधना करके इस दिन का लाभ अवश्य लेना चाहिए।
यह व्रत और पूजा सभी कर सकते है। पुरुष शिवजी की कृपा प्राप्ति के लिए , महिलाएं पति की लंबी आयु और परिवार की सुख समृद्धि के लिए तथा कुंवारी लड़कियां शिव जैसे ही सरल , दयालु और उपकारी वर की प्राप्ति के लिए यह व्रत और पूजा करते है।
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महाशिवरात्रि का महत्त्व
Maha Shivratri Importance
महाशिवरात्रि के बारे में अलग अलग मान्यताएं है परंतु यह दिन बहुत विशेष है , यह सभी मानते है। कुछ मान्यताओं के अनुसार शिवरात्रि के दिन शिव और पार्वती का विवाह हुआ था। कुछ लोगों का मानना है की इस दिन शिव जी ने तांडव नृत्य किया था।
एक कथा यह भी है कि इस दिन शिव जी ने खुद को पहली बार लिंग के रूप में दर्शाया था। इस दिन ब्रह्मा जी और विष्णु जी के अहम् को नष्ट करके उन्हें सत्य से अवगत कराया था तथा उन्हें अहसास कराया था की वे दोनों असल में उन्ही के अंश है। ( Mahashivratri pooja … )
ब्रह्माजी और विष्णुजी ने भी उनका प्रभुत्व स्वीकार किया था किन्तु ब्रह्मा जी ने केतकी की मदद से झूठ का सहारा लिया था। इस वजह से शिवजी ने क्रोध में आकर श्राप दिया था। जिसके कारण ब्रह्मा जी का कोई मंदिर नहीं बनाया जाता तथा केतकी ( केवड़ा ) फूल सफेद और खुशबूदार होने पर भी पूजा में काम नहीं लिया जाता।
इस सम्बन्ध में यह भी कहा जाता है सागर मंथन के समय हलाहल विष निकला था। इससे देवता और दानव घबरा गए थे। क्योंकि इससे सृष्टि का विनाश हो सकता था।
विष्णु जी की सलाह से देवताओं ने शिवजी के पास जाकर मदद मांगी। इस पर शिव जी ने विष को गले में धारण कर लिया और इनकी गर्दन नीले रंग की हो गई। इससे वे नीलकंठ कहलाये।
परंतु उन्हें विषपान के बाद सोना नहीं चाहिए था अतः देवताओं ने उन्हें जगाये रखने के लिए रात भर नृत्य और संगीत का आयोजन चलाये रखा। सुबह होने पर सृष्टि के विनाश होने से बचने पर खुश होकर शिवजी ने सभी को सुख समृद्धि का आशीर्वाद दिया। तभी से महाशिवरात्रि का त्यौहार मनाया जाने लगा।
महाशिवरात्रि के दिन ग्रहों की स्थिति कुछ इस प्रकार की होती है कि मानव की ऊर्जा में बढ़ोतरी हो जाती है। इस रात जगे रहने और खड़े रहने से शारीरिक और आध्यात्मिक लाभ प्राप्त होते है। ( Mahashivratri pooja … )
महाशिवरात्रि की रात उचित मन्त्र , ध्यान और पूजा की मदद से रात भर चलने वाले इस त्यौहार में प्राकृतिक ऊर्जा का लाभ लिया जा सकता है। योगिक साधना करने वाले लोगों के लिये यह उत्तम अवसर होता है। साधारण लोगों को भी इस रात जागकर व खड़े रहकर मानसिक और शारीरिक ऊर्जा में वृद्धि करने का उचित अवसर प्राप्त होता है।
शिव पुराण के अनुसार श्रद्धा , विश्वास और भक्ति से इस दिन व्रत करने पर शिव कृपा की प्राप्ति होती है। यह व्रत कुछ लोग निराहार रहकर यानि बिना कुछ खाये करते है और कुछ लोग सागार या फलाहार आदि लेकर करके यह व्रत करते है।( Mahashivratri pooja … )
इस व्रत को करने से अश्वमेघ यज्ञ जैसा फल प्राप्त होता है। यह हर प्रकार के पाप से मुक्ति तथा मोक्ष दिलाता है।
शिव पुराण के अनुसार शिव जी को प्रसन्न करने के लिए उनकी पूजा दूध , दही , शहद , घी , शक्कर आदि से करनी चाहिए तथा जल चढ़ाना चाहिए । कुछ लोग सरसों का तेल , काले तिल , फलों के रस आदि से पूजा करते है। इस दिन रूद्र अभिषेक का विशेष महत्त्व होता है।
महामृत्युंजय मन्त्र – Maha Mrityunjay Mantra
भगवान शिव की आराधना में महामृत्युंजय मन्त्र का बहुत महत्त्व है जो कई शताब्दी से चला आ रहा है। महाशिवरात्रि के समय इस मंत्र का जप करने से बहुत लाभ मिलता है। यह मन्त्र इस प्रकार है :
ओम त्र्यम्बकं यजामहे सुगन्धिंम् पुष्टिवर्धनम् ।
उर्वारुकमिव बन्धनान् मृत्योर्मुक्षीय माऽमृतात् ।।
यह मन्त्र प्राणरक्षक मंत्र कहलाता है। मोक्ष प्राप्ति के लिए इस मन्त्र का पाठ किया जाता है। इसे स्वयं महादेव ने ऋषि मार्कण्डेय को दिया था। ( Mahashivratri pooja … )
महाशिवरात्रि व्रत और पूजा की विधि
Maha Shivratri Vrat Pooja Vidhi
— महाशिवरात्रि के दिन व्रत करने के लिए सुबह जल्दी उठकर स्नान करने के बाद व्रत का संकल्प लेना चाहिए और निराहार रहकर व्रत का निष्ठा पूर्वक पालन करना चाहिए। माथे पर भस्म का तिलक लगाना चाहिए तथा गले में रुद्राक्ष की माला पहननी चाहिए।
— रोगी , कमजोर तथा अधिक उम्र वाले लोग फलाहार , सागार आदि ले सकते है। सुविधानुसार शिव पंचाक्षर मन्त्र – ” ॐ नमः शिवाय ” का जाप करना चाहिए।
— शाम के समय एक बार फिर स्नान करना चाहिए और पूजा के लिए शुद्ध कपड़े पहनने चाहिए।
— इसके बाद समीप स्थित किसी शिव मंदिर में जाकर श्रृद्धा पूर्वक इस प्रकार पूजा करें :
– गणेश जी एवं माता पार्वती तथा नंदी आदि का छोटा पूजन करें। इसके लिए इन्हें जल से स्नान कराएं और रोली , अक्षत , मोली , पुष्प तथा नैवेद्य तथा दक्षिणा अर्पित करें
— अब भगवान शिव का ध्यान करें। ( Mahashivratri pooja … )
— शिवजी को जल से स्नान कराएं।
— दूध , दही , घी , शहद और शक्कर से स्नान कराएं।
— सुगंध स्नान कराएं। दुबारा जल से स्नान करायें।
— चन्दन का टीका लगाएं। अक्षत चढ़ाएँ।
— भगवान शिव को वस्त्र तथा जनेऊ चढ़ाएं।
— फिर फूल माला , इत्र , धतूरा , बिल्वपत्र , नारियल , पान आदि अर्पित करें।
— अब भगवान शिव को नैवेद्य यानि फल मिठाई आदि अर्पित करें।
— इसके बाद दीपक जलाकर आरती करें। ( Mahashivratri pooja … )
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— अंत में इस मन्त्र के साथ क्षमा प्रार्थना करें –
आह्वानं ना जानामि, ना जानामि तवार्चनम,
पूजाश्चैव न जानामि क्षम्यतां परमेश्वर:।
इसी प्रकार से घर पर भी पूजा की जा सकती है।
शास्त्रों के अनुसार महाशिवरात्रि का पूजन निशीथ काल में करना सर्वश्रेष्ठ रहता है। हालाँकि रात्रि के चारों प्रहर में से अपनी सुविधानुसार किसी भी प्रहर में पूजा कर सकते हैं। कुछ लोग रात के चारों प्रहर की पूजा करते है। ( Mahashivratri pooja … )
मंदिरों में रात भर शिव स्तुति , शिव अष्टक , शिव चालीसा , शिव रुद्राष्टक , शिव सहस्रनाम शिव पुराण आदि के पाठ किये जाते है।आप भी इसमें सम्मिलित होकर शिव भक्ति का लाभ उठा सकते है। इससे उपवास , पूजा तथा जागरण तीनो का फल प्राप्त हो जाता है। शिव चालीसा पढ़ने के लिए यहाँ क्लिक करें।
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अगले दिन सुबह पुन: स्नान कर भगवान शंकर की पूजा करने के बाद जौ, तिल, खीर का हवन करके व्रत का समापन करें। हवन नहीं कर रहे हो तो सुबह स्नान करने के बाद ही पारणा करें यानि व्रत खोलें।
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