शीतला माता की कहानी Shitla mata ki Kahani शीतला सप्तमी और शीतला अष्टमी की पूजा करने के बाद सुनी जाती है। इससे पूजा का सम्पूर्ण फल प्राप्त होता है।
शीतला सप्तमी या अष्टमी की पूजा करने की विधि जानने के लिए यहाँ क्लीक करें।
शीतला माता की कहानी
एक गाँव में बूढ़ी कुम्हारी रहती थी , जो बासोड़ा के दिन
माता की पूजा करती थी और ठंडी रोटी खाती थी।
उस गाँव में और ना तो कोई माता की पूजा करता था
और ना ही कोई ठंडी रोटी खाता था। ( sheetla mata ki kahani ….)
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शीतला सप्तमी के दिन एक बुढ़िया गांव में आई
और घर-घर जाकर कहने लगी –
” कोई मेरी जुएँ निकाल दो , कोई मेरी जुएँ निकाल दो “
हर घर से यही आवाज आई –
” बाद में आना , अभी हम खाना बनाने में व्यस्त हैं “
कुम्हारी को खाना नही बनाना था क्योंकि
वह तो उस दिन ठंडा खाना खाती थी। ( sheetla mata ki kahani ….)
कुम्हारी बोली – ” आओ माई , मैं तुम्हारी जुएँ निकाल देती हूँ ”
कुम्हारी ने बुढ़िया की सब जुएँ निकाल दी।
बुढ़िया असल में शीतला माता थी।
उन्होंने खुश होकर बूढ़ी माँ को साक्षात दर्शन दिए और आशीवार्द दिया।
उसी दिन किसी कारण से पूरे गांव में आग लग गयी
लेकिन कुम्हारी का घर सकुशल रहा।( sheetla mata ki kahani ….)
पूछने पर बूढ़ी माँ ने इसे शीतला माता की कृपा बताया।
उसने कहा –
” बासोड़ा के दिन शीतला माता की पूजा करने और
ठंडा खाना खाने से शीतला माता की कृपा से मेरा घर बच गया ”
राजा को यह पता लगने पर उसने पूरे गांव में ढिंढोरा पिटवा दिया कि –
~ सभी शीतला माता की पूजा करें ,
~ बासोड़े की पूजा करें ,
~ एक दिन पहले खाना बनाकर रख लें ,
दूसरे दिन पूजा करके यह ठंडा खाना खाएँ।
तभी से सारा गांव वैसा ही करने लगा। ( sheetla mata ki katha …. )
हे शीतला माता !
जैसे कुम्हारी की रक्षा की वैसे सभी की रक्षा करना।
सबके घर परिवार व बच्चो की रक्षा करना जैसा पूरा गाँव जला
वैसे किसी को मत जलाना।
बोलो शीतला माँ की जय …..!!!
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